अजमेर. तीर्थ गुरु पुष्कर जन-जन की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां विश्व का इकलौता जगतपिता ब्रह्मा का मंदिर है, लेकिन कम लोग जानते हैं कि पुष्कर में नागों का भी एक स्थान है. इस पवित्र स्थान का महत्व सृष्टि की रचना के समय से जुड़ा हुआ है.
हर वर्ष भरता है मेला: धर्म शास्त्रों के अनुसार सृष्टि की रचना से पहले जगत पिता ब्रह्मा ने पुष्कर में यज्ञ किया था. पुष्कर सरोवर के वराह घाट के प्रधान पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि सृष्टि यज्ञ के लिए देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों, यक्ष, गंधर्व, नाग आदि को आमंत्रित किया गया था. यज्ञ में आए नागों को शिविर लगाने के लिए ब्रह्मा ने पंचकुंड का स्थान दिया था, जो कि नाग पहाड़ी के ठीक नीचे है. यहां द्वापर युग में पांडवों के आने से पहले केवल एक ही कुंड था, जिसे नाग कुंड कहा जाता था. इस कुंड में ब्रह्मा के पौत्र पृथो का निवास है. कुंड के ठीक समीप प्राचिन नाग मंदिर है. यहां का विशेष धार्मिक महत्व होने के कारण नाग पंचमी पर हर वर्ष मेला भरता है.
पृथो को ऋषि भृगु के पुत्र ने दिया था श्राप : पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि सृष्टि यज्ञ के दौरान जब ऋषि भृगु यज्ञ में आहुतियां दे रहे थे, इस दौरान ब्रह्मा के पौत्र ने आमोद-प्रमोद करते हुए पुष्कर सरोवर से एक पानी का सर्प पकड़कर यज्ञ में बैठे लोगों की ओर उछाल दिया. इससे यज्ञ में शामिल अन्य ऋषि मुनि भयभीत हो गए और घबराहट में इधर-उधर भागने लगे. तब ऋषि भृगु ने अपना स्थान नहीं छोड़ा और वह यज्ञ करते रहे. इस दौरान पानी का सर्प उनके गले में आ गया तब भृगु के पुत्र ने सर्प को पिता के गले से निकला. इसके साथ ही अपनी सिद्धि से उन्होंने पता लगाया कि यह कारस्तानी किसकी है, तब उन्होंने पृथो को श्राप दिया कि वह देव योनि से सर्प योनि में आ जाए. ऋषि भृगु समेत कई लोगों ने श्राप वापस लेने के लिए कहा, लेकिन वह नही माने. जगत पिता ब्रह्मा ने भी श्रापित पृथो को नाग योनि में रहने की ही सलाह दी और उन्हें स्थान के लिए यह कुंड दे दिया.
पुत्र रत्न की होती है यहां कामना पूरी : पंडित शर्मा बताते हैं कि नाग पंचमी पर ब्रह्म मुहूर्त में जो महिला एक फल के साथ नाग कुंड में स्नान करती है और नाग मंदिर में पूजा अर्चना करती है. निश्चित रूप से उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि नाग पंचमी के दिन यहां विशाल मेला भरता है. दूर-दूर से लोग नाग मंदिर और नाग कुंड के दर्शनों के लिए आते हैं.
पांडव नहीं कर पाए थे पिंडदान : पंच कुंड में महंत गंगा गिरी महानिर्वाण अखाड़े से आते हैं. उन्होंने बताया कि पांडवों से आने से पहले यहां एक ही कुंड था, जिसका जुड़ाव ब्रह्मा की सृष्टि यज्ञ से था. द्वापर युग के अंत से पहले पांचो पांडव ऐसे स्थान पर आकर रुके थे. यहां उन्होंने भगवान शिव की आराधना की थी, लीला सेवड़ी गांव के ऊपर नाग पहाड़ी की तलहटी पर पांडवों ने शिवलिंग स्थापित किया था. यह स्थान पांडवेश्वर महादेव के नाम से आज भी विख्यात है. पंचकुंड नाम पांडवों के आने के बाद इस स्थान का हुआ है.
पांडवों ने सोमवती अमावस्या को श्राप दिया : यहां नित्य सेवा पूजा करने के उद्देश्य से पांडवों ने नाग कुंड के अलावा 4 कुंड और बनाए. इन कुंड के जल से ही वह पूजा अर्चना किया करते थे. महंत गंगागिरी ने बताया कि पांच पांडवों ने यहां कुछ दिन सोमवती अमावस्या के लिए बिताए थे. दरअसल पांचों पांडव यहां महाभारत में मारे गए लोगों के लिए पिंडदान करने के उद्देश्य से आए थे. उन्हें बताया गया था कि द्वापर युग में ही वह पृथ्वी पर रुक सकते हैं. कलयुग की शुरुआत हो गई तो उन्हें पृथ्वी पर ही पर रहना होगा, पिंडदान के लिए सोमवती अमावस्या का मुहूर्त था. काफी दिन इंतजार करने के बाद भी जब सोमवती अमावस्या नहीं आई तब पांडवों ने सोमवती अमावस्या को श्राप दिया कि वह वर्ष में कई बार आएगी. इसके बाद बिना पिंडदान किए ही द्वापर युग के खत्म होने से पहले पांडव यहां से प्रस्थान कर गए थे.
यहां होती है काल सर्प दोष की पूजा : महंत गंगागिरी बताते हैं कि पंचकुंड में पांडवों के 5 कुंड के अलावा नागेश्वर महादेव का मंदिर है. नाग कुंड के समीप ही प्राचीनतम नाग मंदिर है, चूंकि इस स्थान पर पांडवों का अभी निवास रहा है, ऐसे में यहां पांच पांडव और द्रौपदी का मंदिर भी बाद में बनाया गया है. उन्होंने बताया कि सदियों से यहां कालसर्प दोष की पूजा होती आई है. ब्राह्मण मुहूर्त देखकर यहां व्यक्ति की जन्म कुंडली सर्प दोष के निवारण के लिए कालसर्प दोष की पूजा करवाते हैं. इस पूजा के बाद ऐसे व्यक्ति के जीवन में संकट टलने के साथ ही सुख समृद्धि की भी उसे प्राप्ति होती है.