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कमांडो दीपेंद्र सिंह काे 6 साल बाद मिला शहीद का दर्जा, मां की आंखों में छलक आए आंसू - Martyr status to dipendra singh

सीमा सुरक्षा बल के क्रीक कमांडो पुष्कर की निकटवर्ती लेसवा गांव निवासी दीपेंद्र सिंह राठौड़ को 6 साल बाद शहीद का दर्जा मिला. इस दौरान नम आंखों के साथ घरवालों औैर ग्रामीणों का सीना फख्र से चौड़ा हो उठा. हो भी क्यों ना, दीपेंद्र मेहनती और साहसी जो थे. वहीं जब यह खबर उनके गांव वालों को लगी तो अजमेर जिले से निकले पहले क्रीक क्रोकोडाइल कमांडों दीपेन्द्र सिंह की शहादत मुकम्मल होने पर सभी ने खुशी जाहिर की.

दीपेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा, Martyr status to dipendra singh
कमांडो दीपेंद्र काे 6 साल बाद मिला शहीद का दर्जा
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Published : Dec 22, 2020, 1:51 PM IST

पुष्कर (अजमेर). देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले भारत माता के वीर सपूत देश की सीमाओं पर हर समय तैनात होते है. ऐसे में उन लोगों को शहीद का दर्जा मिलना अपने आप में किसी बड़ी उपाधि से कम नही होता. जहां तीर्थ नगरी पुष्कर से 18 किलोमीटर की दूरी पर बसा लेसवा गांव आज अपने गांव के बेटे को 6 वर्ष बाद शहीद का दर्जा मिलने पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है.

कमांडो दीपेंद्र काे 6 साल बाद मिला शहीद का दर्जा

दरअसल रणबंका राठौड़ परिवार में जन्मे शहीद दीपेंद्र सिंह सीमा सुरक्षा बल में क्रीक कमांडो के पद पर तैनात थे. साथ ही दीपेंद्र जिले के पहले क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो थे, जो कच्छ के क्रीक एरिया लकी नाला में तैनात थे. क्रीक एरिया यानी टेड़ी-मेड़ी खाड़ियों और पतली नदियों और दलदल वाला क्षेत्र है. यहां से आतंकी गतिविधियां और तस्करी रोकने के लिए क्रीक कमांडोज को तैनात किया जाता है.

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वर्ष 2014 में 6 सितंबर का दिन उस समय घरवालों पर कहर बनकर टूट पड़ा, जब दीपेंद्र के देवलोकगमन की सूचना उन्हें मिली. उन दिनों वहां तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह का विजिट होना था. इस विजिट के दौरान बीएसएफ के क्रीक कमांडोज के अदम्य साहस और शोर्य का डेमो दिखाने का जिम्मा दीपेंद्र के कंधों पर था. डेमो से पहले तैराकी के प्रशिक्षण के दौरान दीपेंद्र वीरगति को प्राप्त हो गए.

दीपेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा, Martyr status to dipendra singh
कमांडो दीपेंद्र को शहीद का दर्जा

विभागीय प्रक्रिया और कोर्ट ऑफ इंक्यारी के बाद बीएसएफ ने छह साल बाद ऑपरेशन कैज्यूल्टी प्रमाण पत्र जारी कर दिया. बीएसएफ की 30वीं वाहिनी के क्रीक कमांडो दीपेंद्र अजमेर से पहले क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो थे, यह कमांडो फोर्स बीएसएफ की एलाइट कमांडो फोर्स है. बीएसएफ के डायरेक्टर जनरल आईपीएस राकेश अस्थाना ने शहीद दीपेंद्र सिंह का ऑपरेशन कैज्यूल्टी प्रमाण पत्र जारी किया है. शहीद के दर्जा मिलने की सूचना से क्षेत्र भर के लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया.

दीपेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा, Martyr status to dipendra singh
मां की आंखों में छलकें आंसू

15 सितंबर को पुत्र का जन्मदिन था

शहिद दीपेंद्र की मां ने जब अपने बच्चे को शहीद का दर्जा मिलने की बात कही तो उस दौरान उनकी आंखों में गर्व के आंसू छलक पड़े. उन्होंने बताया कि 15 सितंबर को दीपेंद्र के बेटे का जन्मदिन था. बेटा उस समय महज 11 माह 20 दिन था. दीपेंद्र गांव आने वाले थे, इधर बेटे के जन्मदिन की तैयारियां चल रही थी. 6 सितंबर 2014 को जब बीएसएफ ने घटना की जानकारी दी तो पूरा गांव स्तब्ध रह गया था. उन्होंने दीपेंद्र की शहादत पर गर्व से कहा कि उनके पोते को भी वो भारत माता की सेवा में जरूर भेजेंगी.

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लेसवा गांव में शहीद दीपेंद्र की याद में शहीद स्मारक का निर्माण भी करवाया गया, जो कई वर्षों से अधूरा पड़ा है. गांव के ग्रामीण और जनप्रतिनिधियों ने सरकार से इसके निर्माण को पूरा करने की अपील भी की है. जिससे गांव के दूसरे नौजवान को प्रेरणा दी जा सके.

गौरतलब है कि शहीद दीपेंद्र के पिता और चचेरा भाई भी सीमा सुरक्षा बल में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. बता दें कि बीएसएफ की क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो फोर्स मगरमच्छ की तरह पानी में रहकर और जमीन पर रक्षा कवच बनाने में महारथी बीएसएफ के क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो कच्छ के सबसे दुर्दांत क्षेत्रो की सुरक्षा में तैनात हैं.

पुष्कर (अजमेर). देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले भारत माता के वीर सपूत देश की सीमाओं पर हर समय तैनात होते है. ऐसे में उन लोगों को शहीद का दर्जा मिलना अपने आप में किसी बड़ी उपाधि से कम नही होता. जहां तीर्थ नगरी पुष्कर से 18 किलोमीटर की दूरी पर बसा लेसवा गांव आज अपने गांव के बेटे को 6 वर्ष बाद शहीद का दर्जा मिलने पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है.

कमांडो दीपेंद्र काे 6 साल बाद मिला शहीद का दर्जा

दरअसल रणबंका राठौड़ परिवार में जन्मे शहीद दीपेंद्र सिंह सीमा सुरक्षा बल में क्रीक कमांडो के पद पर तैनात थे. साथ ही दीपेंद्र जिले के पहले क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो थे, जो कच्छ के क्रीक एरिया लकी नाला में तैनात थे. क्रीक एरिया यानी टेड़ी-मेड़ी खाड़ियों और पतली नदियों और दलदल वाला क्षेत्र है. यहां से आतंकी गतिविधियां और तस्करी रोकने के लिए क्रीक कमांडोज को तैनात किया जाता है.

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वर्ष 2014 में 6 सितंबर का दिन उस समय घरवालों पर कहर बनकर टूट पड़ा, जब दीपेंद्र के देवलोकगमन की सूचना उन्हें मिली. उन दिनों वहां तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह का विजिट होना था. इस विजिट के दौरान बीएसएफ के क्रीक कमांडोज के अदम्य साहस और शोर्य का डेमो दिखाने का जिम्मा दीपेंद्र के कंधों पर था. डेमो से पहले तैराकी के प्रशिक्षण के दौरान दीपेंद्र वीरगति को प्राप्त हो गए.

दीपेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा, Martyr status to dipendra singh
कमांडो दीपेंद्र को शहीद का दर्जा

विभागीय प्रक्रिया और कोर्ट ऑफ इंक्यारी के बाद बीएसएफ ने छह साल बाद ऑपरेशन कैज्यूल्टी प्रमाण पत्र जारी कर दिया. बीएसएफ की 30वीं वाहिनी के क्रीक कमांडो दीपेंद्र अजमेर से पहले क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो थे, यह कमांडो फोर्स बीएसएफ की एलाइट कमांडो फोर्स है. बीएसएफ के डायरेक्टर जनरल आईपीएस राकेश अस्थाना ने शहीद दीपेंद्र सिंह का ऑपरेशन कैज्यूल्टी प्रमाण पत्र जारी किया है. शहीद के दर्जा मिलने की सूचना से क्षेत्र भर के लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया.

दीपेंद्र सिंह को शहीद का दर्जा, Martyr status to dipendra singh
मां की आंखों में छलकें आंसू

15 सितंबर को पुत्र का जन्मदिन था

शहिद दीपेंद्र की मां ने जब अपने बच्चे को शहीद का दर्जा मिलने की बात कही तो उस दौरान उनकी आंखों में गर्व के आंसू छलक पड़े. उन्होंने बताया कि 15 सितंबर को दीपेंद्र के बेटे का जन्मदिन था. बेटा उस समय महज 11 माह 20 दिन था. दीपेंद्र गांव आने वाले थे, इधर बेटे के जन्मदिन की तैयारियां चल रही थी. 6 सितंबर 2014 को जब बीएसएफ ने घटना की जानकारी दी तो पूरा गांव स्तब्ध रह गया था. उन्होंने दीपेंद्र की शहादत पर गर्व से कहा कि उनके पोते को भी वो भारत माता की सेवा में जरूर भेजेंगी.

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लेसवा गांव में शहीद दीपेंद्र की याद में शहीद स्मारक का निर्माण भी करवाया गया, जो कई वर्षों से अधूरा पड़ा है. गांव के ग्रामीण और जनप्रतिनिधियों ने सरकार से इसके निर्माण को पूरा करने की अपील भी की है. जिससे गांव के दूसरे नौजवान को प्रेरणा दी जा सके.

गौरतलब है कि शहीद दीपेंद्र के पिता और चचेरा भाई भी सीमा सुरक्षा बल में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. बता दें कि बीएसएफ की क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो फोर्स मगरमच्छ की तरह पानी में रहकर और जमीन पर रक्षा कवच बनाने में महारथी बीएसएफ के क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो कच्छ के सबसे दुर्दांत क्षेत्रो की सुरक्षा में तैनात हैं.

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