पुष्कर (अजमेर). देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले भारत माता के वीर सपूत देश की सीमाओं पर हर समय तैनात होते है. ऐसे में उन लोगों को शहीद का दर्जा मिलना अपने आप में किसी बड़ी उपाधि से कम नही होता. जहां तीर्थ नगरी पुष्कर से 18 किलोमीटर की दूरी पर बसा लेसवा गांव आज अपने गांव के बेटे को 6 वर्ष बाद शहीद का दर्जा मिलने पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है.
दरअसल रणबंका राठौड़ परिवार में जन्मे शहीद दीपेंद्र सिंह सीमा सुरक्षा बल में क्रीक कमांडो के पद पर तैनात थे. साथ ही दीपेंद्र जिले के पहले क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो थे, जो कच्छ के क्रीक एरिया लकी नाला में तैनात थे. क्रीक एरिया यानी टेड़ी-मेड़ी खाड़ियों और पतली नदियों और दलदल वाला क्षेत्र है. यहां से आतंकी गतिविधियां और तस्करी रोकने के लिए क्रीक कमांडोज को तैनात किया जाता है.
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वर्ष 2014 में 6 सितंबर का दिन उस समय घरवालों पर कहर बनकर टूट पड़ा, जब दीपेंद्र के देवलोकगमन की सूचना उन्हें मिली. उन दिनों वहां तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह का विजिट होना था. इस विजिट के दौरान बीएसएफ के क्रीक कमांडोज के अदम्य साहस और शोर्य का डेमो दिखाने का जिम्मा दीपेंद्र के कंधों पर था. डेमो से पहले तैराकी के प्रशिक्षण के दौरान दीपेंद्र वीरगति को प्राप्त हो गए.
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विभागीय प्रक्रिया और कोर्ट ऑफ इंक्यारी के बाद बीएसएफ ने छह साल बाद ऑपरेशन कैज्यूल्टी प्रमाण पत्र जारी कर दिया. बीएसएफ की 30वीं वाहिनी के क्रीक कमांडो दीपेंद्र अजमेर से पहले क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो थे, यह कमांडो फोर्स बीएसएफ की एलाइट कमांडो फोर्स है. बीएसएफ के डायरेक्टर जनरल आईपीएस राकेश अस्थाना ने शहीद दीपेंद्र सिंह का ऑपरेशन कैज्यूल्टी प्रमाण पत्र जारी किया है. शहीद के दर्जा मिलने की सूचना से क्षेत्र भर के लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया.
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15 सितंबर को पुत्र का जन्मदिन था
शहिद दीपेंद्र की मां ने जब अपने बच्चे को शहीद का दर्जा मिलने की बात कही तो उस दौरान उनकी आंखों में गर्व के आंसू छलक पड़े. उन्होंने बताया कि 15 सितंबर को दीपेंद्र के बेटे का जन्मदिन था. बेटा उस समय महज 11 माह 20 दिन था. दीपेंद्र गांव आने वाले थे, इधर बेटे के जन्मदिन की तैयारियां चल रही थी. 6 सितंबर 2014 को जब बीएसएफ ने घटना की जानकारी दी तो पूरा गांव स्तब्ध रह गया था. उन्होंने दीपेंद्र की शहादत पर गर्व से कहा कि उनके पोते को भी वो भारत माता की सेवा में जरूर भेजेंगी.
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लेसवा गांव में शहीद दीपेंद्र की याद में शहीद स्मारक का निर्माण भी करवाया गया, जो कई वर्षों से अधूरा पड़ा है. गांव के ग्रामीण और जनप्रतिनिधियों ने सरकार से इसके निर्माण को पूरा करने की अपील भी की है. जिससे गांव के दूसरे नौजवान को प्रेरणा दी जा सके.
गौरतलब है कि शहीद दीपेंद्र के पिता और चचेरा भाई भी सीमा सुरक्षा बल में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. बता दें कि बीएसएफ की क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो फोर्स मगरमच्छ की तरह पानी में रहकर और जमीन पर रक्षा कवच बनाने में महारथी बीएसएफ के क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो कच्छ के सबसे दुर्दांत क्षेत्रो की सुरक्षा में तैनात हैं.