अजमेर. आज हरि और हरिहर के मिलन का दिन बैकुंठ चतुर्दशी (Baikuntha Chaturdashi) है. बैकुंठ यानी भगवान विष्णु का दिव्य लोक. धर्मशास्त्र में आज के दिन देवताओं के दीपावली मानने का जिक्र मिलता है. लेकिन आज हम आपको उस स्थान के दर्शन कराएंगे, जहां सर्वप्रथम सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु अवतरित हुए थे.
जहां आज भी विश्व की सबसे प्राचीन भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करती प्रतिमा स्थित है. चलिए हम आपको तीर्थ नगरी पुष्कर के आरण्य क्षेत्र अंतर्गत पड़ने वाले सूरजकुंड गांव लेकर चलते हैं. जिसे कानाबाय के नाम से भी जाना जाता है. पुराणों में श्री हरि के इस पवित्र स्थान का उल्लेख मिलता है. यहां दो बार भगवान श्रीराम व 7 बार श्रीकृष्ण पधारे थे.
तीर्थ नगरी पुष्कर (Tirth Nagari Pushkar) में ही सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा का इकलौता मंदिर है. हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु की नाभि से जगतपिता ब्रह्मा का अवतरण हुआ था. वहीं, पुष्कर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर सूरजकुंड (Pushkar Surajkund Village) गांव है. जिसे कानाबाय भी कहा जाता है. करोड़ों साल पहले श्रीर सागर हुआ करता था. समुद्र मंथन के बाद श्रीर सागर का दायरा सिमट गया. बताया जाता है कि समुद्र मंथन में ही माता लक्ष्मी का भी उद्भव हुआ था. ऐसे में पुष्कर आरण्य क्षेत्र में ही मां लक्ष्मी के उद्भव की बात कही जाती है.
पदम पुराण के मुताबिक हजारों वर्ष पहले पुष्कर के कानाबाय क्षेत्र में ही पंच धारों (नदी) का मिलन था. इन नदियों में नंदा, कनका, सुप्रभा, सुधा और प्राची शामिल थीं. यही वह स्थान है, जहां भगवान विष्णु ने धरती पर सर्वप्रथम पदार्पण किया था, जहां उन्होंने 10 वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. यही श्रीर सागर नामक एक कुंड हुआ करता था, जहां च्यवन ऋषि ने स्नान कर वृद्ध होने के श्राप से मुक्ति पाई थी.
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यहां है भगवान विष्णु की सबसे प्राचीन प्रतिमा: कानाबाय के प्राचीन मंदिर में भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करते विश्व की सबसे प्राचीनतम प्रतिमा स्थित है. जहां भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी विराजमान है. काले पत्थर से बनी यह प्रतिमा काफी आकर्षक है. मंदिर के महंत महावीर वैष्णव बताते हैं कि पुराणों के अनुसार जगतपिता ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण किया था. वैष्णव का दावा है कि मंदिर के इतिहास के अनुसार भगवान विष्णु की यह अद्भुत प्रतिमा 41 हजार 79 वर्ष पुरानी है. उन्होंने बताया कि अमेरिका के वैज्ञानिकों ने मूर्ति की जांच की थी. जिसमें कार्बन रेटिंग 32 सौ वर्ष पुरानी बताई गई, जबकि भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मूर्ति 4 हजार वर्ष पहले की है.
यहां दो बार आए थे श्रीराम: श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं. पुराणों के अनुसार श्रीराम दो बार पुष्कर आए थे. कानाबाय मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि वनवास के दौरान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पुष्कर आए थे. यही के गया कुंड में उन्होंने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध कर्म किया था. वनवास के दौरान श्रीराम यहां एक माह तक रुके थे. दूसरी बार श्रीराम अपने भाई भरत के साथ अयोध्या से लंका विभीषण से मिलने जाने के क्रम में यहां रुके थे.
सात बार आए श्रीकृष्ण: पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण सात बार कानाबाय आए थे. मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि श्रीकृष्ण पहली बार मथुरा से द्वारका जाते समय यहां रुके थे. दूसरी बार ऋषि दुर्वासा के आग्रह पर हंस व डिम्भक राक्षस से रक्षा करने के लिए अपने बड़े भाई बलराम जी के साथ पधारे थे और दोनों शक्तिशाली राक्षसों का वध किए थे. इसका जिक्र हरिवंश पुराण में भी मिलता है. इसके उपरांत श्रीकृष्ण जब भी द्वारका से मथुरा कुरुक्षेत्र आते वो रुक जाया करते थे. महंत वैष्णव बताते हैं कि श्रीकृष्ण के साथ आए लोगों ने ही यहां आसपास कई गांव बसाए और उनका नाम भी ब्रज में स्थित गांवों के नामों के समान ही रखा गया.
पुष्कर ने दी दुनिया को मिठास: जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के बाद माता लक्ष्मी की आराधना की थी. संपूर्ण जगत को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिले, इसलिए जगतपिता ब्रह्मा ने पहली बार यही पर गन्ने की रचना की थी. उसके रस से माता लक्ष्मी की प्रतिमा का अभिषेक किया था. तभी से ही विश्व को गन्ने की मिठास मिली. बताया जाता है कि एक दशक पहले पुष्कर में गन्ने की फसल बहुत हुआ करती थी.
मूर्ति पूजा की यही से हुई शुरुआत: महंत वैष्णव ने बताया कि जगतपिता ने ही भगवान विष्णु की प्रतिमा अवतरित की थी. क्षीर सागर में शयन मुद्रा में स्थित इस मूर्ति के हाथों में गदा, चक्र, पदम और शंख है. एक ही पत्थर की बनी विशाल मूर्ति में शेषनाग पर भगवान विष्णु लेटे हुए हैं. वहीं, उनके सिर पर नौ फनों वाले शेषनाग हैं. इधर, भगवान विष्णु की चरणों में माता लक्ष्मी बैठी हैं. वहीं, त्रेता युग से सनातन धर्म में मूर्ति पूजा की शुरुआत यहीं से मानी जाती है.
जन्माष्टमी पर लगता है मेला: मंदिर के महंत दामोदर वैष्णव ने बताया कि वन में स्थित होने के कारण तीर्थ यात्रियों को इस पवित्र स्थान के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल पाती है. यही कारण है कि वो यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं. लेकिन आसपास के दर्जनों गांव के अलावा अन्य जिलों से लोग यहां पूजा व दर्शन के लिए आते हैं. जन्माष्टमी पर यहां मेले का आयोजन होता है. जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक आते हैं.