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Sawan 2022 : मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजे जाते हैं एकलिंग नाथ, लगता है भक्तों का तांता

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Published : Aug 10, 2022, 7:01 AM IST

Updated : Aug 10, 2022, 8:43 AM IST

सावन माह में भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना का दौर जारी है. मंदिरों में बोल बम के जयकारों की गूंज भी सुनाई दे रही है. इस बीच उदयपुर के एकलिंग नाथ जी मंदिर में भी (Ekling Nath of Udaipur) विशेष पूजा-अर्चना जारी है. यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. भगवान एकलिंग नाथ को मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजा जाता है.

Ekling Nath of Udaipur
मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजे जाते हैं एकलिंग नाथ

उदयपुर. सावन के महीने में भगवान शिव के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना (sawan 2022) का दौर जारी है. छोटे से लेकर बड़े मंदिरों तक बोल बम की गूंज सुनाई दे रही है. साथ ही भक्तों का तांता लगा हुआ है. प्राचीन शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ हर दिन बनी हुई है. इसी कड़ी में आज हम आपको उदयपुर में स्थित विश्व विख्यात भगवान एकलिंग नाथ (Udaipur Ekling temple of lord Shiva) मंदिर के बारे में बताएंगे.

उदयपुर के एकलिंग नाथ महादेव को मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजा जाता है और मेवाड़ के महाराणा खुद को दीवान मानकर राजकार्य संपन्न करते हैं. ऐसा आज से नहीं, बल्कि 1500 वर्षों से होता आया है. सावन के इस पवित्र महीने में हर रोज हजारों की संख्या में भक्त भगवान एकलिंग नाथ के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुंच रहे हैं. प्रभु से अपनी मनोकामनाओं के साथ भगवान से सुख शांति की कामना कर रहे हैं. उदयपुर से 22 किमी और नाथद्वारा से लगभग 26 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर कैलाशपुरी नाम का स्थान है. जहां भगवान एकलिंग नाथजी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर में देश दुनिया से हर साल लाखों की संख्या में भक्त अपने आराध्य देव के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं.

मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजे जाते हैं एकलिंग नाथ...

प्रभु के मंदिर का इतिहासः इतिहासकार चंद्र शेखर शर्मा ने बताया कि नागदा गांव के समीप बप्पा रावल गाय चराने आया करते थे. कहा जाता है कि उस दौरान बप्पा रावल की एक गाय कैलाशपुरी गांव में स्थित शिवलिंग पर जाकर दूध चढ़ाया करती थी. उस मंदिर में हरित राशि नाम के एक महात्मा पूजा-अर्चना करते थे और बप्पा रावल ने उन्हें अपना गुरु भी बनाया था. वहीं, हरित राशि जब मोक्ष की और जा रहे थे तो उनका रथ बप्पारावल के आने से पहले ही रवाना हो गया. हरित राशि को जब बप्पारावल ने देखा तो हाथ जोड़ नमन किया. उसके बाद हरित राशि ने बप्पारावल को मेवाड़ का शासक बना दिया.

पढ़ें : Sawan 2022 : भक्त को भोलेनाथ ने दिए थे साक्षात दर्शन...जानिए 350 वर्ष पुराने इस मंदिर की कहानी

मेवाड़ के चार धामों में से एकः बप्पा रावल ने सन 734 में लकुलेश महादेव पर मंदिर का निर्माण (Udaipur Ekling temple of lord Shiva) कराया. इसके बाद जब मुस्लिम सल्तनत के दौरान दिल्ली के सुल्तान इलतुत मीस ने नागदा गांव पर आक्रमण किया तो पूरा गांव तहस नहस हुआ. साथ ही यह मंदिर भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया. महाराणा मोकल सिंह ने फिर इस मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू किए. जिसके बाद में एकलिंग नाथ महादेव के रूप में जाना जाने लगा. वर्तमान दौर में भी पूर्व राजघराने के सदस्य एकलिंग नाथ के दीवान के रूप में यहां पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं. भगवान एकलिंग नाथ को मेवाड़ के चार धामों में से एक माना जाता है.

इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि 14वीं और 15वीं शताब्दी में महाराणा मोकल सिंह की ओर से नए मंदिर का निर्माण शुरू कराया गया. ये निर्माण कार्य पूर्व महाराणा रायमल के कार्यकाल के दौरान समाप्त हो गया. बताया जाता है कि महाराणा रायमल ने डूंगरपुर से काले पत्थर को मंगवाया और उसके बाद इसी मंदिर परिसर में उस पत्थर को तराशा गया और चौमुखी शिवलिंग का रूप दिया गया. यही शिवलिंग वर्तमान समय में भगवान एकलिंग नाथ के रूप में देशवासियों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.

मेवाड़ का राजा माना जाता हैः बप्पा रावल के काल से मेवाड़ के राजा एकलिंग नाथ को माना जाता है. महाराणा खुद को एकलिंग नाथ के दीवान मानते हुए अपने कार्य को संपादित करते हैं. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि राजतंत्र के दौरान लिखे गए कई पत्रों में जब किसी को महाराणा आदेश देते तो वे पत्र के अंदर मेवाड़ दीवान के आदेश से शब्द का काम में लेते थे. लड़ाई लड़ने के दौरान विजय घोषित करना हो तो मेवाड़ जय स्वामी एकलिंग नाथ के जयकारे लगाए जाते रहे हैं.

पढ़ें : अंबिकेश्वर महादेव मंदिर में भगवान श्री कृष्ण ने की थी पूजा...बहती है श्रद्धा की बयार

पूर्व उपसरपंच अशोक कुमार ने बताया कि भगवान एकलिंग नाथजी के मंदिर में चौमुखी शिवलिंग विद्यमान है. जिसके चार मुख्य हैं. माना जाता है कि यहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सूर्य विद्यमान हैं. इस चौमुखी शिवलिंग को एकलिंग नाथ के नाम से जाना जाता है. इस कैलाशपुरी नगरी को मेवाड़ में काशी के नाम से भी जाना जाता है. सावन मास में इस शिवलिंग पर पूरे महीने में सवा लाख बेल पत्रों का अभिषेक किया जा रहा है. सावन महीने के अंतिम दिन मंदिर के पहाड़ी पर स्थित माता के मंदिर पर बेलपत्र हवन किया जाता है. इसकी मान्यता है कि सवा लाख बिल पत्रों में किसी तरह की कमी रह गई हो तो इस यज्ञ के माध्यम से पूर्ण आहूति दी जाती है.

मिट्टी के बनाए जाते हैं छोटे शिवलिंगः भगवान एकलिंग नाथजी के मंदिर में सावन महीने में पार्थेश्वर के पूजा अनुष्ठान के साथ मिट्टी के शिवलिंग बनाए जाते हैं. ऐसे में प्रतिदिन इनको बनाकर मंदिर के पीछे स्थित इंद्र सरोवर जिसको गंगाजी का चौथा पाया भी कहा जाता है. वहां पर ले जाकर विसर्जन किया जाता है. ऐसे में वहीं से मिट्टी लाकर दूसरे दिन फिर से मिट्टी के शिवलिंग का निर्माण किया जाता है. यह कार्य पूरे सावन माह में अनवरत जारी रहता है.

108 भगवान के अलग-अलग मंदिरः स्थानीय निवासी गोपाल नागदा ने बताया कि भगवान एकलिंग नाथ जी के मंदिर में मुख्य शिवलिंग के अलावा 108 अलग-अलग भगवान के मंदिर स्थित हैं. जिनमें कालका माता, अंबा माता, राम-सीता, जानकी, ब्रह्मा जी, मीराका, गरुड़, भगवान गणेश, नागेश्वर महादेव, इंद्रेश्वर महादेव, और अन्य छोटे-बड़े कई मंदिर विद्यमान है.

भगवान एकलिंग नाथ के दर्शनों का समयः भगवान एकलिंग नाथ के मंदिर के पट समय सुबह 4 बजे 6:30 बजे तक खुले रहते हैं. इसके बाद 10:30 बजे से 1:30 बजे तक दर्शन होते हैं. वहीं शाम को 5:30 से 8:00 बजे तक मंदिर में दर्शन होते हैं. इस दौरान भगवान त्रिकाल पूजा की जाती है.

उदयपुर. सावन के महीने में भगवान शिव के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना (sawan 2022) का दौर जारी है. छोटे से लेकर बड़े मंदिरों तक बोल बम की गूंज सुनाई दे रही है. साथ ही भक्तों का तांता लगा हुआ है. प्राचीन शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ हर दिन बनी हुई है. इसी कड़ी में आज हम आपको उदयपुर में स्थित विश्व विख्यात भगवान एकलिंग नाथ (Udaipur Ekling temple of lord Shiva) मंदिर के बारे में बताएंगे.

उदयपुर के एकलिंग नाथ महादेव को मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजा जाता है और मेवाड़ के महाराणा खुद को दीवान मानकर राजकार्य संपन्न करते हैं. ऐसा आज से नहीं, बल्कि 1500 वर्षों से होता आया है. सावन के इस पवित्र महीने में हर रोज हजारों की संख्या में भक्त भगवान एकलिंग नाथ के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुंच रहे हैं. प्रभु से अपनी मनोकामनाओं के साथ भगवान से सुख शांति की कामना कर रहे हैं. उदयपुर से 22 किमी और नाथद्वारा से लगभग 26 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर कैलाशपुरी नाम का स्थान है. जहां भगवान एकलिंग नाथजी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर में देश दुनिया से हर साल लाखों की संख्या में भक्त अपने आराध्य देव के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं.

मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजे जाते हैं एकलिंग नाथ...

प्रभु के मंदिर का इतिहासः इतिहासकार चंद्र शेखर शर्मा ने बताया कि नागदा गांव के समीप बप्पा रावल गाय चराने आया करते थे. कहा जाता है कि उस दौरान बप्पा रावल की एक गाय कैलाशपुरी गांव में स्थित शिवलिंग पर जाकर दूध चढ़ाया करती थी. उस मंदिर में हरित राशि नाम के एक महात्मा पूजा-अर्चना करते थे और बप्पा रावल ने उन्हें अपना गुरु भी बनाया था. वहीं, हरित राशि जब मोक्ष की और जा रहे थे तो उनका रथ बप्पारावल के आने से पहले ही रवाना हो गया. हरित राशि को जब बप्पारावल ने देखा तो हाथ जोड़ नमन किया. उसके बाद हरित राशि ने बप्पारावल को मेवाड़ का शासक बना दिया.

पढ़ें : Sawan 2022 : भक्त को भोलेनाथ ने दिए थे साक्षात दर्शन...जानिए 350 वर्ष पुराने इस मंदिर की कहानी

मेवाड़ के चार धामों में से एकः बप्पा रावल ने सन 734 में लकुलेश महादेव पर मंदिर का निर्माण (Udaipur Ekling temple of lord Shiva) कराया. इसके बाद जब मुस्लिम सल्तनत के दौरान दिल्ली के सुल्तान इलतुत मीस ने नागदा गांव पर आक्रमण किया तो पूरा गांव तहस नहस हुआ. साथ ही यह मंदिर भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया. महाराणा मोकल सिंह ने फिर इस मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू किए. जिसके बाद में एकलिंग नाथ महादेव के रूप में जाना जाने लगा. वर्तमान दौर में भी पूर्व राजघराने के सदस्य एकलिंग नाथ के दीवान के रूप में यहां पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं. भगवान एकलिंग नाथ को मेवाड़ के चार धामों में से एक माना जाता है.

इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि 14वीं और 15वीं शताब्दी में महाराणा मोकल सिंह की ओर से नए मंदिर का निर्माण शुरू कराया गया. ये निर्माण कार्य पूर्व महाराणा रायमल के कार्यकाल के दौरान समाप्त हो गया. बताया जाता है कि महाराणा रायमल ने डूंगरपुर से काले पत्थर को मंगवाया और उसके बाद इसी मंदिर परिसर में उस पत्थर को तराशा गया और चौमुखी शिवलिंग का रूप दिया गया. यही शिवलिंग वर्तमान समय में भगवान एकलिंग नाथ के रूप में देशवासियों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.

मेवाड़ का राजा माना जाता हैः बप्पा रावल के काल से मेवाड़ के राजा एकलिंग नाथ को माना जाता है. महाराणा खुद को एकलिंग नाथ के दीवान मानते हुए अपने कार्य को संपादित करते हैं. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि राजतंत्र के दौरान लिखे गए कई पत्रों में जब किसी को महाराणा आदेश देते तो वे पत्र के अंदर मेवाड़ दीवान के आदेश से शब्द का काम में लेते थे. लड़ाई लड़ने के दौरान विजय घोषित करना हो तो मेवाड़ जय स्वामी एकलिंग नाथ के जयकारे लगाए जाते रहे हैं.

पढ़ें : अंबिकेश्वर महादेव मंदिर में भगवान श्री कृष्ण ने की थी पूजा...बहती है श्रद्धा की बयार

पूर्व उपसरपंच अशोक कुमार ने बताया कि भगवान एकलिंग नाथजी के मंदिर में चौमुखी शिवलिंग विद्यमान है. जिसके चार मुख्य हैं. माना जाता है कि यहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सूर्य विद्यमान हैं. इस चौमुखी शिवलिंग को एकलिंग नाथ के नाम से जाना जाता है. इस कैलाशपुरी नगरी को मेवाड़ में काशी के नाम से भी जाना जाता है. सावन मास में इस शिवलिंग पर पूरे महीने में सवा लाख बेल पत्रों का अभिषेक किया जा रहा है. सावन महीने के अंतिम दिन मंदिर के पहाड़ी पर स्थित माता के मंदिर पर बेलपत्र हवन किया जाता है. इसकी मान्यता है कि सवा लाख बिल पत्रों में किसी तरह की कमी रह गई हो तो इस यज्ञ के माध्यम से पूर्ण आहूति दी जाती है.

मिट्टी के बनाए जाते हैं छोटे शिवलिंगः भगवान एकलिंग नाथजी के मंदिर में सावन महीने में पार्थेश्वर के पूजा अनुष्ठान के साथ मिट्टी के शिवलिंग बनाए जाते हैं. ऐसे में प्रतिदिन इनको बनाकर मंदिर के पीछे स्थित इंद्र सरोवर जिसको गंगाजी का चौथा पाया भी कहा जाता है. वहां पर ले जाकर विसर्जन किया जाता है. ऐसे में वहीं से मिट्टी लाकर दूसरे दिन फिर से मिट्टी के शिवलिंग का निर्माण किया जाता है. यह कार्य पूरे सावन माह में अनवरत जारी रहता है.

108 भगवान के अलग-अलग मंदिरः स्थानीय निवासी गोपाल नागदा ने बताया कि भगवान एकलिंग नाथ जी के मंदिर में मुख्य शिवलिंग के अलावा 108 अलग-अलग भगवान के मंदिर स्थित हैं. जिनमें कालका माता, अंबा माता, राम-सीता, जानकी, ब्रह्मा जी, मीराका, गरुड़, भगवान गणेश, नागेश्वर महादेव, इंद्रेश्वर महादेव, और अन्य छोटे-बड़े कई मंदिर विद्यमान है.

भगवान एकलिंग नाथ के दर्शनों का समयः भगवान एकलिंग नाथ के मंदिर के पट समय सुबह 4 बजे 6:30 बजे तक खुले रहते हैं. इसके बाद 10:30 बजे से 1:30 बजे तक दर्शन होते हैं. वहीं शाम को 5:30 से 8:00 बजे तक मंदिर में दर्शन होते हैं. इस दौरान भगवान त्रिकाल पूजा की जाती है.

Last Updated : Aug 10, 2022, 8:43 AM IST
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