उदयपुर. यह कहानी आपके मन को आशाओं से भर देगी. राजस्थान के मेवाड़ इलाके के पिपलांत्री गांव की यह कहानी इस कदर चर्चा का विषय बनी कि अब डेनमार्क के स्कूली पाठ्यक्रम (Denmark School Curriculum) का हिस्सा है. पिपलांत्री का यह रक्षा सूत्र बस इतना सा है कि इंसान प्रकृति से प्रेम करे, उसकी रक्षा करे तो बदले में प्रकृति (nature) भी इंसान की रक्षा करती है.
बात है साल 2005 की. जब राजसमंद जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में श्याम सुंदर पालीवाल (Shyam Sundar Paliwal) सरपंच बने थे. तब पर्यावरण को लेकर यहां इतनी जागरुकता नहीं थी. गांव के आस-पास संगमरमर की खदानें (marble quarries) थीं, जिसकी स्लरी (marble slurry) यानी मलबे के तले दबकर पौधे पनपने की उम्मीदें दम तोड़ देती थीं. तब यह आम बात थी.
सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बिटिया बहुत कम उम्र में दुनिया को अलविदा कह गई थी. यह दुख उन्हें भीतर ही भीतर कचोटता था. बेटी की याद में श्याम सुंदर ने पौधा लगाया. अब उस पौधे में उन्हें अपनी बिटिया नजर आने लगी. सरपंच होने के नाते उन्होंने पौधारोपण को एक मुहिम बना दिया. गांव में किसी के यहां भी बेटी का जन्म होता तो पूरा गांव उत्सव की तरह बिटिया के नाम का पौधा लगाता.
इस तरह एक बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाने की परंपरा शुरू हुई, किसी की मौत होती तो उसकी याद में 11 पौधे लगाए जाते. बेटी जब बड़ी होती तो वह पौधे को राखी बांधती, बिटिया को पौधे में भाई नजर आता. आए भी क्यों नहीं, उसी बेटी के जन्म पर तो यह पौधा लगाया गया था. इस तरह इस गांव का कुदरत के साथ रिश्ता जुड़ता चला गया.
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22 अगस्त को रक्षाबंधन का पर्व (festival of rakshabandhan) मनाया जाएगा. बहनें अपने भाईयों की कलई पर रक्षा सूत्र बांधेंगी. उनकी दीर्घायु और उन्नति की कामना करेंगी. लेकिन आज इस गांव में रक्षा बंधन के मायने कुछ ज्यादा और बड़े हैं. इस गांव की बालिकाएं अपने ही अंदाज में रक्षाबंधन का पर्व मनाती हैं. कुदरत की रक्षा में ही आत्म रक्षा है...बस इसी संदेश के साथ यहां हर बार पूरे गांव की महिलाएं, बेटियां-बच्चियां सज-संवर कर आती हैं, अपने भाई वृक्षों को राखियां बांधती हैं और महिलाएं गांव में नवजात बच्चों के नाम पर पौधे लगाती हैं. पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल जब गांव की हरियाली (Greenery) को देखते हैं तो लगता है कि उनकी दिवंगत बिटिया की मुस्कान फैलकर हरी-भरी हो गई है.
पर्यावरण संरक्षण (protection of Nature) का यह पाठ डेनमार्क में पढ़ाया जा रहा है. पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल कहते हैं कि पिछले साल कोरोना संक्रमण (corona infection) के कारण रक्षा बंधन का यह पर्व इस तरह नहीं मनाया गया. लेकिन इस बार दो दिन का कार्यक्रम रखा है. गांव की 48 बेटियों ने पौधारोपण किया है. सभी ने वृक्षों को राखियां बांधी हैं. श्याम सुंदर कहते हैं कि कोरोना काल में हमने देखा कि लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं. ऑक्सीजन सिलेंडर (oxygen cylinder) नहीं मिल रहे हैं. लेकिन ऑक्सीजन के भंडार इन वृक्षों की रक्षा की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. बस इन्हीं को बचाने और संवारने की यह मुहिम है.
पिपलांत्री गांव को अब आदर्श ग्राम, निर्मल ग्राम, वृक्ष ग्राम, कन्या ग्राम जैसे उपनामों से जाना जाता है. पेड़ों को राखियां बांधने वाले यहां के अनोखे रक्षाबंधन पर्व की तैयारियां कई दिन पहले शुरू हो जाती हैं. अब सिर्फ पिपलांत्री ही नहीं, बल्कि आस-पास के गांवों से भी कन्याएं और महिलाएं जुटती हैं, हर्षोल्लास के साथ गीत गाती हुईं, ढोल-नगाड़ों की थाप पर थिरकती हुईं, मन में उत्सव का उल्लास लिये पौधारोपण करती हैं और पेड़ों को राखियां बांधती हैं. यहां कोई भी पौधा पानी की कमी से नहीं सूखता. क्योंकि राखी बांधना औपचारिकता नहीं, बल्कि ये महिलाएं पौधे की रक्षा करने का संकल्प भी लेती हैं.
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एक रक्षाबंधन पर्व से दूसरे रक्षाबंधन पर्व के बीच गांव में सालभर में जितनी भी बेटियों ने जन्म लिया, उनके नाम पर पौधारोपण होता है. इस बार यह आयोजन दो दिन का रहा. अब यह पर्व पर्यावरण का सबसे बड़ा महोत्सव बन चुका है. इसके जरिये बेटी-पानी-जंगल बचाने की मुहिम चलाई जा रही है.
कभी संगमरमर की स्लरी से अटा यह गांव अब हरा-भरा दिखाई देता है. बेटी के जन्म पर जो पौधा लगाया जाता है, उसका बाकायदा नामकरण भी किया जाता है, ताकि वृक्षों के झुरमुट में बहन अपने भाई को पहचान सके और राखी बांध सके. वाकई, प्रकृति को बचाने और संवारने में इस गांव की भूमिका अद्भुत है.