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नागौरः अंशदान जमा करवाने के बाद भी 103 घरों में नहीं बने जलग्रहण योजना के टांके, अब बजट लेप्स होने का खतरा

बरसात के पानी को संग्रहित करने के लिए प्रदेश में जलग्रहण योजना की शुरुआत की गई थी. प्रदेश और जिले में इसके सकारात्मक परिणाम भी देखे गए थे. लेकिन नागौर में अब इस योजना से जुड़े अधिकारियों पर ग्रामीण ढिलाई और मनमानी करने का आरोप लगा रहे हैं. पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट...

नागौर में जलग्रहण योजना की स्थिति, Nagaur News
जलग्रहण योजना का नहीं मिल रहा फायदा
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Published : Feb 18, 2020, 11:11 PM IST

नागौर. पानी का मोल राजस्थान और खासकर नागौर जिले के लोगों से ज्यादा कौन जान सकता है. रेतीले इलाकों में पानी को अमूल्य माना जाता है. इसलिए नागौर जिले के ग्रामीण इलाकों में बरसात के पानी को सहेजने की पुरानी परंपरा रही है. ताकि इसी पानी को साल भर पीने के काम में लिया जा सके.

जलग्रहण योजना का नहीं मिल रहा फायदा

बरसात के पानी को सहेजने के लिए सरकार भी समय-समय पर अलग-अलग योजनाएं चलाती है. हाल ही में जलग्रहण योजना इसका एक उदाहरण है. लेकिन नागौर जिले के बालवा गांव के ग्रामीणों को सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना का कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है.

पढ़ें- स्पेशल : 70 दिन की नहर बंदी प्रस्तावित, सिर्फ 40 दिन मिलेगा पानी

ग्रामीणों का कहना है, कि पिछले साल जुलाई में जलग्रहण योजना के तहत गांव में 103 टांके बनाने के लिए टेंडर जारी हुए थे. जियो टैगिंग सहित अन्य प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई और ग्रामीणों ने अपनी अंशदान की राशि भी जमा करवा दी. इसके बाद भी अभी तक उनके टांके नहीं बने हैं. ग्रामीणों ने जलग्रहण योजना से जुड़े अधिकारियों पर मनमानी और हठधर्मिता के आरोप भी लगाए हैं.

वहीं, जल ग्रहण योजना के अधिकारियों का कहना है, कि पिछले साल जुलाई में टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी. लेकिन टांके बनाने की दरों को लेकर विरोधाभास होने के कारण टेंडर की फाइल जयपुर मंगाई गई और टेंडर की प्रक्रिया निरस्त कर दी गई. उन्होंने बताया, कि फिर नए सिरे से टेंडर जारी किए गए. लेकिन पहली बार की टेंडर प्रक्रिया में शामिल ठेकेदारों ने कोर्ट में परिवाद दायर कर दिया और कोर्ट ने दुबारा निकाले गए टेंडर पर स्टे जारी कर दिया है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: राजस्थान का 'शापित' गांव, यहां दो मंजिला मकान बनाने में डरते हैं लोग

अधिकारियों का यह भी कहना है, कि उन्होंने अपनी तरफ से कोर्ट में जवाब पेश कर दिया है और सरकार को भी रिपोर्ट दे दी है. उनका कहना है, कि जैसे ही कोर्ट से फैसला आएगा, इस संबंध में आगे की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी.

वहीं, 2 बार टेंडर प्रक्रिया होने के बावजूद भी ग्रामीणों को सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. ग्रामीणों का कहना है, कि यदि जल्द ही उनके टांके बनने शुरू नहीं हुए तो मार्च के अंत में इस योजना का बजट लेप्स हो जाएगा. इसके बाद उन्हें नए सिरे से टांके बनवाने के लिए कवायद शुरू करनी पड़ेगी, जिससे आने वाले गर्मी में उन्हें पानी की किल्लत का सामना भी करना पड़ सकता है.

नागौर. पानी का मोल राजस्थान और खासकर नागौर जिले के लोगों से ज्यादा कौन जान सकता है. रेतीले इलाकों में पानी को अमूल्य माना जाता है. इसलिए नागौर जिले के ग्रामीण इलाकों में बरसात के पानी को सहेजने की पुरानी परंपरा रही है. ताकि इसी पानी को साल भर पीने के काम में लिया जा सके.

जलग्रहण योजना का नहीं मिल रहा फायदा

बरसात के पानी को सहेजने के लिए सरकार भी समय-समय पर अलग-अलग योजनाएं चलाती है. हाल ही में जलग्रहण योजना इसका एक उदाहरण है. लेकिन नागौर जिले के बालवा गांव के ग्रामीणों को सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना का कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है.

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ग्रामीणों का कहना है, कि पिछले साल जुलाई में जलग्रहण योजना के तहत गांव में 103 टांके बनाने के लिए टेंडर जारी हुए थे. जियो टैगिंग सहित अन्य प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई और ग्रामीणों ने अपनी अंशदान की राशि भी जमा करवा दी. इसके बाद भी अभी तक उनके टांके नहीं बने हैं. ग्रामीणों ने जलग्रहण योजना से जुड़े अधिकारियों पर मनमानी और हठधर्मिता के आरोप भी लगाए हैं.

वहीं, जल ग्रहण योजना के अधिकारियों का कहना है, कि पिछले साल जुलाई में टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी. लेकिन टांके बनाने की दरों को लेकर विरोधाभास होने के कारण टेंडर की फाइल जयपुर मंगाई गई और टेंडर की प्रक्रिया निरस्त कर दी गई. उन्होंने बताया, कि फिर नए सिरे से टेंडर जारी किए गए. लेकिन पहली बार की टेंडर प्रक्रिया में शामिल ठेकेदारों ने कोर्ट में परिवाद दायर कर दिया और कोर्ट ने दुबारा निकाले गए टेंडर पर स्टे जारी कर दिया है.

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अधिकारियों का यह भी कहना है, कि उन्होंने अपनी तरफ से कोर्ट में जवाब पेश कर दिया है और सरकार को भी रिपोर्ट दे दी है. उनका कहना है, कि जैसे ही कोर्ट से फैसला आएगा, इस संबंध में आगे की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी.

वहीं, 2 बार टेंडर प्रक्रिया होने के बावजूद भी ग्रामीणों को सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. ग्रामीणों का कहना है, कि यदि जल्द ही उनके टांके बनने शुरू नहीं हुए तो मार्च के अंत में इस योजना का बजट लेप्स हो जाएगा. इसके बाद उन्हें नए सिरे से टांके बनवाने के लिए कवायद शुरू करनी पड़ेगी, जिससे आने वाले गर्मी में उन्हें पानी की किल्लत का सामना भी करना पड़ सकता है.

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