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नवरात्रि विशेष: राजस्थान में देवी का एकमात्र मंदिर जहां हर दिन दूध से होता है अभिषेक...5000 साल से भी पुराना है इतिहास

शारदीय नवरात्रि 29 सितंबर से शुरू हो रहे. राजस्थान को भक्ति और शक्ति की धरती कहा जाता है. यहां एक से बढ़कर एक कई ऐसे चमत्कारी स्थान है. जहां देशभर से लोग दर्शन करने आते हैं. ऐसा ही एक चमत्कारी स्थान है दधिमती माता का मंदिर. जो नागौर जिले के गोठ मांगलोद गांव में है. जहां नवरात्रि में 9 दिन तक विशाल मेला भरता है. जिसमें देशभर यहां श्रद्धालु आते है.

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Published : Sep 28, 2019, 6:32 PM IST

dadhimati mata temple, दधिमती माता का मंदिर

नागौर. शारदीय नवरात्रि के पावन मौके पर आपको जिले के गोठ मांगलोद गांव के चमत्कारी दधिमती माता का मंदिर के बारे में बता रहे है. जो देशभर में एकमात्र ऐसा स्थान है. जहां देवी का रोज दूध से अभिषेक होता है. नागौर से करीब 35 किलोमीटर दूर दधिमती माता का मंदिर है. जो देशभर के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां साल में दो बार चैत्र और अश्विन माह के नवरात्र में 9 दिन तक विशाल मेला भरता है. जिसमें प्रदेश के कोने-कोने के साथ ही देश के अलग-अलग इलाकों से भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं.

राजस्थान में देवी का एकमात्र मंदिर जहां हर दिन दूध से होता है अभिषेक

मंदिर का इतिहास 5000 साल से भी पुराना
इस स्थान से जुड़ी कई ऐसी मान्यताएं है जो श्रद्धालुओं के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है. बताया जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है. पुजारियों से मिली जानकारी के मुताबिक करीब 2027 साल पहले का एक लिखित अभिलेख उनके पास है. लेकिन यह मंदिर इससे भी बहुत ज्यादा पुराना है. यहां शक्ति स्वरूपा देवी की आकर्षक प्रतिमा है. जिसका हर दिन दूध से अभिषेक किया जाता है. मंदिर की व्यवस्थाओं की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट भी बना हुआ है.

पढ़ें- बंगाली परंपराओं की तर्ज पर अजमेर में बन रही दुर्गा प्रतिमाएं

मंदिर का अनोखा स्तंभ जो जमीन पर नहीं टिका
इस मंदिर से जुड़ी जो सबसे चमत्कारी बात है. वो यह है कि यहां एक अनोखा स्तंभ है. माना जाता है कि यह स्तंभ जमीन पर टिका हुआ नहीं है. जमीन और स्तंभ के बीच में खाली जगह है. इस चमत्कारी स्तंभ को मनोकामना स्तंभ भी कहा जाता है और मान्यता है कि इस पर धागा और नारियल बांधकर जो भी मनोकामना मांगी जाती है. वह देवी अवश्य पूरी करती है.

मंदिर में कभी ना सूखने वाला कपाल कुंड
वहीं मंदिर के पास ही कपाल कुंड के नाम से एक सरोवर है. मान्यता है कि जहां कभी पानी सूखता नहीं है. इस मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि कपाल कुंड में सात बावड़ियां है. इन्हीं में भूगर्भ का पानी लगातार आता है. यही कारण है कि यहां कभी पानी सूखता नहीं है. चैत्र और आश्विन के नवरात्र में सप्तमी के दिन मंदिर से एक पालकी में देवी के प्रतीक स्वरूप को बिठाकर कपाल कुंड तक लाया जाता है. यह उस प्रतिमा की प्रतिकृति है. जो मंदिर के गर्भगृह में विराजमान है. इस शोभायात्रा में पुजारियों के साथ ही देशभर से आने वाले श्रद्धालु शामिल होते हैं.

किसी तीर्थ से कम नहीं कपाल कुंड का महत्व
इस स्थान को कई जानकार राजा मांधाता और उनकी तपस्या से भी जोड़ते हैं. कहते हैं कि राजा मांधाता ने ही यहां कपालकुंड बनवाया था और यज्ञ के लिए इसी का जल इस्तेमाल किया था. आज कपाल कुंड का महत्व किसी तीर्थ से कम नहीं है और यहां स्नान करने का भी अपना अलग ही महत्व है.

नवरात्रि के 9 दिनों में देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुंचते है
नवरात्रि के 9 दिनों में यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. जिनके लिए मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय प्रशासन की ओर से सुरक्षा ठहरने और अन्य सुविधाओं के लिए माकूल इंतजाम किए जाते हैं. मंदिर परिसर में खंभे और गुंबद छीतर के पत्थरों से बने हैं. जिनपर बारीक कारीगरी की गई है.

पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया
मंदिर परिसर के गुंबद की एक और खास बात यह है कि इस पर रामायण से जुड़े प्रसंगों को पत्थर पर बारीक कारीगरी के माध्यम से उकेरा गया है. इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे सरकार के पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है. यह बात अलग है कि अभी भी यहां सरकार की ओर से उस स्तर की व्यवस्थाएं नहीं की गई हैं. जिसका वाकई में यह स्थान हकदार है.

पढ़ें- आखिर क्यों रहते हैं शनि किसी राशि में पूरे ढाई साल​​​​​​​

वहीं एक नजर शारदीय नवरात्रि की तिथियां पर भी..

शारदीय नवरात्रि की तिथियां
29 सितंबर 2019: नवरात्रि का पहला दिन, प्रतिपदा, कलश स्‍थापना, चंद्र दर्शन और शैलपुत्री पूजन.
30 सितंबर 2019: नवरात्रि का दूसरा दिन, द्व‍ितीया, बह्मचारिणी पूजन.
01 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का तीसरा दिन, तृतीया, चंद्रघंटा पूजन.
02 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का चौथा दिन, चतुर्थी, कुष्‍मांडा पूजन.
03 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का पांचवां दिन, पंचमी, स्‍कंदमाता पूजन.
04 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का छठा दिन, षष्‍ठी, सरस्‍वती पूजन.
05 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का सातवां दिन, सप्‍तमी, कात्‍यायनी पूजन.
06 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का आठवां दिन, अष्‍टमी, कालरात्रि पूजन, कन्‍या पूजन.
07 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का नौवां दिन, नवमी, महागौरी पूजन, कन्‍या पूजन, नवमी हवन, नवरात्रि पारण

नागौर. शारदीय नवरात्रि के पावन मौके पर आपको जिले के गोठ मांगलोद गांव के चमत्कारी दधिमती माता का मंदिर के बारे में बता रहे है. जो देशभर में एकमात्र ऐसा स्थान है. जहां देवी का रोज दूध से अभिषेक होता है. नागौर से करीब 35 किलोमीटर दूर दधिमती माता का मंदिर है. जो देशभर के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां साल में दो बार चैत्र और अश्विन माह के नवरात्र में 9 दिन तक विशाल मेला भरता है. जिसमें प्रदेश के कोने-कोने के साथ ही देश के अलग-अलग इलाकों से भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं.

राजस्थान में देवी का एकमात्र मंदिर जहां हर दिन दूध से होता है अभिषेक

मंदिर का इतिहास 5000 साल से भी पुराना
इस स्थान से जुड़ी कई ऐसी मान्यताएं है जो श्रद्धालुओं के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है. बताया जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है. पुजारियों से मिली जानकारी के मुताबिक करीब 2027 साल पहले का एक लिखित अभिलेख उनके पास है. लेकिन यह मंदिर इससे भी बहुत ज्यादा पुराना है. यहां शक्ति स्वरूपा देवी की आकर्षक प्रतिमा है. जिसका हर दिन दूध से अभिषेक किया जाता है. मंदिर की व्यवस्थाओं की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट भी बना हुआ है.

पढ़ें- बंगाली परंपराओं की तर्ज पर अजमेर में बन रही दुर्गा प्रतिमाएं

मंदिर का अनोखा स्तंभ जो जमीन पर नहीं टिका
इस मंदिर से जुड़ी जो सबसे चमत्कारी बात है. वो यह है कि यहां एक अनोखा स्तंभ है. माना जाता है कि यह स्तंभ जमीन पर टिका हुआ नहीं है. जमीन और स्तंभ के बीच में खाली जगह है. इस चमत्कारी स्तंभ को मनोकामना स्तंभ भी कहा जाता है और मान्यता है कि इस पर धागा और नारियल बांधकर जो भी मनोकामना मांगी जाती है. वह देवी अवश्य पूरी करती है.

मंदिर में कभी ना सूखने वाला कपाल कुंड
वहीं मंदिर के पास ही कपाल कुंड के नाम से एक सरोवर है. मान्यता है कि जहां कभी पानी सूखता नहीं है. इस मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि कपाल कुंड में सात बावड़ियां है. इन्हीं में भूगर्भ का पानी लगातार आता है. यही कारण है कि यहां कभी पानी सूखता नहीं है. चैत्र और आश्विन के नवरात्र में सप्तमी के दिन मंदिर से एक पालकी में देवी के प्रतीक स्वरूप को बिठाकर कपाल कुंड तक लाया जाता है. यह उस प्रतिमा की प्रतिकृति है. जो मंदिर के गर्भगृह में विराजमान है. इस शोभायात्रा में पुजारियों के साथ ही देशभर से आने वाले श्रद्धालु शामिल होते हैं.

किसी तीर्थ से कम नहीं कपाल कुंड का महत्व
इस स्थान को कई जानकार राजा मांधाता और उनकी तपस्या से भी जोड़ते हैं. कहते हैं कि राजा मांधाता ने ही यहां कपालकुंड बनवाया था और यज्ञ के लिए इसी का जल इस्तेमाल किया था. आज कपाल कुंड का महत्व किसी तीर्थ से कम नहीं है और यहां स्नान करने का भी अपना अलग ही महत्व है.

नवरात्रि के 9 दिनों में देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुंचते है
नवरात्रि के 9 दिनों में यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. जिनके लिए मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय प्रशासन की ओर से सुरक्षा ठहरने और अन्य सुविधाओं के लिए माकूल इंतजाम किए जाते हैं. मंदिर परिसर में खंभे और गुंबद छीतर के पत्थरों से बने हैं. जिनपर बारीक कारीगरी की गई है.

पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया
मंदिर परिसर के गुंबद की एक और खास बात यह है कि इस पर रामायण से जुड़े प्रसंगों को पत्थर पर बारीक कारीगरी के माध्यम से उकेरा गया है. इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे सरकार के पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है. यह बात अलग है कि अभी भी यहां सरकार की ओर से उस स्तर की व्यवस्थाएं नहीं की गई हैं. जिसका वाकई में यह स्थान हकदार है.

पढ़ें- आखिर क्यों रहते हैं शनि किसी राशि में पूरे ढाई साल​​​​​​​

वहीं एक नजर शारदीय नवरात्रि की तिथियां पर भी..

शारदीय नवरात्रि की तिथियां
29 सितंबर 2019: नवरात्रि का पहला दिन, प्रतिपदा, कलश स्‍थापना, चंद्र दर्शन और शैलपुत्री पूजन.
30 सितंबर 2019: नवरात्रि का दूसरा दिन, द्व‍ितीया, बह्मचारिणी पूजन.
01 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का तीसरा दिन, तृतीया, चंद्रघंटा पूजन.
02 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का चौथा दिन, चतुर्थी, कुष्‍मांडा पूजन.
03 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का पांचवां दिन, पंचमी, स्‍कंदमाता पूजन.
04 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का छठा दिन, षष्‍ठी, सरस्‍वती पूजन.
05 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का सातवां दिन, सप्‍तमी, कात्‍यायनी पूजन.
06 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का आठवां दिन, अष्‍टमी, कालरात्रि पूजन, कन्‍या पूजन.
07 अक्‍टूबर 2019: नवरात्रि का नौवां दिन, नवमी, महागौरी पूजन, कन्‍या पूजन, नवमी हवन, नवरात्रि पारण

Intro:राजस्थान को भक्ति और शक्ती की धरती कहा जाता है। यहां एक से बढ़कर एक कई ऐसे चमत्कारी स्थान है। जहां देशभर से लोग दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि इन स्थानों पर भक्त जो भी मनोकामना लेकर आते हैं। वह जरूर पूरी होती है। ऐसा ही एक चमत्कारी स्थान है नागौर जिले में गोठ मांगलोद नाम के गांव में दधिमती माता का मंदिर। चैत्र और अश्विन महीने के नवरात्र में यहां देशभर से श्रद्धालु आते हैं और 9 दिन तक विशाल मेला भरता है। यह एकमात्र ऐसा स्थान है। जहां देवी का रोज दूध से अभिषेक होता है।


Body:नागौर से करीब 35 किलोमीटर दूर गोठ मांगलोद में दधिमती माता का मंदिर है। जो देशभर के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां साल में दो बार चैत्र और अश्विन माह के नवरात्र में 9 दिन तक विशाल मेला भरता है। जिसमें प्रदेश के कोने-कोने के साथ ही देश के अलग-अलग इलाकों से भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं। इस स्थान से जुड़ी कई ऐसी मान्यताएं है जो श्रद्धालुओं के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है। बताया जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पुजारियों का कहना है की करीब 2027 साल पहले का एक लिखित अभिलेख उनके पास है। लेकिन यह मंदिर इससे भी बहुत ज्यादा पुराना है। यहां शक्ति स्वरूपा देवी की आकर्षक प्रतिमा है। जिसका हर दिन दूध से अभिषेक किया जाता है। मंदिर की व्यवस्थाओं की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट भी बना हुआ है। इस मंदिर से जुड़ी जो सबसे चमत्कारी बात है। वह यह कि यहां एक अनोखा स्तंभ है। माना जाता है कि यह स्तंभ जमीन पर टिका हुआ नहीं है। जमीन और स्तंभ के बीच में खाली जगह है। इस चमत्कारी स्तंभ को मनोकामना स्तंभ भी कहा जाता है और मान्यता है कि इस पर धागा और नारियल बांधकर जो भी मनोकामना मांगी जाती है। वह देवी अवश्य पूरी करती है। मंदिर के पास ही कपाल कुंड के नाम से एक सरोवर है। जहां कभी पानी सूखता नहीं है। इस मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि कपाल कुंड में सात बावडियां है। इन्हीं में भूगर्भ का पानी लगातार आता है। यही कारण है कि यहां कभी पानी सूखता नहीं है। चैत्र और आश्विन के नवरात्र में सप्तमी के दिन मंदिर से एक पालकी में देवी के प्रतीक स्वरूप को बिठाकर कपाल कुंड तक लाया जाता है। यह उस प्रतिमा की प्रतिकृति है। जो मंदिर के गर्भगृह में विराजमान है। इस शोभायात्रा में पुजारियों के साथ ही देशभर से आने वाले श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस स्थान को कई जानकार राजा मांधाता और उनकी तपस्या से भी जोड़ते हैं। कहते हैं कि राजा मांधाता ने ही यहां कपालकुंड बनवाया था और यज्ञ के लिए इसी का जल इस्तेमाल किया था। आज कपाल कुंड का महत्व किसी तीर्थ से कम नहीं है और यहां स्नान करने का भी अपना अलग ही महत्व है।


Conclusion:नवरात्र के 9 दिनों में यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। जिनके लिए मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय प्रशासन की ओर से सुरक्षा ठहरने और अन्य सुविधाओं के लिए माकूल इंतजाम आप किए जाते हैं। मंदिर परिसर में खंभे और गुंबज छीतर के पत्थरों से बने हैं। जिनपर बारीक कारीगरी की गई है। मंदिर परिसर के गुंबज की एक और खास बात यह है कि इस पर रामायण से जुड़े प्रसंगों को पत्थर पर बारीक कारीगरी के माध्यम से उकेरा गया है। इस मंदिर के एतिहासिक महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे सरकार के पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है। यह बात अलग है कि अभी भी यहां सरकार की ओर से उस स्तर की व्यवस्थाएं नहीं की गई हैं। जिसका वाकई में यह स्थान हकदार है।
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बाईट 1- अनिल पुजारी।
बाईट 2- भंवरलाल पुजारी।
बाईट 3- पुष्करराज पुजारी।
बाईट 4- पुष्करराज पुजारी।
बाईट 5- पुष्करराज पुजारी।
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