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स्पेशलः बिना राशन कार्ड सरकारी मदद से महरूम...जिंदा रहने के लिए पड़ोसियों पर निर्भर हैं प्रवासी

नागौर में यूपी के पांच परिवार सात साल से रह रहे हैं. लेकिन जब से लॉकडाउन लगा है ये परिवार अपना पेट भरने के लिए पड़ोसियों पर निर्भर है. इन लोगों के पास नागौर का राशन कार्ड नहीं होने के कारण सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता भी नहीं मिल पा रही है.

पड़ोसियों पर निर्भर, Depend on neighbors
लॉकडाउन में पेट भरने के लिए पड़ोसियों पर निर्भर
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Published : Apr 25, 2020, 12:25 PM IST

नागौर. कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को बढ़ने से रोकने के लिए पूरा देश लॉकडाउन का सामना कर रहा है. इस बीच अपना गांव-शहर या प्रदेश छोड़कर नागौर में कई सालों से रह रहे कई लोग लॉकडाउन की सख्ती में खाने-पीने तक के लिए आस-पड़ोस के लोगों पर निर्भर हैं. इसके साथ ही कई घुमंतू परिवार ऐसे भी हैं जिनका राशन कार्ड तक नहीं हैं. ऐसे में उन्हें इस विकट हालात में भी सरकार की ओर से दी जा रही रसद सुविधाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा हैं.

लॉकडाउन में पेट भरने के लिए पड़ोसियों पर निर्भर

हालांकि, किसी भी सरकारी दफ्तर में इनका पुख्ता आंकड़ा नहीं हैं. लेकिन सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों की माने तो जिले में ऐसे परिवार 3 हजार के आसपास हैं. जिला मुख्यालय पर डेह रोड स्थित कॉलोनी के कुछ घरों में उत्तर प्रदेश के कुछ परिवार करीब सात साल से रह रहे हैं. ये लोग यहां जूस और अन्य खाने पीने की वस्तुओं के ठेले लगाकर अपना और परिजनों का पेट भरते हैं. लॉकडाउन के कारण काम धंधा चौपट हो चुका है. हालांकि, सरकार जरूरतमंद परिवारों को राशन सामग्री दे रही है. लेकिन इन लोगों के पास नागौर का राशन कार्ड नहीं होने के कारण उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता भी नहीं मिल पा रही है.

पढ़ेंः नागौर: PWD ठेकेदारों ने Covid-19 राहत कोष में दान किए 4.92 लाख रुपए दिए

ऐसे में ये लोग अपना पेट भरने के लिए आस पड़ोस के लोगों और कुछ सामाजिक संगठनों पर निर्भर होकर रह गए हैं. उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के रहने वाले अखिलेश का कहना है कि जो थोड़े बहुत रुपए थे, वह भी शुरुआती दिनों में खत्म हो गए. उसके बाद आस पास रहने वाले लोग जो दे देते थे उसी में गुजारा करना पड़ता था. सरकार की ओर से दी जाने वाली मदद का फायदा उन्हें नहीं मिल पा रहा है. अब सामाजिक संगठनों के लोग सुबह-शाम खाने के पैकेट दे जाते हैं और उसी से गुजरा चल रहा है. उनका कहना है कि आने-जाने की कोई व्यवस्था हो तो वे अपने गांव लौटना चाहते हैं. इनमें से कई परिवार खेतों में और दूसरी जगहों पर मजदूरी करके अपना और परिजनों का पेट भरते हैं. लेकिन इन हालात में कोई काम नहीं मिलने से उनके सामने भी रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है. ऐसे परिवार जिले में करीब 3 हजार हैं.

पढ़ेंः जालोरः युवक का कंकाल मिलने से फैली सनसनी

जिले में खाद्य सुरक्षा से जुड़े 5.76 लाख परिवारों को दिया जा रहा है मुफ्त गेंहू. केंद्र और राज्य सरकार की ओर से जरूरतमंद परिवारों को प्रति व्यक्ति पांच-पांच किलो गेंहू मुफ्त दिया जा रहा है. इसका फायदा नागौर जिले के 5.76 लाख उन परिवारों को मिल रहा है जो खाद्य सुरक्षा योजना से जुड़े हुए हैं. लेकिन जो गरीब परिवार किसी कारण से अपना नाम खाद्य सुरक्षा योजना में नहीं जुड़वा पाए उन्हें सरकार की ओर से मुफ्त गेंहू नहीं मिल पा रहे हैं.

नागौर. कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को बढ़ने से रोकने के लिए पूरा देश लॉकडाउन का सामना कर रहा है. इस बीच अपना गांव-शहर या प्रदेश छोड़कर नागौर में कई सालों से रह रहे कई लोग लॉकडाउन की सख्ती में खाने-पीने तक के लिए आस-पड़ोस के लोगों पर निर्भर हैं. इसके साथ ही कई घुमंतू परिवार ऐसे भी हैं जिनका राशन कार्ड तक नहीं हैं. ऐसे में उन्हें इस विकट हालात में भी सरकार की ओर से दी जा रही रसद सुविधाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा हैं.

लॉकडाउन में पेट भरने के लिए पड़ोसियों पर निर्भर

हालांकि, किसी भी सरकारी दफ्तर में इनका पुख्ता आंकड़ा नहीं हैं. लेकिन सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों की माने तो जिले में ऐसे परिवार 3 हजार के आसपास हैं. जिला मुख्यालय पर डेह रोड स्थित कॉलोनी के कुछ घरों में उत्तर प्रदेश के कुछ परिवार करीब सात साल से रह रहे हैं. ये लोग यहां जूस और अन्य खाने पीने की वस्तुओं के ठेले लगाकर अपना और परिजनों का पेट भरते हैं. लॉकडाउन के कारण काम धंधा चौपट हो चुका है. हालांकि, सरकार जरूरतमंद परिवारों को राशन सामग्री दे रही है. लेकिन इन लोगों के पास नागौर का राशन कार्ड नहीं होने के कारण उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता भी नहीं मिल पा रही है.

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ऐसे में ये लोग अपना पेट भरने के लिए आस पड़ोस के लोगों और कुछ सामाजिक संगठनों पर निर्भर होकर रह गए हैं. उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के रहने वाले अखिलेश का कहना है कि जो थोड़े बहुत रुपए थे, वह भी शुरुआती दिनों में खत्म हो गए. उसके बाद आस पास रहने वाले लोग जो दे देते थे उसी में गुजारा करना पड़ता था. सरकार की ओर से दी जाने वाली मदद का फायदा उन्हें नहीं मिल पा रहा है. अब सामाजिक संगठनों के लोग सुबह-शाम खाने के पैकेट दे जाते हैं और उसी से गुजरा चल रहा है. उनका कहना है कि आने-जाने की कोई व्यवस्था हो तो वे अपने गांव लौटना चाहते हैं. इनमें से कई परिवार खेतों में और दूसरी जगहों पर मजदूरी करके अपना और परिजनों का पेट भरते हैं. लेकिन इन हालात में कोई काम नहीं मिलने से उनके सामने भी रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है. ऐसे परिवार जिले में करीब 3 हजार हैं.

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जिले में खाद्य सुरक्षा से जुड़े 5.76 लाख परिवारों को दिया जा रहा है मुफ्त गेंहू. केंद्र और राज्य सरकार की ओर से जरूरतमंद परिवारों को प्रति व्यक्ति पांच-पांच किलो गेंहू मुफ्त दिया जा रहा है. इसका फायदा नागौर जिले के 5.76 लाख उन परिवारों को मिल रहा है जो खाद्य सुरक्षा योजना से जुड़े हुए हैं. लेकिन जो गरीब परिवार किसी कारण से अपना नाम खाद्य सुरक्षा योजना में नहीं जुड़वा पाए उन्हें सरकार की ओर से मुफ्त गेंहू नहीं मिल पा रहे हैं.

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