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'खुली सांस' के तहत नागौर में 4 साल में 519 सिलिकोसिस पीड़ितों को मिली मदद

प्रदेश के 20 जिलों के 34 ब्लॉक में व्यापक स्तर पर खनन का काम होता है और सिलिकोसिस एक लाइलाज बीमारी है. इसके लिए राज्य सरकार ने खुली सांस नाम से प्रोजेक्ट चलाकर नागौर जिले के 519 सिलिकोसिस पीड़ितों को मदद पहुंचाई है.

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Published : Mar 6, 2020, 3:01 PM IST

Nagaur News, सहायक श्रम आयुक्त
श्रम विभाग ने बताए सिलिकोसिस पीड़ितों की मदद से संबंधित आंकड़े

नागौर. श्रम विभाग ने हिताधिकारी सामान्य योजना के तहत जिले में 1 अप्रैल 2016 से 19 फरवरी 2020 तक के 598 मामलों में से 519 की स्वीकृति जारी करते हुए मदद की है. वहीं, 52 मामलों को निरस्त कर दिया है. 13 मामले पेंडिंग हैं. साथ ही एक विभागीय जांच के साथ 13 मामले विचाराधीन हैं.

सहायक श्रम आयुक्त गजेंद्र सिंह ने बताया कि जिन मजदूरों को सिलिकोसिस हुआ है. उनकी इसकी पहचान आसान नहीं होती. महीने में एक बार न्यूनमोकोसिस बोर्ड जिला मुख्यालय पर बैठता है और जांच करता है. ये जाच भी एक्स-रे मशीन के माध्यम से की जाती है, जिससे कई मरीजों के सिलिकोसिस से पीड़ित होने की पुष्टि नहीं हो पाती.

श्रम विभाग ने बताए सिलिकोसिस पीड़ितों की मदद से संबंधित आंकड़े

सिलिकोसिस की पहचान होने पर मजदूरों को श्रम विभाग की ओर से सहायता राशि दी जाती है. सामान्य तौर पर मजदूर कई खदानों में काम करते हैं. नागौर जिले में खाटू कोलिया, गोटन, मकराना और नावा सहित कई इलाकों में मजदूर काम करते हैं. मालिक भी अपने मजदूरों की तबीयत का रिकॉर्ड नहीं रखते.

पढ़ें: स्पेशल: हुक्मरानों से आस लगाए बैठे सिलिकोसिस के मरीज, यहां 80 गांवों में बरपा कहर

बता दें कि प्रदेश के 20 जिलों के 34 ब्लॉक में व्यापक स्तर पर खनन का काम होता है और सिलिकोसिस एक लाइलाज बीमारी है. गहलोत सरकार ने खदान मजदूरों के लिए खुली सांस प्रोजेक्ट शुरू किया है, श्रम विभाग की ओर से सिलिकोसिस रोग होने पर श्रमिक को 2 लाख रुपये की सहायता सरकार की ओर से दी जाती है. वहीं, निधन होने पर उसके परिजनों को 3 लाख रुपये की सहायता मिलती है. बीमारी होने पर उसका पंजीयन संबंधित पोर्टल पर होने के बाद श्रम विभाग, खान विभाग और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से उसे योजना का लाभ दिया जाता है.

नागौर. श्रम विभाग ने हिताधिकारी सामान्य योजना के तहत जिले में 1 अप्रैल 2016 से 19 फरवरी 2020 तक के 598 मामलों में से 519 की स्वीकृति जारी करते हुए मदद की है. वहीं, 52 मामलों को निरस्त कर दिया है. 13 मामले पेंडिंग हैं. साथ ही एक विभागीय जांच के साथ 13 मामले विचाराधीन हैं.

सहायक श्रम आयुक्त गजेंद्र सिंह ने बताया कि जिन मजदूरों को सिलिकोसिस हुआ है. उनकी इसकी पहचान आसान नहीं होती. महीने में एक बार न्यूनमोकोसिस बोर्ड जिला मुख्यालय पर बैठता है और जांच करता है. ये जाच भी एक्स-रे मशीन के माध्यम से की जाती है, जिससे कई मरीजों के सिलिकोसिस से पीड़ित होने की पुष्टि नहीं हो पाती.

श्रम विभाग ने बताए सिलिकोसिस पीड़ितों की मदद से संबंधित आंकड़े

सिलिकोसिस की पहचान होने पर मजदूरों को श्रम विभाग की ओर से सहायता राशि दी जाती है. सामान्य तौर पर मजदूर कई खदानों में काम करते हैं. नागौर जिले में खाटू कोलिया, गोटन, मकराना और नावा सहित कई इलाकों में मजदूर काम करते हैं. मालिक भी अपने मजदूरों की तबीयत का रिकॉर्ड नहीं रखते.

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बता दें कि प्रदेश के 20 जिलों के 34 ब्लॉक में व्यापक स्तर पर खनन का काम होता है और सिलिकोसिस एक लाइलाज बीमारी है. गहलोत सरकार ने खदान मजदूरों के लिए खुली सांस प्रोजेक्ट शुरू किया है, श्रम विभाग की ओर से सिलिकोसिस रोग होने पर श्रमिक को 2 लाख रुपये की सहायता सरकार की ओर से दी जाती है. वहीं, निधन होने पर उसके परिजनों को 3 लाख रुपये की सहायता मिलती है. बीमारी होने पर उसका पंजीयन संबंधित पोर्टल पर होने के बाद श्रम विभाग, खान विभाग और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से उसे योजना का लाभ दिया जाता है.

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