सीकर : प्रदेश में एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) की रोकथाम को लेकर हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं. हालांकि, सीकर जिले में पिछले पांच साल में जिला अस्पताल स्थित एआरटी सेंटर पर 620 नए मरीज पंजीकृत हुए हैं. निजी चिकित्सकों से उपचार लेने वाले मरीजों का आंकड़ा जोड़ा जाए तो यह संख्या काफी ज्यादा है.
सीकर में एचआईवी पीड़ितों का आंकड़ा बढ़ रहा है. काउंसलिंग नहीं होने के कारण फिलहाल 150 संक्रमित दवाएं तक लेने नहीं आ रहे हैं. आंकड़ों की मानें तो प्रदेश में सीकर जिले में एचआईवी संक्रमण के कारण मौत का आंकड़ा सर्वाधिक है. जिले में हर साल औसतन करीब 125 संक्रमितों की मौत हो जाती है. : विक्रम शर्मा, डायरेक्टर, विहान प्रोजेक्ट
चिकित्सकों के अनुसार एड्स का कारण है एचआईवी. ये वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है और उसे इतना कमजोर कर देता है कि शरीर दूसरा कोई संक्रमण या बीमारी झेलने के काबिल नहीं बचता है. चिंताजनक बात है कि जिसका समय पर अगर इलाज नहीं किया गया तो ये आगे चलकर एड्स की बीमारी बन जाता है. इसका अभी तक कोई पुख्ता इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाओं के सहारे वायरल लोड को कम किया जा सकता है, जिससे शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत बना रहता है.
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यह है एचआईवी बीमारी : चिकित्सकों के अनुसार पहली स्टेज में बीमार के एचआईवी का संक्रमण फैल जाता है. इस समय व्यक्ति बहुत से और लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा सबसे ज्यादा होता है. इस स्टेज में फ्लू जैसे लक्षण दिखते हैं. हालांकि, कई बार संक्रमित व्यक्ति को कोई लक्षण भी महसूस नहीं होते हैं. दूसरी स्टेज में भी संक्रमित व्यक्त्ति में कोई लक्षण नहीं दिखता है, लेकिन वायरस एक्टिव रहता है. कई बार 10 साल बाद भी व्यक्ति को दवा की जरूरत नहीं पड़ती. इस दौरान व्यक्ति संक्रमण फैला सकता है. आखिर में वायरस का लोड बढ़ जाता है और व्यक्ति में लक्षण नजर आने लगते हैं. तीसरी स्टेज में व्यक्ति में वायरल लोड बहुत ज्यादा हो जाता है और वो काफी संक्रामक हो जाता है. इस स्टेज में बिना इलाज कराए व्यक्ति का 3 साल जी पाना भी मुश्किल होता है.
दो स्टेज में उपचार : देश में एचआईवी पॉजिटिव के उपचार की दो स्टेप ही हैं. इन दो स्टेप में लगातार और शेड्यूल के अनुसार मरीज इलाज लेता है तो 15 से 20 वर्ष तक वह और जी सकता है, जबकि देश के कई अस्पतालों में सात स्टेप तक मरीजों का उपचार ही रहा है. इससे मरीज 65 से 70 वर्ष तक दवा के जरिए जी सकता है. बता दें कि, विश्व एड्स दिवस की शुरुआत सबसे पहले 1988 में जेम्स डब्ल्यू बन्न और थामस नेटर ने की थी. इस साल यह दिवस 'सही मार्ग अपनाएं' की थीम पर मनाया जा रहा है.