कोटा. डेंगू का असर पूरे हाड़ौती संभाग में देखा जा रहा है. मरीजों के सामने एक और समस्या आ खड़ी हुई है. विदेशों से सप्लाई नहीं होने के कारण सिंगल डोनर प्लेटलेट्स तैयार करने के लिए जरूरी एसडीपी किट की किल्लत हो गई है. हालात ये हैं कि ब्लड बैंक के पास भी इन किट की भारी कमी हो गई है.
हालात ये हैं कि ब्लड बैंक की ओर से 50 किट की डिमांड की जाती है तो उन्हें 10 किट ही मिल पा रहे हैं. ये किट दो दिन में खत्म हो जाते हैं. ब्लड बैंक संचालकों का कहना है कि इस बार इन किट की मांग ही नहीं थी, लिहाजा आपूर्ति नहीं हो सकी. कोटा में ब्लड बैंकों को आधे किट भी नहीं मिल पा रहे हैं. राजस्थान ब्लड बैंक सोसायटी के अध्यक्ष डॉ वेद प्रकाश गुप्ता का कहना है कि कोटा में निजी और सरकारी 10 ब्लड बैंक हैं, जिनमें करीब 15 से ज्यादा एफेरेसिस मशीन स्थापित की गई हैं. इनके जरिए कंपोनेंट्स सेपरेशन का काम होता है.
हालांकि अभी रोजाना डेंगू के मरीजों को 50 के आसपास प्लेटलेट्स की जरूरत हो रही है, लेकिन किट की उपलब्धता आधी ही है. जैसे तैसे 22 से 25 तक किट उपलब्ध हो पा रहे हैं. जिनसे मरीजों को एसडीपी उपलब्ध कराई जा रही है. जिन मरीजों को एसडीपी नहीं मिल पाती, उन्हें आरडीपी दी जाती है. लेकिन इससे वह इलाज नहीं मिल पाता जो एसडीपी से मिलता है. कोटा ही नहीं बल्कि बारां, बूंदी, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, रावतभाटा के साथ मध्यप्रदेश के नीमच, मंदसौर और श्योपुर के मरीजों को भी इसी तरह के संकट से गुजरना पड़ रहा है.
बीते दिनों खत्म हो गए थे किट, अब मिल रहे आधे
बीते दिनों निजी अस्पतालों में एसडीपी किट खत्म हो गए थे. ऐसे में एफेरेसिस मशीन के जरिए सिंगल डोनर प्लेटलेट्स तैयार नहीं हो पा रहे थे. मरीज इधर-उधर चक्कर लगाने को मजबूर थे. कोटा ब्लड बैंक के मेडिकल ऑफिसर डॉ. पीएस झा का कहना है कि पिछले दिनों लगातार दो दिनों तक हमारे पास किट खत्म हो गए थे. काफी परेशानी आई. हम मरीजों को एसडीपी नहीं दे पाए.
जिस कंपनी की मशीन, उसी का किट जरूरी
कोटा में ज्यादातर तीन तरह की मशीनें हैं. इनमें फ्रेजिनम, हिमोनेटिक्स व ट्रिमा पेनपोल शामिल हैं. ये मशीनें जर्मनी, जापन व वियतनाम में बनी हुई हैं. ऐसे में मशीन के अनुसार किट भी वहीं बनते हैं. कुछ कंपनियों के किट चीन से आते थे, लेकिन व्यापार बंद होने के चलते वहां से उपलब्धता खत्म हो गई. ऐसे में किट के लिए जर्मनी, वियतनाम और जापान पर ही निर्भर हैं.
डॉ वेद प्रकाश गुप्ता का कहना है कि करीब 50 ब्लड बैंक इस समस्या से जूझ रहे हैं. सरकार ने किट की रेट 7800 रुपए तय की है. इसी कीमत पर ब्लड बैंक को यह किट मिलता है. इस तरह की मशीनें और किट भारत में नहीं बनते.
कोरोना के कारण एसडीपी किट की कमी
बीते 2 साल से पूरा फोकस कोरोना पर था. डेंगू के मामले भी कम आए. ऐसे में विदेशों से एसडीपी किट का आयात कम हुआ. इस बार भी यही लगा कि डेंगू के मामले कम आएंगे. लेकिन पूरे देश में डेंगू का असर बढ़ा तो किट की कमी हो गई.
मरीज की जान बचाने के लिए जरूरी है एसडीपी
चिकित्सकों का कहना है कि जिन मरीजों की प्लेटलेट काउंट 10000 के नीचे रह जाता है, या अंदरूनी ब्लीडिंग तेजी से होती है. उनकी जान बचाने के लिए एसडीपी सबसे कारगर इलाज है. सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (SDP) से एक बार में मरीज के 35 से 40 हजार प्लेटलेट काउंट बढ़ जाते हैं. एसडीपी किट उपलब्ध नहीं होता तो मरीज को 4-5 आरडीपी (रेंडम डोनर प्लेटलेट्स) चढ़ाई जाती है.
डोनर मौजूद, नहीं मिल रही प्लेटलेट
डेंगू पीड़ित मरीज की जब प्लेटलेट काउंट कम हो जाता है तो चिकित्सक सिंगल डोनर प्लेटलेट्स चढ़ाने की सलाह देते हैं. इसके बाद परिजन डोनर की व्यवस्था करने में जुड़ जाते हैं. अधिकांश मरीजों को कोटा की संस्थाएं डोनर उपलब्ध करवा देती हैं, लेकिन किट मौजूद नहीं होने के चलते उन्हें परेशानी होती है. ज्यादातर समस्याएं निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों को आ रही हैं. यहां डोनर मौजूद होने पर भी एसडीपी नहीं मिल पाने के कारण मरीजों को आरडीपी से काम चलाना पड़ रहा है.
एमबीएस में भी बचे हैं 4 दिन के किट
संभाग के सबसे बड़े ब्लड बैंक एमबीएस अस्पताल में भी सिंगल डोनर प्लेटलेट्स के लिए उपयोग आने वाले किट की कमी संभावित है. वर्तमान में कोटा में सिर्फ 50 के आसपास किट मौजूद हैं. रोजाना करीब 15 किट उपयोग में आ रही हैं. ऐसे में सिर्फ 4 दिन की किट उपलब्ध हैं.
ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. एचएल मीणा का कहना है कि उन्होंने 120 किट के लिए डिमांड कर दी है. सप्लाई कंपनी के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया है. संभव है कि एक-दो दिन में सप्लाई आ जाए. हालांकि जब पूरे देश में इस तरह की कमी है, तो कंपनी कहां से सप्लाई करेगी. सप्लाई नहीं हुई तो एमबीएस अस्पताल में भी एसडीपी का टोटा हो जाएगा.