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स्पेशल रिपोर्ट: कोटा के बाढ़ पीड़ितों का दर्द...पानी में बही जिंदगीभर की कमाई तो कैसे मनाएं दिवाली

चंबल के बहाव में सैकड़ों की संख्या में मकान बह गए. जिन लोगों के घर-बार और सामान चंबल के बहाव में बह गए थे, वे कोटा सामुदायिक भवन में आश्रय ले रहे हैं. दिवाली नजदीक है, ऐसे में अब उनके सामने संकट आ खड़ा हुआ है कि दिवाली कैसे मनाएंगे. छोटे बच्चों का कहना है कि उन्होंने पहली बार इस तरह की दिवाली देखेंगे. जब उनके पास ना तो नए कपड़े होंगे ना पुराने कपड़े.

कोटा बाढ़ पीड़ित, Kota flood victims
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Published : Oct 17, 2019, 7:29 PM IST

कोटा. पिछले महीने चंबल नदी में बैराज से लाखों क्यूसेक पानी छोड़ा गया है. इससे किनारे की बस्तियां जलमग्न हो गई और चंबल के बहाव में सैकड़ों की संख्या में मकान बह गए. हालात ऐसे हैं कि अभी भी कुछ लोग जिनके घर-बार और सामान चंबल के बहाव में बह गए थे, वे सामुदायिक भवनों में आश्रय ले रहे हैं. दिवाली नजदीक है, ऐसे में अब उनके सामने संकट आ खड़ा हुआ है कि दिवाली कैसे मनाएंगे.

छोटे बच्चे जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, वह आश्रय स्थल से ही स्कूलों में जा रहे हैं. इन बच्चों का कहना है कि उन्होंने पहली बार इस तरह की दिवाली देखेंगे. जब उनके पास ना तो नए कपड़े होंगे ना पुराने कपड़े, क्योंकि बाढ़ में उनका सब कुछ बन गया है. घर के बर्तन भी नहीं बचे हैं.

कोटा में बाढ़ पीड़ितों का दर्द सुनिए...

एक कमरे में रुके है 50 लोग
हनुमानगढ़ी के लोग जो कि नगर निगम के बिजासन माता के सामुदायिक भवन में आश्रय ले रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार ने उनके पुनर्वास का काम नहीं किया है. अब ना तो उनके पास घर है ना पैसा जिससे नया घर बना लें, ऐसे में वह कहां पर जाएंगे. करीब 50 से ज्यादा लोग सामुदायिक भवन में रह रहे हैं, जिनके लिए भी एक कमरा ही खोला गया है. यहां रहने वाले पुरुष तो दिन में रोजगार की तलाश में निकल जाते हैं. वहीं महिलाएं अपने बच्चों का साथ रहती है. बिजली पानी की व्यवस्था भी स्थानीय युवकों ने की है. क्योंकि इनको 2 दिन पहले ही संत तुकाराम सामुदायिक भवन से निकालकर यहां भेजा गया है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: इरास के ग्रामीणों ने सुना मां का दर्द, बिस्तर पर लेटा है बीमार बेटा, ग्रामीणों ने उसके उपचार के लिए जुटाए 1 लाख 35 हजार रुपए

आंसू नहीं थम रहे, पढ़ाई थम गई
इन बच्चों के आंसू थम नहीं रहे हैं, जबकि पढ़ाई उनकी थम गई है. क्योंकि किताबें नहीं है. अब पिता के सामने संकट है कि वे बच्चों के लिए किताबों का पैसा जुटाए या फिर परिवार को सुबह शाम का भोजन उपलब्ध करवाएं. यहां पर रहने वाली नेहा का कहना है कि वह जेडीबी कॉलेज में पढ़ाई कर रही है रेगुलर स्टूडेंट है, लेकिन एक माह से कॉलेज ही नहीं जा पा रही है. वह कॉलेज जाकर भी क्या करेगी, उसके पास लिखने पढ़ने के लिए कॉपी, पेन और किताबें ही नहीं है

लोग मदद नहीं करें तो भूखे ही सोना मजबूरी
कोटा में सामुदायिक भवन में रहने वाले इन बच्चों और परिवारों के पास खाने-पीने की सामग्री भी नहीं है. यह लोग जैसे तैसे यहां पर गुजारा कर रहे हैं. आस-पड़ोस के लोग मदद करते हैं तो इन लोगों को भोजन उपलब्ध होता है. इन लोगों की मांग है कि सरकार जल्द से जल्द उन्हें पुनर्वास करें, ताकि यह आगे का गुजारा चला सकें.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: दो भाइयों की कहानी जान रो पड़ेंगे आप...जिनके कंधों पर थी परिवार की जिम्मेदारी वही हुए 'बेसहारा'

नौकरी भी चली गई
वहीं बाढ़ पीड़ित भूरी ने बताया कि उसके घर में 8 सदस्य हैं और वह और उसके पिता की कमाने वाले थे. मकान बह गया है. अब पिता छोटी मोटी मजदूरी करते हैं, उसकी नौकरी भी इसलिए चली गई कि वह बाढ़ में जब मकान टूट रहा था तो नौकरी पर नहीं जा पाई. ऐसे में अब मकान का किराया भी वे नहीं दे सकते हैं और इतने लोगों के लिए मकान भी किराए से नहीं मिलेगा. ऐसे में आश्रय स्थल ही उनकी मजबूरी में शरण स्थली बना हुआ है.

कोटा. पिछले महीने चंबल नदी में बैराज से लाखों क्यूसेक पानी छोड़ा गया है. इससे किनारे की बस्तियां जलमग्न हो गई और चंबल के बहाव में सैकड़ों की संख्या में मकान बह गए. हालात ऐसे हैं कि अभी भी कुछ लोग जिनके घर-बार और सामान चंबल के बहाव में बह गए थे, वे सामुदायिक भवनों में आश्रय ले रहे हैं. दिवाली नजदीक है, ऐसे में अब उनके सामने संकट आ खड़ा हुआ है कि दिवाली कैसे मनाएंगे.

छोटे बच्चे जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, वह आश्रय स्थल से ही स्कूलों में जा रहे हैं. इन बच्चों का कहना है कि उन्होंने पहली बार इस तरह की दिवाली देखेंगे. जब उनके पास ना तो नए कपड़े होंगे ना पुराने कपड़े, क्योंकि बाढ़ में उनका सब कुछ बन गया है. घर के बर्तन भी नहीं बचे हैं.

कोटा में बाढ़ पीड़ितों का दर्द सुनिए...

एक कमरे में रुके है 50 लोग
हनुमानगढ़ी के लोग जो कि नगर निगम के बिजासन माता के सामुदायिक भवन में आश्रय ले रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार ने उनके पुनर्वास का काम नहीं किया है. अब ना तो उनके पास घर है ना पैसा जिससे नया घर बना लें, ऐसे में वह कहां पर जाएंगे. करीब 50 से ज्यादा लोग सामुदायिक भवन में रह रहे हैं, जिनके लिए भी एक कमरा ही खोला गया है. यहां रहने वाले पुरुष तो दिन में रोजगार की तलाश में निकल जाते हैं. वहीं महिलाएं अपने बच्चों का साथ रहती है. बिजली पानी की व्यवस्था भी स्थानीय युवकों ने की है. क्योंकि इनको 2 दिन पहले ही संत तुकाराम सामुदायिक भवन से निकालकर यहां भेजा गया है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: इरास के ग्रामीणों ने सुना मां का दर्द, बिस्तर पर लेटा है बीमार बेटा, ग्रामीणों ने उसके उपचार के लिए जुटाए 1 लाख 35 हजार रुपए

आंसू नहीं थम रहे, पढ़ाई थम गई
इन बच्चों के आंसू थम नहीं रहे हैं, जबकि पढ़ाई उनकी थम गई है. क्योंकि किताबें नहीं है. अब पिता के सामने संकट है कि वे बच्चों के लिए किताबों का पैसा जुटाए या फिर परिवार को सुबह शाम का भोजन उपलब्ध करवाएं. यहां पर रहने वाली नेहा का कहना है कि वह जेडीबी कॉलेज में पढ़ाई कर रही है रेगुलर स्टूडेंट है, लेकिन एक माह से कॉलेज ही नहीं जा पा रही है. वह कॉलेज जाकर भी क्या करेगी, उसके पास लिखने पढ़ने के लिए कॉपी, पेन और किताबें ही नहीं है

लोग मदद नहीं करें तो भूखे ही सोना मजबूरी
कोटा में सामुदायिक भवन में रहने वाले इन बच्चों और परिवारों के पास खाने-पीने की सामग्री भी नहीं है. यह लोग जैसे तैसे यहां पर गुजारा कर रहे हैं. आस-पड़ोस के लोग मदद करते हैं तो इन लोगों को भोजन उपलब्ध होता है. इन लोगों की मांग है कि सरकार जल्द से जल्द उन्हें पुनर्वास करें, ताकि यह आगे का गुजारा चला सकें.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: दो भाइयों की कहानी जान रो पड़ेंगे आप...जिनके कंधों पर थी परिवार की जिम्मेदारी वही हुए 'बेसहारा'

नौकरी भी चली गई
वहीं बाढ़ पीड़ित भूरी ने बताया कि उसके घर में 8 सदस्य हैं और वह और उसके पिता की कमाने वाले थे. मकान बह गया है. अब पिता छोटी मोटी मजदूरी करते हैं, उसकी नौकरी भी इसलिए चली गई कि वह बाढ़ में जब मकान टूट रहा था तो नौकरी पर नहीं जा पाई. ऐसे में अब मकान का किराया भी वे नहीं दे सकते हैं और इतने लोगों के लिए मकान भी किराए से नहीं मिलेगा. ऐसे में आश्रय स्थल ही उनकी मजबूरी में शरण स्थली बना हुआ है.

Intro:चंबल के बहाव में सैकड़ों की संख्या में मकान बह गए. जिन लोगों के घर-बार और सामान चंबल के बहाव में बह गए थे, वे सामुदायिक भवनों में आश्रय ले रहे हैं. दिवाली नजदीक है, ऐसे में अब उनके सामने संकट आ खड़ा हुआ है कि दिवाली कैसे मनाएंगे. छोटे बच्चों का कहना है कि उन्होंने पहली बार इस तरह की दिवाली देखेंगे. जब उनके पास ना तो नए कपड़े होंगे ना पुराने कपड़े.


Body:कोटा.
कोटा में पिछले महीने चंबल नदी मैं बैराज से लाखों क्यूसेक पानी छोड़ा गया है. इससे किनारे की बस्तियां जलमग्न हो गई और चंबल के बहाव में सैकड़ों की संख्या में मकान बह गए. हालात ऐसे हैं कि अभी भी कुछ लोग जिनके घर-बार और सामान चंबल के बहाव में बह गए थे, वे सामुदायिक भवनों में आश्रय ले रहे हैं. दिवाली नजदीक है, ऐसे में अब उनके सामने संकट आ खड़ा हुआ है कि दिवाली कैसे मनाएंगे. छोटे बच्चे जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, वह आश्रय स्थल से ही स्कूलों में जा रहे हैं. इन बच्चों का कहना है कि उन्होंने पहली बार इस तरह की दिवाली देखेंगे. जब उनके पास ना तो नए कपड़े होंगे ना पुराने कपड़े, क्योंकि बाढ़ में उनका सब कुछ बन गया है. घर के बर्तन भी नहीं बचे हैं.

एक कमरे में रुके है 50 लोग
हनुमानगढ़ी के लोग जो कि नगर निगम के बिजासन माता के सामुदायिक भवन में आश्रय ले रहे हैं, उनका कहना है कि सरकार ने उनके पुनर्वास का काम नहीं किया है. अब ना तो उनके पास घर है ना पैसा जिससे नया घर बना लें, ऐसे में वह कहां पर जाएंगे. करीब 50 से ज्यादा लोग सामुदायिक भवन में रह रहे हैं, जिनके लिए भी एक कमरा ही खोला गया है. यहां रहने वाले पुरुष तो दिन में रोजगार की तलाश में निकल जाते हैं. वहीं महिलाएं अपने बच्चों का साथ रहती है. बिजली पानी की व्यवस्था भी स्थानीय युवकों ने की है. क्योंकि इनको 2 दिन पहले ही संत तुकाराम सामुदायिक भवन से निकालकर यहां भेजा गया है.

आंसू नहीं थम रहे, पढ़ाई थम गई
इन बच्चों के आंसू थम नहीं रहे हैं, जबकि पढ़ाई उनकी थम गई है. क्योंकि किताबें नहीं है. अब पिता के सामने संकट है कि वे बच्चों के लिए किताबों का पैसा जुटाए या फिर परिवार को सुबह शाम का भोजन उपलब्ध करवाएं. यहां पर रहने वाली नेहा का कहना है कि वह जेडीबी कॉलेज में पढ़ाई कर रही है रेगुलर स्टूडेंट है, लेकिन एक माह से कॉलेज ही नहीं जा पा रही है. वह कॉलेज जाकर भी क्या करेगी, उसके पास लिखने पढ़ने के लिए कॉपी, पेन और किताबें ही नहीं है

लोग मदद नहीं करें तो भूखे ही सोना मजबूरी
सामुदायिक भवन में रहने वाले इन बच्चों और परिवारों के पास खाने-पीने की सामग्री भी नहीं है. यह लोग जैसे तैसे यहां पर गुजारा कर रहे हैं. आस-पड़ोस के लोग मदद करते हैं तो इन लोगों को भोजन उपलब्ध होता है. इन लोगों की मांग है कि सरकार जल्द से जल्द उन्हें पुनर्वास करें, ताकि यह आगे का गुजारा चला सके.


Conclusion:नौकरी भी चली गई
आशीष तल में रह रही भूरी का कहना है कि उसके घर में 8 सदस्य हैं और वह और उसके पिता की कमाने वाले थे. मकान बह गया है. अब पिता छोटी मोटी मजदूरी करते हैं, उसकी नौकरी भी इसलिए चली गई कि वह बाढ़ में जब मकान टूट रहा था तो नौकरी पर नहीं जा पाई. ऐसे में अब मकान का किराया भी वे नहीं दे सकते हैं और इतने लोगों के लिए मकान भी किराए से नहीं मिलेगा. ऐसे में आश्रय स्थल ही उनकी मजबूरी में शरण स्थली बना हुआ है.





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