कोटा. लहसुन उत्पादक किसानों के इन दिनों बुरे हाल हैं. उनका उत्पादित लहसुन मंडी में लागत से भी कम दाम में बिक रहा है. हालात ऐसे हैं कि मंडी में लहसुन के दाम एक रुपए किलो तक हो गए (Garlic rate in mandi goes down till Rs 1) हैं. इसके चलते किसान निराश हैं और हालात ऐसे हो गए हैं कि किसानों ने अगले साल इस फसल को उत्पादन करने से ही तौबा कर ली है.
अधिकांश किसान ऐसे हैं, जो अपनी फसल को पूरा बेच रहे हैं. अगली फसल के लिए लहसुन का बीज भी नहीं रख रहे हैं. ईटीवी भारत ने देश के सबसे बड़ी लहसुन मंडी सेठ भामाशाह कृषि उपज मंडी में जाकर मंगलवार को जायजा लिया. तब सामने आया कि अधिकांश किसानों का लहसुन बेहद कम दामों पर बिक रहा है. आपको बता दें कि कोटा संभाग के चारों जिलों में इस बार 115000 हेक्टेयर में लहसुन की फसल की गई और करीब 670000 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ. इसीके चलते भाव नीचे गिर गए हैं. बारां, बूंदी, कोटा व झालावाड़ में लहसुन की बुवाई करने के साथ ही बारिश हो गई थी. ऐसे में क्वालिटी भी हाड़ौती में इस बार अच्छी नहीं हुई है. इस बार गुजरात और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में अच्छी क्वालिटी का लहसुन का उत्पादन हुआ है. साथ ही लहसुन की मांग प्रदेश में अन्य राज्यों से कम है. इसी कारण इस बार दाम कम (Reason of low rates of garlic in Kota mandi) हैं.
कट्टे का दाम भी नहीं निकला: किसानों का कहना है कि उनका लहसुन एक व दो रुपए किलो बिक रहा है. जिस कट्टे में 45-50 किलो लहसुन भरा जाता है, उसकी कीमत ही 30 रुपए है. इसके अलावा उस कट्टे को वाहन से गांव से कोटा मंडी में लाने का भी किराया 50 से 100 रुपए के आसपास है. उन्हें कट्टे में भरे लहसुन के 45 से 100 रुपए के आसपास भाव मिल रहे हैं. जिन किसानों ने खेत किराए पर लेकर फसल की है, उनके तो हालात और भी ज्यादा खराब हैं. उन्हें अपनी जेब से ही पैसा खेत मालिक को देना पड़ रहा है.
अगली बार पशुओं को डाल दूंगा फसल: रामगंज मंडी इलाके के खैराबाद निवासी शंकरलाल ने 7 बीघा जमीन पर लहसुन का उत्पादन किया था. उनका कहना है कि 120 कट्टों का उत्पादन हुआ है, लेकिन पूरे दाम नहीं मिल रहे हैं. उनका लहसुन बेहद कम दामों पर बिका है. ऐसे में अब वे बचे हुए लहसुन को मंडी में नहीं लाएंगे. जब उनसे पूछा गया कि अगली बार उत्पादन करेंगे तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि 50 कट्टे लहसुन घर पर हैं, लेकिन उसे मंडी में बेचने के लिए नहीं आएंगे, उसको पशुओं को ही डालेंगे या फेंक देंगे. उनका कहना है कि मंडी में लाने की लागत भी नहीं निकल पा रही है.
पहले छह कट्टों में बाइक आ जाती थी बाइक: सांगोद इलाके के बोरीना खुर्द गांव से लहसुन बेचने आए किसान बाबू लाल का कहना है कि उनका माल भी 2 रुपए किलो ही बिका है. साथ ही यह भी कहा कि पहले 6 लहसुन के कट्टों में बाइक आ जाती थी. इसी के चलते उन्होंने लहसुन का उत्पादन किया था. पिछली बार डेढ़ बीघा में था, लेकिन इस बार उसे बढ़ाकर 3 बीघा में कर लिया. खर्चा भी इसमें 60 हजार रुपए का हुआ है. अब दाम नहीं मिले हैं. ऐसे में अब उन्होंने इस लहसुन से ही तौबा कर ली है. रामगंजमंडी इलाके के किसान शब्बीर भाई का कहना है कि बीते साल 2 बीघा में 50 हजार रुपए का लहसुन उत्पादन हुआ था, लेकिन इस बार 10 हजार रुपए भी उन्हें नहीं मिला है.
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150 से 200 रुपए किलो तक मिले हैं दाम : कोविड-19 के दौरान साल 2020 में किसानों को लहसुन के अच्छे दाम मिले (Farmers got good price of garlic in 2020) थे. किसानों का लहसुन कोविड-19 के दौरान छोटी-छोटी मंडियों में खरीदा गया था. इसके अलावा भामाशाह कृषि उपज मंडी में भी किसानों का माल लाया गया था. इसके अलावा कोऑपरेटिव विभाग ने भी सहकारी समितियों के जरिए लहसुन की खरीद की थी. इसमें किसानों को करीब 150 से 200 रुपए किलो के दाम मिले थे, अधिकांश किसानों को 80 रुपए किलो से ज्यादा दाम मिल रहे थे. हालांकि पिछले साल इन दामों में कमी आई थी. यह दाम 60 से 70 किलो के आसपास पहुंच गए थे.
अधिकांश किसानों को मिल रहे 10 से 25 रुपए किलो के भाव: मंडी समिति की रिपोर्ट के अनुसार भामाशाह कृषि उपज मंडी की बात की जाए तो 1 लाख क्विंटल से ज्यादा माल मार्च व अप्रैल में आया था. वहीं इस साल मई में अभी तक 1 लाख क्विंटल से ज्यादा माल आ चुका. हालांकि मंडी में जो भाव चल रहे हैं, उनमें अधिकतम भाव 5 हजार रुपए क्विंटल तक हैं. जबकि न्यूनतम भाव 1600 के आसपास हैं. वहीं औसत भाव 3000 रुपए के आसपास चल रहा है. हालांकि अधिकांश किसानों को उनके भाव 1000 से लेकर 2500 रुपए किलो तक ही मिल रहे हैं. किसानों का कहना है कि जो एक्सपोर्ट क्वालिटी का माल है, उसी के दाम ज्यादा हैं, बाकी सामान्य लहसुन के दाम गिरे हुए हैं.
सरकार 2018 में उठा चुकी है 191 करोड़ का घाटा: हाड़ौती में इस बार हालात साल 2017-18 जैसे बन रहे हैं. जब किसानों को लहसुन का भाव 2 से लेकर 20 रुपए किलो तक मिला था. इसके चलते हाड़ौती संभाग में कर्ज के बोझ के तले दबे किसानों की आत्महत्या का क्रम शुरू हो गया था. जिसके बाद सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत लहसुन की खरीद 3257 रुपए क्विंटल के अनुसार की थी. जिसमें कोटा, बारां, बूंदी व झालावाड़ में 20,603 किसानों का माल खरीदा गया था. यह करीब 7,52,451 क्विंटल था. इस लहसुन का किसानों को 245 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था. इसके बाद मंडी टैक्स, समिति व राजफैड कमीशन और मंडी हैंडलिंग चार्ज भी लगा था. कुल मिलाकर मंडी में खरीदने का खर्चा करीब 258 करोड़ रुपए हुआ था. जबकि इन लहसुन को बेचने पर सरकार को 67 करोड़ की आय हुई थी. ऐसे में सरकार को करीब 191 में करोड़ों का घाटा हुआ था.
बाजार हस्तक्षेप योजना से खरीद की मांग: किसानों का कहना है कि उन्होंने लहसुन का बीज भी काफी महंगा खरीदा था और इसमें जो लागत उनकी बैठी है, वह करीब 25000 रुपए बीघा से ज्यादा है. ऐसे में उन्हें सरकार आर्थिक रूप से मदद करने के लिए उनके लहसुन की खरीद करे. ऐसा नहीं होता है, तो फिर हालात विकट हो जाएंगे. कई किसानों ने कर्जा लेकर फसल की है. ऐसे में उन्हें काफी नुकसान का सामना करना पड़ेगा और कर्ज नहीं चुकाने के चक्कर में वह अगले कई सालों तक परेशान रहेंगे.