कोटा. कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के बीच निजी अस्पतालों का बजट गड़बड़ा गया है. जो भी मरीज इमरजेंसी के मरीज आ रहे हैं, उनके भी कोविड- 19 के चलते हाइजीन मेंटेन करने में ज्यादा ही खर्च हो रहा है. स्टॉफ की सैलरी से लेकर बिजली, पानी और साफ-सफाई के खर्चे पूरे हो रहे हैं. कोविड-19 के चलते हैंड सेनेटाइजर, ग्लब्स और पीपीई किट का भी खर्चा बढ़ गया है. साथ ही प्राइवेट अस्पताल संचालकों का कहना है कि वे पूरा प्रशासन लेकर काम कर रहे हैं. इसके बावजूद भी उन्हें जोखिम बना हुआ है कि कहीं कोरोना से संक्रमित न हो जाएं, साथ ही नुकसान भी हो रहा है.
कोटा जिले की बात की जाए तो करीब 140 निजी अस्पताल कोटा में संचालित हैं, जिनमें से 50 से ज्यादा बेड के 40 अस्पताल हैं. वहीं करीब 100 अस्पताल 50 बेड से कम के हैं. इनमें 15 से 20 बेड वाले नर्सिंग होम भी बड़ी मात्रा में हैं. साथ ही निजी प्रैक्टिशनर के तौर पर करीब 2 हजार चिकित्सक कोटा में अलग-अलग हिस्से में सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इन सब जगह पर जहां लॉकडाउन के पहले मरीज आते थे. अब उनकी संख्या घट गई है और महज 10 से 15 फीसदी मरीज ही अस्पतालों तक पहुंच रहे हैं.
मरीजों को भी अस्पताल आने में लग रहा है डर
मरीजों को भी डर है कि कहीं वह अस्पतालों में जाएं तो कोरोना से संक्रमित नहीं हो जाएं. ऐसे में जो इमरजेंसी के तौर पर ही अस्पतालों में मरीज जा रहे हैं या तो वे गंभीर रूप से बीमार होने पर ही जा रहे हैं. कई अस्पताल तो ऐसे हैं, जहां केवल इमरजेंसी की सेवा ही जारी है.
डरे हुए हैं निजी अस्पताल संचालक
प्राइवेट प्रैक्टिशनर डॉ. केवल कृष्ण डंग का कहना है कि कोविड- 19 के चलते सरकार ने भीलवाड़ा में दो अस्पतालों को सील कर दिया था. ऐसे में अगर मरीज हमारे क्लीनिक या छोटे नर्सिंग होम में आ जाए तो संचालक डरे हुए थे. कानूनी कार्रवाई हो रही थी. साथ ही सरकार के रवैए के चलते पहले तो निजी अस्पताल डरे हुए थे और प्रैक्टिस पूरी तरह से बंद जैसी ही थी. अब धीरे-धीरे प्राइवेट क्लीनिक और छोटे नर्सिंग होम होने काम करना शुरू किया है. कम से कम खतरा बना रहे, इसलिए सिलेक्टेड मरीजों का ही उपचार किया जा रहा है. कम मरीज देखने की वजह से आर्थिक स्थिति काफी डाउन हो चुकी है.
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मशीनों का मेंटेनेंस और ईएमआई भी भरना मुश्किल
कोटा में निजी अस्पताल संचालित कर रहे सर्जन डॉ. दिनेश जिंदल कहना है कि कोरोना वायरस में खर्चे बढ़ गए हैं. स्टॉफ की भी कई समस्याएं हैं. कई जगह स्टॉफ डर के कारण काम छोड़कर गांव चला गया है. कम स्टॉफ आ रहा है. पर्सनल प्रोटेक्शन उपकरण, सेनेटाइजर, ग्लब्स, मास्क और मरीज के हाइजीन का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है. इसके अलावा मरीज नहीं आ रहे है, तो पैसा नहीं मिल रहा है. साथ ही बिजली-पानी के खर्चे वैसे ही चल रहे हैं, मशीनों का मेंटिनेंस और बिल्डिंग का लोन की ईएमआई भी मुश्किल से जा रही है.
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निजी अस्पताल संचालक डॉ. सुरेश पांडे का कहना है कि अस्पताल में 40 से 50 जनों का स्टाफ कार्यरत हैं. क्योंकि अधिकांश कार्य मेन पावर के जरिए ही होते हैं. सभी ट्रेंड स्टॉफ हैं इनकी हर समय जरूरत रहती है. सरकारों को मदद करनी चाहिए. छोटे उद्योगों को जिस तरह से राहत दी गई है. उसी तरह से छोटे जो अस्पताल हैं, उनकी भी सरकार को आगे आकर मदद करनी चाहिए, क्योंकि यहां पर मिडिल क्लास लोग ही उपचार के लिए आते हैं. छोटे अस्पतालों को रिवाइबल पैकेज उपलब्ध करवाना चाहिए.
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निजी क्षेत्र में भी हो कोविड- 19, ताकि मरीजों का खर्चा कम हो
विज्ञान नगर में नर्सिंग होम संचालित करने वाली डॉ. ज्योति डंग का कहना है कि मरीज आइडेंटिटी छुपाता है. ऐसे में कैसे तय किया जाए कि मरीज कर्फ्यू एरिया या कंटेंटमेंट जोन से नहीं आया है. प्राइवेट अस्पतालों में भी कोविड-19 टेस्ट होने चाहिए, ताकि जो मरीज का रूटीन की तरह इलाज किया जा सके. यह सुविधा नहीं होने के चलते सभी मरीजों को संदिग्ध कोरोना मानकर इलाज किया जा रहा है, जिसमें उनका भी खर्चा ज्यादा हो रहा है. क्योंकि मरीजों के इलाज के दौरान पर्सनल प्रोटेक्शन उपकरणों का उपयोग करना पड़ रहा है. जबकि ऐसे छोटे अस्पतालों में मिडिल क्लास लोग ही आते हैं, जिनका भी बजट कोरोना के चलते गड़बड़ा गया है.