कोटा. कॅरियर सिटी कोटा किस तरह गांव में रहने वाले अभावग्रस्त परिवारों की तस्वीर बदल रहा है, इसकी एक और बानगी सामने आई है. मामला राजस्थान के झुंझुनू जिले के बिसाउ कस्बे के रहने वाले अनिल के परिवार का है, जहां पिता दूसरे के खेतों में जुताई करते हैं, मां उनका हाथ बंटाती है और घर का काम करती है. कोटा में रहकर कोचिंग संस्थान से पढ़ने वाले अनिल ने नीट-2020 के परिणामों में 700 अंक प्राप्त कर आल इंडिया 77 रैंक प्राप्त की है. बड़ी बात यह भी है कि शायद कोटा में यह अकेला ऐसा छात्र होगा, जो आर्थिक तंगी के चलते गर्ल्स हॉस्टल में रहा और सफलता प्राप्त की. इसी के साथ मेडिकल कॉलेज में अपने बच्चे को पढ़ाने का अनिल के पिता रामस्वरूप और मां कमला देवी का सपना पूरा हो गया.
अनिल को पढ़ाने के लिए चाची ने की हॉस्टल में नौकरी
अनिल संयुक्त परिवार में रहता है. मीरा देवी चाची जो कि मौसी भी हैं, उनसे अनिल का अच्छा लगाव है. संयुक्त परिवार और दो बेटियों की जिम्मेदारी होने की अनिल की मां कोटा उसके साथ नहीं आ सकी. ऐसे में अनिल की चाची मीरा देवी ने मां का फर्ज निभाया. वे कोटा आई और यहां एक गर्ल्स हॉस्टल में वार्डन की नौकरी की. जिससे मिलने वाली पगार से महीने का खर्च निकलता था. यह सिलसिला करीब चार साल तक चला. इसी हॉस्टल के छोटे से कमरे में अपने साथ अनिल को भी रखा. चार साल तक कोटा में रहकर पढ़ाई करने के बाद अनिल ने खुद को साबित किया और माता-पिता का सपना पूरा किया.
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भाई अशोक से मिली अनिल को प्रेरणा
परिवार की तकदीर बदलने में कोटा की कोचिंग संस्थान का बड़ा योगदान है. इससे पहले मीरा के पुत्र अशोक ने भी कोटा में रहकर कोचिंग संस्थान से तैयारी की और सफलता पाई. अशोक वर्तमान में एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर में एमबीबीएस फाइनल ईयर का स्टूडेंट है. जब अशोक का चयन हुआ तब अनिल कक्षा 9 में था, लेकिन पिता चाहते थे कि अनिल भी कोटा जाए और पढ़कर डॉक्टर बने, जब कोटा में रहने-खाने और अन्य खर्चों की बात हुई तो पिता रामस्वरूप को कुछ समझ नहीं आया कि कैसे संभव होगा. इस दौरान पहले से अपने बेटे अशोक के लिए कोटा में रह चुकी मीरा आगे आईं और उन्होंने अनिल के साथ कोटा में रहकर पढ़ाई करवाने के लिए कहा. उन्होंने यहां हॉस्टल में नौकरी की और अपने साथ अशोक को रखा.
दो साल से था 17 की उम्र का इंतजार
अनिल ने बताया कि वर्ष 2016 में कोटा आया था. कक्षा 10 में 93 प्रतिशत और कक्षा 12 में 87 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. 2018 में मैंने 12वीं कक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन इसके बाद भी नीट की परीक्षा में शामिल नहीं हो सकता था, क्योंकि नीट में शामिल होने के लिए 17 वर्ष की उम्र होना जरूरी है. इसलिए दो साल इंतजार करना पड़ा. इन दो सालों में जी तोड़ मेहनत की. वर्ष 2020 में मेरा इंतजार खत्म हुआ और अब माता-पिता का सपना साकार होने जा रहा है.
अनिल ने बताया कि 12वीं के बाद दो साल का इंतजार काफी लंबा था. जैसे-तैसे कर वर्ष 2020 आया तो कोरोना की वजह से लॉकडाउन लग गया. मेरी पूरी तैयारी थी, लेकिन परीक्षा आगे खिसक गई. इस वजह से काफी परेशान रहने लगा, लेकिन फैकल्टी ने मोटिवेट किया और लॉकडाउन का पूरा उपयोग किया. बार-बार सिलेबस का रिवीजन करने से डाउट सामने आते गए. जिनको फैकल्टीज की मदद से सॉल्व किया. अब मैं डॉक्टर बनने के बाद अपने गांव, समाज व देश के लिए कुछ करना चाहता हूं.
90 फीसदी फीस में मिली रियायत
निजी कोचिंग संस्थान ने भी परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए रियायत दर पर ही स्टूडेंट को पढ़ाई करवाई है. अनिल में सिर्फ रजिस्ट्रेशन शुल्क दिया. साथ ही 90 फीसदी शुल्क में रियायत के चलते परिवार पर आर्थिक भार भी कम रहा और अनिल बेहतर पढ़ाई कर सका. निजी कोचिंग संस्थान के निदेशक नवीन माहेश्वरी का कहना है कि ऐसे विद्यार्थियों का सफल होना ही सच्चे अर्थों में सफलता है. गांव-ढाणियों के अभावग्रस्त परिवारों के बच्चे जब कोटा आते हैं और उनके परिवारों के सपने पूरे होते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है. ऐसी प्रतिभाओं की मदद के लिए सदैव तैयार है और आगे भी इनकी मदद की जाती रहेगी.