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विश्व कैंसर दिवस: हाड़ौती में हर साल आते हैं Cancer के 40 हजार नए मरीज, मुंह और जबड़े के मामले अधिक

कैंसर रोग विशेषज्ञों के अनुसार करीब 40 हजार मरीज हर साल हाड़ौती में नए कैंसर की जकड़ में आ जाते हैं. जिनमें अलग-अलग तरह के कैंसर शामिल हैं. साथ ही करीब डेढ़ लाख कैंसर के मरीज भी हाड़ौती में मौजूद हैं. हाड़ौती संभाग में सबसे ज्यादा मुंह और जबड़े के कैंसर के मरीजों के मामले आते हैं.

कोटा में कैंसर के मरीज, cancer patient in kota
40 हजार कैंसर के नए मरीज आते हैं सामने
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Published : Feb 3, 2021, 11:12 PM IST

Updated : Feb 4, 2021, 6:44 AM IST

कोटा. कैंसर से एकजुट होकर लड़ने की आवश्यकता है. इस रोग के विस्तार को रोकने के लिए तरह-तरह के अभियान चलाए जा रहें हैं. ऐसे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है. कैंसर रोग विशेषज्ञों के अनुसार करीब 40 हजार मरीज हर साल हाड़ौती में कैंसर की जकड़ में आ जाते हैं. जिनमें अलग-अलग तरह के कैंसर शामिल हैं. साथ ही करीब डेढ़ लाख कैंसर के मरीज भी हाड़ौती में मौजूद हैं.

कोटा के हाड़ौती में हर सामने आते है साल 40 हजार कैंसर के मरीज

हाड़ौती संभाग में सबसे ज्यादा मुंह और जबड़े का कैंसर के मरीज सामने आते हैं, जो कि तंबाकू खाने की वजह से होता है. निचले तबके के मजदूर और मैकेनिकल लोग गुटका और तंबाकू का जबरदस्त सेवन करते हैं. उनमें कुछ समय बाद मुंह में छाला हो जाता है, फिर वह कैंसर का रूप धारण कर लेता है.

इसी तरह से कोटा के अंदर महिलाएं जो ग्रामीण परिवेश से आती हैं वह तंबाकू युक्त लाल मंजन करती है. लंबे समय तक इसका प्रयोग करने से स्त्रियों को मुंह का कैंसर हो जाता है. पुरुषों में मुंह और जबड़े के कैंसर के बाद फेफड़ों का कैंसर ज्यादातर हाड़ौती में पाया जाता है. जबकि महिलाओं में स्तन कैंसर, बच्चेदानी और सर्वाइकल कैंसर ज्यादातर पाया जाता है.

पढ़ेंः स्पेशलः ईगो की आग में जल रही रिश्तों की 'डोर', अदालत की दहलीज पर जुदा हो रहे रास्ते

चिकित्सकों का मानना है कि बीते 10 सालों में पहले अधिकतर मरीज चौथी स्टेज में ही सामने आते थे, लेकिन अब 30 से 40 फीसदी मरीज पहली और दूसरी स्टेज में ही सामने आने लगे हैं. पहले केवल 20 फीसदी मरीजों को ही बचाया जा सकता था, लेकिन अब 30 से 40 फीसदी कैंसर के मरीज ठीक हो रहे हैं. जबकि पश्चिमी देशों में 50 फीसदी मरीजों को वहां के चिकित्सक ठीक कर रहे हैं.

महिलाओं में होने वाले तीन प्रमुख कैंसर

महिलाओं में देखा जाए तो सबसे कॉमन कैंसर बच्चेदानी के मुंह का कैंसर है, जो कि मुख्य लक्षण बच्चेदानी से खून आना या सफेद गंदा पानी निकलना है. इसके अलावा दूसरा स्तन कैंसर पाया जाता है. साथ ही तीसरा कैंसर बच्चेदानी का कैंसर है. वही पेट का कैंसर भी काफी मात्रा में कोटा में पाया जाता है. मुंह का कैंसर भी हाड़ौती की महिलाओं में काफी होता है, क्योंकि तंबाकू का सेवन यहां आम प्रचलन में है.

वैक्सीन से भी हो सकता है कैंसर का इलाज

ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत दाधीच का कहना है कि वैक्सीन और ट्रीटमेंट भी काफी एडवांस हो गया है. वैक्सीन की बात की जाए तो दो तरह की वैक्सीन होती है. पहली प्रीवेंटिव और दूसरी थेरेपुटिक वैक्सीन होती है. इस तरह से लिवर कैंसर को होने से रोकने के लिए वैक्सीन मौजूद है. जिसमें हेपेटाइटिस से बचाव की वैक्सीन लगा देने पर लीवर कैंसर का खतरा बिल्कुल कम हो जाता है.

पढ़ेंः SPECIAL : नए मोटर व्हीकल एक्ट के बाद जुर्माने का डर...ट्रैफिक रूल्स के लिए लोगों में बढ़ी 'जागरूकता'

इसी तरह से महिलाओं में बच्चेदानी और सर्वाइकल के कैंसर को रोकने के लिए हुमन पपिल्लोमावायरस से बचाव के लिए भी वैक्सीन है, जो कि 13 साल की उम्र में ही बालिकाओं को लग जाती है. जिससे उन्हें यह कैंसर होने से बचाव हो जाता है.

टारगेटेड थेरेपी भी बढ़ा रही है मरीजों की लाइफ

मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत दाधीच का मानना है कि कैंसर के मरीजों के लिए टारगेटेड थेरेपी कारगर साबित हो रही है. पहले कीमोथेरेपी होती थी, उसके साइड इफेक्ट भी काफी होते थे, लेकिन अब टारगेटेड थेरेपी सीधा कैंसर पर अटैक करती है. उसके साइड इफेक्ट भी कम है.

कैंसर का पता सेल्फ एग्जामिनेशन से

महिलाओं में सबसे कॉमन कैंसर स्तन कैंसर है. महिलाएं भी सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन के जरिए इस बीमारी का पता जल्दी लगा सकती हैं. ताकि समय से उन्हें उपचार मिल जाए. इसमें शीशे के सामने खड़े होकर वह अपने ब्रेस्ट पर आने वाली सूजन को देख सकती है. साथ ही उसमें कोई गांठ तो नहीं है. अगर उन्हें यह गांठ महसूस होती है, तो वह कैंसर की हो सकती है. जिसके बारे में बाद में चिकित्सकों को दिखाकर उसे कंफर्म किया जा सकता है.

स्टेज के अनुसार मरीजों के बचने की संभावना

स्टेजसंभावना
पहला80 फीसदी
दूसरा60 फीसदी
तीसरा40 फीसदी
चौथा2 से 5 फीसदी

कोटा. कैंसर से एकजुट होकर लड़ने की आवश्यकता है. इस रोग के विस्तार को रोकने के लिए तरह-तरह के अभियान चलाए जा रहें हैं. ऐसे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है. कैंसर रोग विशेषज्ञों के अनुसार करीब 40 हजार मरीज हर साल हाड़ौती में कैंसर की जकड़ में आ जाते हैं. जिनमें अलग-अलग तरह के कैंसर शामिल हैं. साथ ही करीब डेढ़ लाख कैंसर के मरीज भी हाड़ौती में मौजूद हैं.

कोटा के हाड़ौती में हर सामने आते है साल 40 हजार कैंसर के मरीज

हाड़ौती संभाग में सबसे ज्यादा मुंह और जबड़े का कैंसर के मरीज सामने आते हैं, जो कि तंबाकू खाने की वजह से होता है. निचले तबके के मजदूर और मैकेनिकल लोग गुटका और तंबाकू का जबरदस्त सेवन करते हैं. उनमें कुछ समय बाद मुंह में छाला हो जाता है, फिर वह कैंसर का रूप धारण कर लेता है.

इसी तरह से कोटा के अंदर महिलाएं जो ग्रामीण परिवेश से आती हैं वह तंबाकू युक्त लाल मंजन करती है. लंबे समय तक इसका प्रयोग करने से स्त्रियों को मुंह का कैंसर हो जाता है. पुरुषों में मुंह और जबड़े के कैंसर के बाद फेफड़ों का कैंसर ज्यादातर हाड़ौती में पाया जाता है. जबकि महिलाओं में स्तन कैंसर, बच्चेदानी और सर्वाइकल कैंसर ज्यादातर पाया जाता है.

पढ़ेंः स्पेशलः ईगो की आग में जल रही रिश्तों की 'डोर', अदालत की दहलीज पर जुदा हो रहे रास्ते

चिकित्सकों का मानना है कि बीते 10 सालों में पहले अधिकतर मरीज चौथी स्टेज में ही सामने आते थे, लेकिन अब 30 से 40 फीसदी मरीज पहली और दूसरी स्टेज में ही सामने आने लगे हैं. पहले केवल 20 फीसदी मरीजों को ही बचाया जा सकता था, लेकिन अब 30 से 40 फीसदी कैंसर के मरीज ठीक हो रहे हैं. जबकि पश्चिमी देशों में 50 फीसदी मरीजों को वहां के चिकित्सक ठीक कर रहे हैं.

महिलाओं में होने वाले तीन प्रमुख कैंसर

महिलाओं में देखा जाए तो सबसे कॉमन कैंसर बच्चेदानी के मुंह का कैंसर है, जो कि मुख्य लक्षण बच्चेदानी से खून आना या सफेद गंदा पानी निकलना है. इसके अलावा दूसरा स्तन कैंसर पाया जाता है. साथ ही तीसरा कैंसर बच्चेदानी का कैंसर है. वही पेट का कैंसर भी काफी मात्रा में कोटा में पाया जाता है. मुंह का कैंसर भी हाड़ौती की महिलाओं में काफी होता है, क्योंकि तंबाकू का सेवन यहां आम प्रचलन में है.

वैक्सीन से भी हो सकता है कैंसर का इलाज

ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत दाधीच का कहना है कि वैक्सीन और ट्रीटमेंट भी काफी एडवांस हो गया है. वैक्सीन की बात की जाए तो दो तरह की वैक्सीन होती है. पहली प्रीवेंटिव और दूसरी थेरेपुटिक वैक्सीन होती है. इस तरह से लिवर कैंसर को होने से रोकने के लिए वैक्सीन मौजूद है. जिसमें हेपेटाइटिस से बचाव की वैक्सीन लगा देने पर लीवर कैंसर का खतरा बिल्कुल कम हो जाता है.

पढ़ेंः SPECIAL : नए मोटर व्हीकल एक्ट के बाद जुर्माने का डर...ट्रैफिक रूल्स के लिए लोगों में बढ़ी 'जागरूकता'

इसी तरह से महिलाओं में बच्चेदानी और सर्वाइकल के कैंसर को रोकने के लिए हुमन पपिल्लोमावायरस से बचाव के लिए भी वैक्सीन है, जो कि 13 साल की उम्र में ही बालिकाओं को लग जाती है. जिससे उन्हें यह कैंसर होने से बचाव हो जाता है.

टारगेटेड थेरेपी भी बढ़ा रही है मरीजों की लाइफ

मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत दाधीच का मानना है कि कैंसर के मरीजों के लिए टारगेटेड थेरेपी कारगर साबित हो रही है. पहले कीमोथेरेपी होती थी, उसके साइड इफेक्ट भी काफी होते थे, लेकिन अब टारगेटेड थेरेपी सीधा कैंसर पर अटैक करती है. उसके साइड इफेक्ट भी कम है.

कैंसर का पता सेल्फ एग्जामिनेशन से

महिलाओं में सबसे कॉमन कैंसर स्तन कैंसर है. महिलाएं भी सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन के जरिए इस बीमारी का पता जल्दी लगा सकती हैं. ताकि समय से उन्हें उपचार मिल जाए. इसमें शीशे के सामने खड़े होकर वह अपने ब्रेस्ट पर आने वाली सूजन को देख सकती है. साथ ही उसमें कोई गांठ तो नहीं है. अगर उन्हें यह गांठ महसूस होती है, तो वह कैंसर की हो सकती है. जिसके बारे में बाद में चिकित्सकों को दिखाकर उसे कंफर्म किया जा सकता है.

स्टेज के अनुसार मरीजों के बचने की संभावना

स्टेजसंभावना
पहला80 फीसदी
दूसरा60 फीसदी
तीसरा40 फीसदी
चौथा2 से 5 फीसदी
Last Updated : Feb 4, 2021, 6:44 AM IST
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