जोधपुर. असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा मंगलवार को राजस्थान सहित सभी जगहों पर मनाया जाएगा. दशहरे के दिन रावण का दहन किया जाता है. इस दिन पूरा देश जहां रावण दहन की खुशियां मनाएगा तो वहीं जोधपुर में कुछ ऐसे लोग हैं जो रावण के दिन शोक मनाते हैं.
जोधपुर के सूरसागर इलाके में चांदपोल रोड पर लगभग 20 साल पुराना राजस्थान का सबसे बड़ा रावण का मंदिर है. जहां पर दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है. दशहरे के दिन शोक मनाने वाले लोग अपने आप को रावण का वंशज मानते हैं. पुराणों में ऐसी मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी जोधपुर की रहने वाली थी और रावण का विवाह जोधपुर में ही हुआ था. उस समय रावण के साथ बारात में आए कुछ लोग यहीं पर बस गए. जिस कारण से आज भी रावण के वंशज जोधपुर में निवास करते हैं और इन्हीं रावण के वंशजों द्वारा रावण का मंदिर बना रखा है.
मंदिर में रावण के वंशज नियमित रूप से रावण की पूजा करते हैं. शहर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर आज भी स्थित है. रावण के वंशज गोधा गोत्र के ब्राह्मण होते है. जिन्हें श्रीमाली ब्राह्मण भी कहते हैं. उन्हीं लोगों ने यह मंदिर बनवाया गया है. पंडित कमलेश कुमार ने बताया कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे. रावण को कई वेदों का ज्ञान था. जिसके चलते उन्हें विद्वान भी कहा जाता था.
ऐसे में जोधपुर के इस मंदिर में आज भी पूरे भारत के अलग-अलग हिस्सों से कई संगीतज्ञ वेद का पढ़ाई करने वाले छात्र रावण के मंदिर में आशीर्वाद लेने यहां पर आते हैं. पुजारी के अनुसार उनके लिए दशहरा शोक का प्रतीक है. इस दिन रावण के वंशज रावण दहन देखने नहीं जाते हैं. साथ ही रावण दहन वाले दिन को वे लोग शोक के रूप में मनाते हुए शाम को स्नान कर जनेऊ बदल कर रावण की पूजा अर्चना करते हैं और फिर उसके बाद भोजन ग्रहण करते हैं.