जोधपुर. पाकिस्तान से धार्मिक वीजा पर भारत आए पाक हिंदुओं को सरकार ने भले ही यहां रूकने दिया है. लेकिन इसके आगे कुछ नहीं हो रहा है. जोधपुर में ही हजारों की संख्या में ऐसे लोग हैं. जिनकों दशक से अपनी नागरिकता का इंतजार है. इसके अभाव में ना तो वे घर बना पा रहे हैं और ना ही नौकरी कर पा रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई में भी परेशानी झेलनी पड़ रही है. इन सभी पाक विस्थापितों की मांग है कि सरकार हमें भी इन परेशानियों से स्वतंत्र करें, जिससे वे मुख्य धारा में शामिल हो सकें.
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पाकिस्तान में डॉक्टरी की पढ़ाई करते समय सरकारी एंजेंसियों से बचने के लिए भारत आए भागचंद बताते हैं कि एमबीबीएस के चौथे साल की पढ़ाई करते समय भारत आया था. आज पांच साल से ज्यादा का समय हो गया है लेकिन अभी नागरिकता नहीं मिली है. पढाई भी काम नहीं आई, विस्थापितों के लिए काम कर रही एक संस्था के लिए काम कर अपना जीवन यापन कर रहे है.
कराची में अपना जमा जमाया कारोबार छोड़कर आए सुजानमल एक छोटी सी किराणा की दुकान से जिंदगी चला रहे हैं. जोधपुर के चौखा क्षेत्र के पाक विस्थापितों की बस्तियों के बुरे हाल है. ज्यादातर में ना तो पक्की फर्श है और ना ही पक्की छत. इन्हें उम्मीद है कि एक दिन हमें भी भारत में सामान्य नागरिकों जैसी सुविधाएं व पहचान मिलेगी. पाक से आए यह ज्यादातर विस्थापित भील हे जो आदिवासी कहलाते हैं.
कच्चे फर्श व कच्ची छत के नीचे सैंकड़ों पाक विस्थापित हिंदू अपने दिन निकाल रहे हैं. सुकून इस बात का ही है कि वे सुरक्षित हैं. पाक विस्थापितों की सबसे बड़ी समस्या है नागरिकता मिलने में देरी. हालांकि यह सरकारी प्रक्रिया है जिसमें सभी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है. लेकिन इस दौरान ऐसी स्थितियां भी आती है. जिसमें पाकिस्तानी पासपोर्ट की अवधि समाप्त हो जाती है. इसे बढ़ाने लिए पाक दूतावास में पांच हजार रुपए प्रति व्यक्ति फीस लगती है. जिसके चलते कई परिवार तो आवेदन हीं नहीं कर पाते हैं और उनकी नागरिकता लंबी हो जाती है.
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पाक विस्थापित हिंदू अपनी धार्मिक आजादी व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान से लगतार आ रहे हैं. ज्यादातर धार्मिक वीजा पर आते हैं जो बाद में भारत में ही रूक जाते हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इनके लिए एक पहचान जारी करें जो नागरिकता मिलने तक काम आती रहे.