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स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: पाक विस्थापितों को अब भी नागरिकता का इंतजार...ऐसे कर रहे गुजर-बसर

देश अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. इस बार आजादी का पर्व ज्यादा ही जोशीला होगा. क्योंकि कश्मीर पर सरकार ने जो बड़ा फैसला लिया. इससे पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है. लेकिन देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पाकिस्तान में जुल्मों सितम से परेशान होकर भारत आए लेकिन यहां भी उनको अभी भारतीय होने की पहचान नहीं मिल पाई है.

Pakisthan Refugee, पाक विस्थापित हिंदू
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Published : Aug 14, 2019, 10:49 PM IST

जोधपुर. पाकिस्तान से धार्मिक वीजा पर भारत आए पाक हिंदुओं को सरकार ने भले ही यहां रूकने दिया है. लेकिन इसके आगे कुछ नहीं हो रहा है. जोधपुर में ही हजारों की संख्या में ऐसे लोग हैं. जिनकों दशक से अपनी नागरिकता का इंतजार है. इसके अभाव में ना तो वे घर बना पा रहे हैं और ना ही नौकरी कर पा रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई में भी परेशानी झेलनी पड़ रही है. इन सभी पाक विस्थापितों की मांग है कि सरकार हमें भी इन परेशानियों से स्वतंत्र करें, जिससे वे मुख्य धारा में शामिल हो सकें.

पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: राजस्थान के पहले परमवीर चक्र विजेता पीरूसिंह के साहस की कहानी

पाकिस्तान में डॉक्टरी की पढ़ाई करते समय सरकारी एंजेंसियों से बचने के लिए भारत आए भागचंद बताते हैं कि एमबीबीएस के चौथे साल की पढ़ाई करते समय भारत आया था. आज पांच साल से ज्यादा का समय हो गया है लेकिन अभी नागरिकता नहीं मिली है. पढाई भी काम नहीं आई, विस्थापितों के लिए काम कर रही एक संस्था के लिए काम कर अपना जीवन यापन कर रहे है.

पाक विस्थापितों को अब भी नागरिकता का इंतजार...ऐसे कर रहे गुजर-बसर

कराची में अपना जमा जमाया कारोबार छोड़कर आए सुजानमल एक छोटी सी किराणा की दुकान से जिंदगी चला रहे हैं. जोधपुर के चौखा क्षेत्र के पाक विस्थापितों की बस्तियों के बुरे हाल है. ज्यादातर में ना तो पक्की फर्श है और ना ही पक्की छत. इन्हें उम्मीद है कि एक दिन हमें भी भारत में सामान्य नागरिकों जैसी सुविधाएं व पहचान मिलेगी. पाक से आए यह ज्यादातर विस्थापित भील हे जो आदिवासी कहलाते हैं.

कच्चे फर्श व कच्ची छत के नीचे सैंकड़ों पाक विस्थापित हिंदू अपने दिन निकाल रहे हैं. सुकून इस बात का ही है कि वे सुरक्षित हैं. पाक विस्थापितों की सबसे बड़ी समस्या है नागरिकता मिलने में देरी. हालांकि यह सरकारी प्रक्रिया है जिसमें सभी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है. लेकिन इस दौरान ऐसी स्थितियां भी आती है. जिसमें पाकिस्तानी पासपोर्ट की अवधि समाप्त हो जाती है. इसे बढ़ाने लिए पाक दूतावास में पांच हजार रुपए प्रति व्यक्ति फीस लगती है. जिसके चलते कई परिवार तो आवेदन हीं नहीं कर पाते हैं और उनकी नागरिकता लंबी हो जाती है.

पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: आजादी के बाद से अब तक भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्या-क्या हुए बदलाव

पाक विस्थापित हिंदू अपनी धार्मिक आजादी व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान से लगतार आ रहे हैं. ज्यादातर धार्मिक वीजा पर आते हैं जो बाद में भारत में ही रूक जाते हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इनके लिए एक पहचान जारी करें जो नागरिकता मिलने तक काम आती रहे.

जोधपुर. पाकिस्तान से धार्मिक वीजा पर भारत आए पाक हिंदुओं को सरकार ने भले ही यहां रूकने दिया है. लेकिन इसके आगे कुछ नहीं हो रहा है. जोधपुर में ही हजारों की संख्या में ऐसे लोग हैं. जिनकों दशक से अपनी नागरिकता का इंतजार है. इसके अभाव में ना तो वे घर बना पा रहे हैं और ना ही नौकरी कर पा रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई में भी परेशानी झेलनी पड़ रही है. इन सभी पाक विस्थापितों की मांग है कि सरकार हमें भी इन परेशानियों से स्वतंत्र करें, जिससे वे मुख्य धारा में शामिल हो सकें.

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पाकिस्तान में डॉक्टरी की पढ़ाई करते समय सरकारी एंजेंसियों से बचने के लिए भारत आए भागचंद बताते हैं कि एमबीबीएस के चौथे साल की पढ़ाई करते समय भारत आया था. आज पांच साल से ज्यादा का समय हो गया है लेकिन अभी नागरिकता नहीं मिली है. पढाई भी काम नहीं आई, विस्थापितों के लिए काम कर रही एक संस्था के लिए काम कर अपना जीवन यापन कर रहे है.

पाक विस्थापितों को अब भी नागरिकता का इंतजार...ऐसे कर रहे गुजर-बसर

कराची में अपना जमा जमाया कारोबार छोड़कर आए सुजानमल एक छोटी सी किराणा की दुकान से जिंदगी चला रहे हैं. जोधपुर के चौखा क्षेत्र के पाक विस्थापितों की बस्तियों के बुरे हाल है. ज्यादातर में ना तो पक्की फर्श है और ना ही पक्की छत. इन्हें उम्मीद है कि एक दिन हमें भी भारत में सामान्य नागरिकों जैसी सुविधाएं व पहचान मिलेगी. पाक से आए यह ज्यादातर विस्थापित भील हे जो आदिवासी कहलाते हैं.

कच्चे फर्श व कच्ची छत के नीचे सैंकड़ों पाक विस्थापित हिंदू अपने दिन निकाल रहे हैं. सुकून इस बात का ही है कि वे सुरक्षित हैं. पाक विस्थापितों की सबसे बड़ी समस्या है नागरिकता मिलने में देरी. हालांकि यह सरकारी प्रक्रिया है जिसमें सभी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है. लेकिन इस दौरान ऐसी स्थितियां भी आती है. जिसमें पाकिस्तानी पासपोर्ट की अवधि समाप्त हो जाती है. इसे बढ़ाने लिए पाक दूतावास में पांच हजार रुपए प्रति व्यक्ति फीस लगती है. जिसके चलते कई परिवार तो आवेदन हीं नहीं कर पाते हैं और उनकी नागरिकता लंबी हो जाती है.

पढ़ें- स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: आजादी के बाद से अब तक भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्या-क्या हुए बदलाव

पाक विस्थापित हिंदू अपनी धार्मिक आजादी व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान से लगतार आ रहे हैं. ज्यादातर धार्मिक वीजा पर आते हैं जो बाद में भारत में ही रूक जाते हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इनके लिए एक पहचान जारी करें जो नागरिकता मिलने तक काम आती रहे.

Intro:नोट वीओ नहीं है
जोधपुर : हम सब  15 अगस्त को स्वंतत्रता दिवस मनाएंगे इस बार आजादी का पर्व कुछ ज्यादा ही जोिशला होगा क्योंिक कश्मीर पर सरकार ने जो बडा फैसला लिया जिससे पाकिस्तान को बडा झटका लगा है , लेिकन देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पाकिस्तान में जुल्मों सितम से परेशान होकर भारत आए लेिकन उनको बरसों के बाद भी अपनी नागरिकता का इंतजार है और अपने भारतीय बनने की पहचान का भी। अब 370 हटाने से यहां रह रहे विस्थापितों का कहना है इसके बाद पाकिस्तान में हालात और खराब हो गए हैं, क्योंकि अभी कई परिवार वहां हैं। ऐसे में ट्रेने चलती रहे हैं।
पाकिस्तान से धार्मिक वीजा पर भारत  आए पाक िहंदुओं को सरकार ने भले ही यहां रूकने दिया है लेिकन इसके आगे कुछ नहीं हो है, जोधपुर में ही हजारेां की संख्या में ऐसे लोग हैं जिनकों दशक से अपनी नागरिकता का इंतजार है  इसके अभाव में न तो वे घर बना पा रहे हैं ओर न ही नौकरी कर पा रहे हैं, बच्चों की पढाई मे भी परेशानी हो रही ह इन सभी पाक विस्थापितों की मांग है कि सरकार हमें भी इन परेशानियों से स्वंतंत्र करें, जिससे वे मुख्य धारा में शामिल हो सके। पाकिस्तान में डॉक्टरी की पढाई करते समय सरकारी एंजेंिसयों से बचने के लिए भारत आए भागचंद बताते हैं कि एमबीबीएस के चौथे साल की पढाई करते समय भारत आया था आज पांच साल से ज्यादा का समय हो गया है लेिकन अभी नागरिकता नहीं िमली हे पढाई भी काम नहीं आई, विस्थापितों के लिए काम कर रही एक संस्था के लिए काम कर अपना जीवन यापन कर रहे हें, कराची में अपना जमा जमाया बिजनस छोड कर आए सुजानमल एक छोटी सी किराणा की दुकान से जिंदगी चला रहे हैं। जोधपुर के चौखा क्षेत्र की पाकविस्थापितों की  बस्तियों के बुरे हाल है ज्यादातर में न तो पक्क्ी फर्श है और न ही पक्की छत।



Body:वीओ : ितरंगों में सजी यह दुकान पाक विस्थापित हिंदुओं के लिए काम कर ही संस्था की है और यह बच्चे पाकिस्तान से आए हुए है। अब यह भारत को ही अपना देश व सबकुछ मानते हैं। इन्हें उम्मीद है कि एक दिन हमें भी भारत में सामान्य नागरिकों जैसी सुविधाएं व पहचान मिलेगी। पाक से आए यह ज्यादातर विस्थापित भील हे जो आदिवासी कहलाते हैं।
बाईट : भागचंद, एक्टिविस्ट,
वीओ 2 कच्चे फर्श व कच्ची छत के नीचे सैकंडों पाक विस्थापित हिंदू अपने दिन निकाल रहे हैं उनकी मजबूरी भी है सुकून इस बात का ही है कि वे सुरक्षित हैं। पाक विस्थापितों की सबसे बडी समस्या हे नागरिकता मिलने में देरी हालांकि यह सरकारी प्रक्रिया है जिसमें सभी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है। लेकिन इस दौरान ऐसी स्थितियां भी आती हे जिसमें पाकिस्तानी पासपोर्ट की अवधि समाप्त हो जाती है इसे बढाने लिए पाक दूतावास में पांच हजार रुपए प्रति व्यक्ति िफस लगती है जिसके चलते कई परिवार तो आवेदन हीं नहीं कर पाते हैं और उनकी नागरिकता लंबी हो जाती है।
बाईट कानराम, पाक विस्थापित
बाईट सुजानराम, पाकविस्थापित
बाईट भागचंद, एक्टिविस्ट
साइन आफ पाक विस्थापित िहंदु अपनी धार्मिक अाजादी व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान से लगतार आ रहे हैं, ज्यादातर धार्मिक वीजा पर आते हैं जो बाद में भारत में ही रूक जाते हैं, ऐसे में सरकार को चाहिए कि इनके लिए एक पहचान जारी करें जो नागरिकता मिलने तक काम आती रहे।





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