जोधपुर. राजस्थान का सबसे बड़ा स्टील हब जोधपुर में है. जहां स्टील री-रोलिंग के साथ-साथ यूटेंसिल यानी बर्तन बनाने की भी इकाइयां मौजूद हैं. दोनों क्षेत्र की करीब 170 इंडस्ट्रीज जोधपुर में चल रही है. भारत में होने वाले री-रोलिंग स्टील का करीब 50 फीसदी उत्पाद जोधपुर में ही होता है. लॉकडाउन और अनलॉक में उद्योगों को खोलने की अनुमति के बाद भी उद्योग पूरी तरह से चालू नहीं हो पाए हैं. यह समस्या जोधपुर के स्टील उद्योग की भी है. समय पर मजदूर नहीं मिले, उत्पादन शुरू नहीं हुआ, तो देश में स्टील उत्पादों का प्रमुख केन्द्र यह स्टील उद्योग अपनी चमक खो देगा.
जोधपुर में स्टील री-रोलिंग और बर्तन उद्योग से करीब 15 हजार मजदूर जुड़े हुए हैं. लेकिन लॉकडाउन से बड़ी संख्या में मजदूर पलायन कर अपने घर वापसी कर गए. वर्तमान में कुल मजदूरों के मुकाबले 3000-3500 मजदूर ही काम कर रहे है. सिंगल शिफ्ट में काम, प्लांट की क्षमता से कम उत्पादन, उद्यमियों के अनुसार, फैक्ट्रियों आम दिनों और मांग के अनुरूप अलग-अलग शिफ्टों में काम होता है. अभी स्थिति यह है कि सिंगल शिफ्ट में भी मुश्किल से काम हो रहा है.
क्या कहते हैं आंकड़े...
- जोधपुर में स्टील रि-रोलिंग इंस्ट्रीज की 80 इकाइयां हैं.
- कोविड से पहले 300 करोड़ रुपए प्रतिमाह टर्न ओवर था.
- हर महीने 30 टन का उत्पादन होता था.
- लॉकडाउन के बाद 25 से 30 फीसदी ही इंडस्ट्रीज शुरू हुई है.
- इंडस्ट्रीज में करीब 3 से 4 हजार कामगार काम करते थे
- कोरोना के बाद काम करने के लिए 1000 मजदूर उपलब्ध हैं
- उत्पादन घटकर 8 से 10 टन हो गया है
री-रोलिंग इंडस्ट्रीज में अभी 25 से 30 फीसदी उत्पाद होने लगा है. मुंबई में कोरोना की मार होने से री-रोलिंग इंडस्ट्रीज ज्यादातर बंद है. ऐसे में वहां के ऑर्डर भी जोधपुर को मिलने लगे हैं, लेकिन यहां कामगारों की कमी भारी पड़ रही है, क्योंकि इनमें काम करने वाले उत्तर प्रदेश व बिहार के मजदूर जा चुके हैं. इक्का दुक्का ही वापस लौटें है और स्थानीय मजदूर इस कार्य के अभ्यस्त नहीं है. ऐसे में मजदूरों की कमी एक बड़ी समस्या है.
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जोधपुर स्टील री-रोलिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष बीएल चोपड़ा बताते हैं कि उद्योगों को चलाने के लिए उद्यमी लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मजदूरों की कमी परेशानी बनी हुई है. जिसके चलते 25 से 30 फीसदी ही उत्पादन हो पा रहा है. चोपड़ा के अनुसार कोविड से पहले जोधपुर में री-रोलिंग यानी की स्टील के पाटे-पट्टियां जिनसे बर्तन सहित अन्य सामान बनते हैं, उनका 30 टन प्रतिमाह उत्पादन होता था, जो अभी 10 टन तक पहुंच गया है.
क्या कहते हैं आंकड़े...
- जिले में स्टील यूटेंसिल इंडस्ट्रीज की कुल 90 इकाइयां हैं.
- इनमें 7 से 8 हजार लोग काम करते थे.
- 8 से दस हजार टन बर्तन यूटेंसिल इंडस्ट्रीज हर महीने बनाती थी.
- कोरोना से पहले 100 करोड़ का टर्न ओवर हर महीने होता था.
- लॉकडाउन में कई मजदूर घर लौट गए हैं.
- काम करने के लिए अब केवल 30 फीसदी मजदूर ही बाकी हैं.
एसोसिएशन के सचिव राजेश जीरावला बताते हैं 'हमारी इंडस्ट्रीज में अभी 40 फीसदी उत्पाद होने लगा है, लेकिन लेबर की कमी बनी हुई है. अगर लेबर मिल जाए, तो काम और बढ़ सकता है, क्योंकि बाजार से ऑर्डर लगातार निर्माताओं को मिल रहा है.
उनका कहना है कि फिलहाल यह ऑर्डर दिपावली को ध्यान में रखते हुए आ रहे है. स्टॉकिस्ट ही ऑर्डर दे रहे हैं. लेकिन बाजार में रिटेल बिक्री में अभी तेजी नहीं आई है. जीरावला के अनुसार मुंबई में कोरोना के चलते काम बंद होने से 15 फीसदी ऑर्डर भी जोधपुर की तरफ आए हैं.