जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय के जस्टिस पंकज भंडारी की एकलपीठ ने एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि जांच में देरी संविधान का उल्लघंन है. हाईकोर्ट ने शीघ्र जांच के अधिकार को संविधानिक मौलिक अधिकार मानते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो जयपुर की ओर से दर्ज एफआईआर को निरस्त करने का आदेश दिया.
याचिकाकर्ता अनिल कुमार व्यास की ओर से अधिवक्ता गजेन्द्र सिंह बुटाटी ने एक आपराधिक याचिका पेश करते हुए शीघ्र जांच के अधिकार का उल्लघंन बताया. अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता सरकारी अधिकारी के रूप में कार्यरत था, उसके खिलाफ एक कार्रवाई करते हुए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने वर्ष 2009 में घर छापा मारा और आय से अधिक सम्पति का केस भी दर्ज किया.
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इसकी जांच 12 साल बाद भी पूरी नहीं की गई है. इससे याचिकाकर्ता का शीघ्र जांच के अधिकार का हनन हुआ है. जबकि वर्ष 2016 और उसके बाद वर्ष 2019 में भी अनुसंधान अधिकारी ने आय से अधिक सम्पति का मामला नहीं माना और उसके बाद भी अब तक अनुसंधान चल रहा है, जबकि याचिकाकर्ता वर्ष 2019 में सेवानिवृत भी हो चुका है.
याचिकाकर्ता के माता-पिता की आय को भी याचिकाकर्ता की आय में जोड़ दिया गया. याचिकाकर्ता ने अनुसंधान में भी सहयोग करने से कभी इंकार नहीं किया. न्यायालय ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ वर्ष 2009 में दर्ज एफआईआर को निरस्त करने का आदेश पारित किया है.