जोधपुर. मीनाक्षी मेहरा की तीन वर्षीय पुत्री चाहत मेहरा की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में अधिवक्ता रजाक के. हैदर व पंकज साईं ने याचिका दायर करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था. लॉटरी प्रक्रिया में चयनित होने के उपरांत उसे प्रवेश के लिए पात्र घोषित किया गया, लेकिन निजी स्कूल ने उसे इस आधार पर प्रवेश से वंचित कर दिया कि वह कैचमेंट एरिया से बाहर के हैं.
स्कूल प्रशासन बताया था कि प्रवेशार्थी वार्ड संख्या 13 की निवासी है और स्कूल वार्ड संख्या 43 में स्थित है. इस मुद्दे पर बात करते हुए गुरुवार को अधिवक्ता हैदर ने कहा कि शिक्षा का अधिकार का उद्देश्य दुर्बल वर्ग या असुविधाग्रस्त समूह के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के समान अवसर प्रदान करना है. सम्बन्धित वार्ड की सीमाओं में बांधकर उन्हें बेहतर शिक्षा से वंचित करना इस कानून की मूल भावना के खिलाफ है. कमजोर वर्ग के बच्चों को भी अन्य बच्चों की तरह शहर के सभी विद्यालयों में प्रवेश लेने का बराबर अधिकार है.
उन्होंने कहा कि निर्धारित प्रक्रिया अपनाने के उपरांत चयनित होने के बाद उनका प्रवेश केवल इस आधार पर रद्द करना विधिसंगत नहीं है कि वह सम्बन्धित वार्ड में निवास नहीं करते हैं. स्कूल प्रशासन ने कैचमेंट एरिया को अपनी मनमर्जी से लागू किया है. राज्य के आरटीई नियमों के अनुसार कैचमेंट एरिया का दायरा केवल एक वार्ड नहीं होकर समस्त नगर निगम क्षेत्र है. स्कूल से सम्बन्धित वार्ड के निवासियों को केवल प्राथमिकता दिए जाने का प्रावधान है. इस आधार पर अन्य वार्ड के प्रवेशार्थियों को प्रवेश से इनकार नहीं किया जा सकता.
पढ़ें: कोटा: सरकारी अध्यापक ने अपनी पत्नी को व्हाट्सएप पर दिया ट्रिपल तलाक
अधिवक्ता रजाक ने आगे बताया कि एक ही नगर निगम क्षेत्र में निवास करने के कारण वह कैचमेंट एरिया में ही आती हैं और सीट रिक्त होने की स्थिति में प्रवेश की हकदार हैं. आवेदन पत्र में स्कूल व निवास का वार्ड समान होने की मामूली त्रुटि होने के आधार पर भी प्रवेश रद्द करना न्यायसंगत नहीं है. अधिनियम की साफ मंशा है कि किसी भी बालक को दस्तावेज में विसंगति के आधार पर शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता.
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रमुख शासन सचिव, प्रारम्भिक शिक्षा निदेशालय राजस्थान के निदेशक, जोधपुर के जिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक व माध्यमिक और निजी स्कूल को नोटिस जारी करते हुए जवाब पेश करने का आदेश दिया. साथ ही विद्यालय प्रशासन द्वारा प्रवेश नहीं देने सम्बन्धी आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी.