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Exclusive: कलेवा योजना में मिलीभगत का 'जीमण', जोधपुर में NGO और अस्पताल कर्मचारियों ने डकारे लाखों

राज्य सरकार की ओर से प्रसव के बाद अस्पताल में रुकने के दौरान प्रसूता को पौष्टिक आहार मिले. इसके लिए कलेवा योजना के अंतर्गत प्रतिदिन 99 रुपए खर्च किए जाते हैं. लेकिन अस्पताल कर्मचारियों ने NGO के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेज बनाकर राशि का अत्यधिक भुगतान उठाना शुरू किया और लाखों रुपए का गबन कर लिया. इस मामले में अब FIR दर्ज करवाई गई है.

Embezzlement in kaleva yojna, Embezzlement at Banad Community Health Center
कलेवा योजना में मिलीभगत से लाखों का गबन
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Published : Jul 10, 2020, 8:00 PM IST

जोधपुर. प्रसव के बाद अस्पताल में रुकने के दौरान प्रसूता को पौष्टिक आहार मिले. इसके लिए राज्य सरकार कलेवा योजना के तहत प्रत्येक प्रसूता को आहार उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिदिन 99 रुपए खर्च करती हैं. लेकिन शहर से सटे बनाड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों ने मिलीभगत कर इस कलेवा योजना के फर्जी आदेश बनाकर बड़ी राशि का गबन कर लिया.

हालांकि राशि का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है. लेकिन विभागीय जांच के बाद मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के निर्देश पर इस मामले की FIR दर्ज करवाई गई है. जिससे दोषियों से राशि वसूल की जा सके. मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बलवंत मंडा ने बताया कि 2016 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रसूताओं को सुबह शाम के नाश्ते के लिए कलेवा योजना के तहत 99 रुपए देने का प्रावधान था.

कलेवा योजना में मिलीभगत से लाखों का गबन

यह कार्य एक एनजीओ के माध्यम से होता था. लेकिन कुछ लोगों ने फर्जी दस्तावेज बनाकर यह राशि बढ़ाकर 145 रुपए कर ली और इस राशि के हिसाब से भुगतान उठाना शुरू कर दिया. दस्तावेज NHM मुख्यालय के नाम से था. जिसे अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर के सामने तत्कालीन लेखाधिकारी दीप्ती शर्मा ने पेश किया. जिसके बाद उन्होंने उसके आधार पर भुगतान शुरू कर दिया.

पढ़ें- श्रीगंगानगर में नशे के सौदागर गिरफ्तार, ढाई हजार नशीली गोलियां भी बरामद

करीब तीन साल तक यह खेल चलता रहा. इस दौरान भोमियाजी स्वयं सहायता समूह के मार्फत यह भुगतान उठता रहा. लेकिन 2019 में विभागीय ऑडिट हुआ तो इसका खुलासा हुआ कि भुगतान ज्यादा किया गया है. इसके बाद आदेश की जांच हुई तो सामने आया कि मुख्यालय से ऐसा कोई आदेश नहीं आया है. जिसके बाद FSL जांच में दस्तावेज फर्जी पाए गए.

खंड चिकित्सा अधिकारी की जांच में मार्च 2020 में इस गबन की पुष्टि हुई. अब विभाग में सामान्य कामकाज शुरू हुआ तो सीएमएचओ डॉ. मंडा के निर्देश पर बनाड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ. रविंद चौहान ने इस मामले की रिपोर्ट बनाड़ थाने में दर्ज करवाई. इस मामले में तत्कालीन लेखाकार दीप्ती शर्मा को चार्जशीट भी दी गई है. बनाड़ थानाधिकारी अशोक आंजणा ने बताया कि चिकित्सा अधिकारी की रिपोर्ट पर मामले की जांच शुरू कर दी गई है.

पढ़ें- ग्रामीणों की कोरोना से जंग : बूंदी के टिकरदा ग्राम पंचायत के लोग किसी 'योद्धा' से कम नहीं...देखें ग्राउंड रिपोर्ट

लाखों रुपए का गबन

विभागीय जानकारों के अनुसार बनाड़ अस्पताल में औसतन 180 प्रसव प्रतिमाह होते हैं. इस हिसाब से एक साल में 2100 से ज्याद प्रसव होते हैं. 2016 से 2019 तक यहां 8000 से ज्याद प्रसव हुए. इन प्रसूताओं को दो दिन यहां रोका गया. इस हिसाब से प्रत्येक प्रसूता की कलेवा राशि में 90 रुपए का गबन किया गया. जिसकी कुल कीमत 7 लाख 20 हजार रुपए बनती है. हालांकि विभाग ने अभी गबन की राशि का खुलासा नहीं किया है. यह राशि और भी बढ़ सकती है. इसके अलावा जिले में अन्य अस्पतालों में भी इसकी पड़ताल की जा रही है कि कहीं और तो ऐसा नहीं हुआ.

राजस्थान सरकार की कलेवा योजना

जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रसव के बाद कम से कम 48 घंटे तक अस्पताल में प्रसूता को रखा जाता है. इस दौरान प्रसूता को पौष्टिक आहार देने के लिए राशि का प्रावधान किया गया है. बनाड़ अस्प्ताल में पौष्टिक आहार NGO के मार्फत बंटता था. जिसका अस्पताल की ओर से भुगतान किया जाता था. इस मामले में 99 रुपए की जगह 145 रुपए उठाए गए. जिससे एनजीओ और अस्पताल के कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आई है.

जोधपुर. प्रसव के बाद अस्पताल में रुकने के दौरान प्रसूता को पौष्टिक आहार मिले. इसके लिए राज्य सरकार कलेवा योजना के तहत प्रत्येक प्रसूता को आहार उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिदिन 99 रुपए खर्च करती हैं. लेकिन शहर से सटे बनाड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों ने मिलीभगत कर इस कलेवा योजना के फर्जी आदेश बनाकर बड़ी राशि का गबन कर लिया.

हालांकि राशि का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है. लेकिन विभागीय जांच के बाद मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के निर्देश पर इस मामले की FIR दर्ज करवाई गई है. जिससे दोषियों से राशि वसूल की जा सके. मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बलवंत मंडा ने बताया कि 2016 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रसूताओं को सुबह शाम के नाश्ते के लिए कलेवा योजना के तहत 99 रुपए देने का प्रावधान था.

कलेवा योजना में मिलीभगत से लाखों का गबन

यह कार्य एक एनजीओ के माध्यम से होता था. लेकिन कुछ लोगों ने फर्जी दस्तावेज बनाकर यह राशि बढ़ाकर 145 रुपए कर ली और इस राशि के हिसाब से भुगतान उठाना शुरू कर दिया. दस्तावेज NHM मुख्यालय के नाम से था. जिसे अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर के सामने तत्कालीन लेखाधिकारी दीप्ती शर्मा ने पेश किया. जिसके बाद उन्होंने उसके आधार पर भुगतान शुरू कर दिया.

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करीब तीन साल तक यह खेल चलता रहा. इस दौरान भोमियाजी स्वयं सहायता समूह के मार्फत यह भुगतान उठता रहा. लेकिन 2019 में विभागीय ऑडिट हुआ तो इसका खुलासा हुआ कि भुगतान ज्यादा किया गया है. इसके बाद आदेश की जांच हुई तो सामने आया कि मुख्यालय से ऐसा कोई आदेश नहीं आया है. जिसके बाद FSL जांच में दस्तावेज फर्जी पाए गए.

खंड चिकित्सा अधिकारी की जांच में मार्च 2020 में इस गबन की पुष्टि हुई. अब विभाग में सामान्य कामकाज शुरू हुआ तो सीएमएचओ डॉ. मंडा के निर्देश पर बनाड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ. रविंद चौहान ने इस मामले की रिपोर्ट बनाड़ थाने में दर्ज करवाई. इस मामले में तत्कालीन लेखाकार दीप्ती शर्मा को चार्जशीट भी दी गई है. बनाड़ थानाधिकारी अशोक आंजणा ने बताया कि चिकित्सा अधिकारी की रिपोर्ट पर मामले की जांच शुरू कर दी गई है.

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लाखों रुपए का गबन

विभागीय जानकारों के अनुसार बनाड़ अस्पताल में औसतन 180 प्रसव प्रतिमाह होते हैं. इस हिसाब से एक साल में 2100 से ज्याद प्रसव होते हैं. 2016 से 2019 तक यहां 8000 से ज्याद प्रसव हुए. इन प्रसूताओं को दो दिन यहां रोका गया. इस हिसाब से प्रत्येक प्रसूता की कलेवा राशि में 90 रुपए का गबन किया गया. जिसकी कुल कीमत 7 लाख 20 हजार रुपए बनती है. हालांकि विभाग ने अभी गबन की राशि का खुलासा नहीं किया है. यह राशि और भी बढ़ सकती है. इसके अलावा जिले में अन्य अस्पतालों में भी इसकी पड़ताल की जा रही है कि कहीं और तो ऐसा नहीं हुआ.

राजस्थान सरकार की कलेवा योजना

जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रसव के बाद कम से कम 48 घंटे तक अस्पताल में प्रसूता को रखा जाता है. इस दौरान प्रसूता को पौष्टिक आहार देने के लिए राशि का प्रावधान किया गया है. बनाड़ अस्प्ताल में पौष्टिक आहार NGO के मार्फत बंटता था. जिसका अस्पताल की ओर से भुगतान किया जाता था. इस मामले में 99 रुपए की जगह 145 रुपए उठाए गए. जिससे एनजीओ और अस्पताल के कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आई है.

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