जयपुर. राजस्थान में भले ही सौर ऊर्जा की असीम संभावनाएं हों और इसे बढ़ावा देने के लिए पॉलिसी भी बनाई जाती हो, लेकिन गहलोत सरकार अपनी ही बनाई नीतियों की अमल करने से परहेज कर रही है. दिसंबर 2019 में जारी सौर ऊर्जा पॉलिसी में रूफटॉप सोलर प्लांट लगाने वाले उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी में जो छूट की घोषणा की गई थी, अब उससे ही सरकार पीछे हट गई है.
प्रदेश की गहलोत सरकार ने दिसंबर 2019 में प्रदेश की नई ऊर्जा नीति जारी की थी, जिसमें सौर ऊर्जा की अपनी पॉलिसी थी. इसमें पॉइंट नंबर 16.4 में साफ तौर पर अंकित था कि कैप्टिव प्लांट लगाने से 7 साल तक इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी की छूट दी जाएगी. लेकिन, नई पॉलिसी आई नहीं इसलिए पुरानी पॉलिसी ही प्रदेश में लागू है. ऐसे में वित्त विभाग इसे मानने को तैयार नहीं है.
वित्त विभाग ने 10 जुलाई 2019 को आदेश जारी कर इस तरह के उपभोक्ताओं को 31 मार्च 2020 तक इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी से छूट दी थी, लेकिन उसके बाद उपभोक्ताओं को यह इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी चुकाना होगी. इस मसले पर जब ऊर्जा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला से बात की गई तो उन्होंने कहा कि विभाग और ऊर्जा विभाग के बीच का मसला है, इस बारे में दोनों विभाग बैठ कर बात कर लेंगे.
बता दें, आदेश हाल ही में निकाले गए जिसके बाद ऐसे उपभोक्ताओं से यह वसूली अप्रैल 2020 से की जाएगी. मतलब पिछले 15 महीने की राशि चुकाना पड़ेगी. छूट केवल इतनी है कि उपभोक्ता इसे एक साथ नहीं तो 3 किस्तों में भी चुका सकते हैं. मामला सरकार की वादाखिलाफी का है लिहाजा इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है.
भाजपा विधायक रामलाल शर्मा कहते हैं कि केवल इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी ही नहीं बल्कि किसानों के खराब मीटर को बदलने का चार्ज भी बढ़ा दिया गया है और विभिन्न शुल्क और फुल चार्ज के नाम पर विद्युत दरें भी बढ़ा दी गई हैं. शर्मा ने कहा कि यह तमाम मुद्दे आगामी विधानसभा सत्र में उठाए जाएंगे.
डिस्कॉम पहले ही अपने तंत्र के जरिए दी जाने वाली बिजली पर 40 पैसे पर यूनिट ड्यूटी ले रहा है. जिन लोगों ने लाखों रुपए खर्च करके अपनी छत पर सोलर पैनल लगाए थे, उन्हें भी इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी के रूप में अतिरिक्त भुगतान करना होगा. मतलब साफ है प्रदेश सरकार उपभोक्ताओं को राहत देने के बजाय उनकी जेब पर डाका डाल रही है.