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पूर्व में नियुक्त प्रबोधकों को बाद में लगने वालों से कम वेतन क्यों : हाइकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व में नियुक्त याचिकाकर्ता प्रबोधकों के बाद में नियुक्त किए गए प्रबोधकों से मिल रहे कम वेतन को लेकर प्रमुख शिक्षा सचिव, प्रारंभिक शिक्षा निदेशक और टोंक जिला शिक्षा अधिकारी सहित अन्य को नोटिस जारी किया.

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राजस्थान हाईकोर्ट
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Published : Feb 12, 2020, 3:28 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व में नियुक्त याचिकाकर्ता प्रबोधकों के बाद में नियुक्त किए गए प्रबोधकों से मिल रहे कम वेतन को लेकर प्रमुख शिक्षा सचिव, प्रारंभिक शिक्षा निदेशक और टोंक जिला शिक्षा अधिकारी सहित अन्य को नोटिस जारी किया. नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है. न्यायाधीश पंकज भंडारी की एकलपीठ ने यह आदेश केसर लाल जाट और अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया.

टोंक जिला शिक्षा अधिकारी सहित अन्य को नोटिस जारी

याचिका में अधिवक्ता राम प्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति साल 2008 में हुई थी. उन्हें 11 हजार 170 का न्यूनतम वेतन मिल रहा है. जबकि उनके 2 साल बाद सला 2010 में नियुक्त हुए अन्य प्रबोधकों को न्यूनतम वेतन के तौर पर 12 हजार 900 रुपए दिए जा रहे हैं. ऐसे में याचिकाकर्ताओं को हर माह 1730 रुपए कम दिए जा रहे हैं. जबकि पूर्व में लगे याचिकाकर्ता प्रबोधकों और बाद में लगे प्रबोधकों का एक समान ही काम है.

पढ़ेंः विधानसभा में गूंजा सांभर झील में पक्षियों की मौत का मामला, भाजपा ने लगाया यह आरोप तो वन मंत्री ने इस तरह दी सफाई

याचिका में कहा गया की राज्य सरकार समान काम का समान वेतन के सिद्धांत की भी अवहेलना कर रही है. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व में नियुक्त याचिकाकर्ता प्रबोधकों के बाद में नियुक्त किए गए प्रबोधकों से मिल रहे कम वेतन को लेकर प्रमुख शिक्षा सचिव, प्रारंभिक शिक्षा निदेशक और टोंक जिला शिक्षा अधिकारी सहित अन्य को नोटिस जारी किया. नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है. न्यायाधीश पंकज भंडारी की एकलपीठ ने यह आदेश केसर लाल जाट और अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया.

टोंक जिला शिक्षा अधिकारी सहित अन्य को नोटिस जारी

याचिका में अधिवक्ता राम प्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति साल 2008 में हुई थी. उन्हें 11 हजार 170 का न्यूनतम वेतन मिल रहा है. जबकि उनके 2 साल बाद सला 2010 में नियुक्त हुए अन्य प्रबोधकों को न्यूनतम वेतन के तौर पर 12 हजार 900 रुपए दिए जा रहे हैं. ऐसे में याचिकाकर्ताओं को हर माह 1730 रुपए कम दिए जा रहे हैं. जबकि पूर्व में लगे याचिकाकर्ता प्रबोधकों और बाद में लगे प्रबोधकों का एक समान ही काम है.

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याचिका में कहा गया की राज्य सरकार समान काम का समान वेतन के सिद्धांत की भी अवहेलना कर रही है. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

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