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सियासी बवंडर में आखिर क्या है वसुंधरा राजे की चुप्पी का राज?

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Published : Jul 12, 2020, 3:28 PM IST

राजस्थान में मचे सियासी हलचल में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है. इस बीच प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुप्पी चर्चा का विषय बनी हुई है. सतीश पूनिया, गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़ और गजेंद्र सिंह शेखावत सहित प्रदेश के नेताओं का एक बड़ा धड़ा प्रदेश सरकार के खिलाफ मैदान में उतर आया है. वहीं बीजेपी के सहयोगी दल आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने भी इस पूरे मामले में गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा किया. लेकिन चुप रही तो केवल वसुंधरा राजे और उनसे जुड़े समर्थक. अब यही बात सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है.

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वसुंधरा राजे चुप क्यों?

जयपुर. देश में विधायकों की खरीद-फरोख्त का जिन्न एक बार बाहर आया तो सियासी आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया. मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री तक इस जंग में बयानों की आहुति देते नजर आए, लेकिन इन सबके बीच में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुप्पी भी चर्चा का विषय बनी हुई है.

वसुंधरा राजे क्यों है चुप?
आखिर क्यों है वसुंधरा राजे चुप?

दरअसल जब खरीद-फरोख्त के मामले में एसओजी और एसीबी ने मामले दर्ज किए, तब प्रदेश में सियासी संग्राम खड़ा हो गया. इस बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा लगाए गए आरोपों पर भाजपा नेताओं ने भी ताबड़तोड़ जुबानी हमला करना शुरू कर दिया. सतीश पूनिया, गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़ और गजेंद्र सिंह शेखावत सहित प्रदेश के नेताओं का एक बड़ा धड़ा प्रदेश सरकार की खिलाफत में उतर आया. वहीं बीजेपी के सहयोगी दल आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने भी इस पूरे मामले में गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा किया. लेकिन चुप रही तो केवल वसुंधरा राजे और उनसे जुड़े समर्थक अब यही सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है.

पढ़ेंः बड़ी खबर : SOG ने सीएम गहलोत और डिप्टी सीएम पायलट को भेजा नोटिस...

गहलोत की पीसी और बेनीवाल के ट्वीट में राजे का जिक्र

ये होना लाजमी भी था क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब आरोप लगाए तो दिग्गज नेता वसुंधरा राजे को भाजपा में हाशिये में होने के संकेत दिए. वहीं भाजपा के सहयोगी लेकिन वसुंधरा राजे के पुराने विरोधी हनुमान बेनीवाल ने इस मौके को भी राजे से अपनी पुरानी अदावत निकलने में इस्तेमाल किया. इसके साथ ही इस पूरे घटनाक्रम को गहलोत-राजे का गठजोड़ करार दिया. बेनीवाल का राजे विरोधी बयान पर जब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया से प्रेस वार्ता में सवाल पूछा गया तो उन्होंने यह कह कर इसे टाल दिया कि इसका जवाब तो बेनीवाल ही दे सकते है.

पढ़ेंः महेंद्र चौधरी का बड़ा बयान, कहा- राजस्थान में BJP के मंसूबे कामयाब नहीं होंगे


हुंडला और टांक कभी रहे है राजे के करीबी

खरीद-फरोख्त के मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो में जो मामला दर्ज किया गया है. उसमें निर्दलीय विधायक सुरेश टांक, ओम प्रकाश हुडला और खुशवीर सिंह का नाम भी शामिल किया गया है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि ओम प्रकाश हुडला और सुरेश टांक पिछली भाजपा सरकार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नजदीकी नेताओं में शामिल रहे हैं, लेकिन राजे के तमाम प्रयासों के बावजूद उन्हें टिकट नहीं दिला पाई तो हुंडला और टांक ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता भी. खरीद फरोख्त के मामले में इन विधायकों का नाम आने के बाद सियासी चर्चाओं को बल भी मिला है. हालांकि दोनों ही निर्दलीय विधायकों का लंबे समय से बीजेपी से कोई संपर्क देखने को नहीं मिला.

क्या राजे को आलाकमान के इशारे का इंतजार

राजस्थान की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे का सियासी कद बहुत बड़ा है. लेकिन प्रदेश भाजपा से फिलहाल राजे थोड़ी अलग-थलग नजर आ रही है. इसके कई सियासी कारण हैं. यही कारण है कि इस पूरे मामले में वसुंधरा राजे ने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और ना ही उनके समर्थक इस मामले में कुछ भी बयान देकर सामने आए. संभवत हो सकता है की इस मामले में परेशानी में घिरी प्रदेश भाजपा को वसुंधरा राजे का सहारा तभी मिले जब पार्टी आलाकमान की ओर से इस मामले में राज्य को हस्तक्षेप कर मोर्चा संभालने का इशारा मिले.

जयपुर. देश में विधायकों की खरीद-फरोख्त का जिन्न एक बार बाहर आया तो सियासी आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया. मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री तक इस जंग में बयानों की आहुति देते नजर आए, लेकिन इन सबके बीच में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुप्पी भी चर्चा का विषय बनी हुई है.

वसुंधरा राजे क्यों है चुप?
आखिर क्यों है वसुंधरा राजे चुप?

दरअसल जब खरीद-फरोख्त के मामले में एसओजी और एसीबी ने मामले दर्ज किए, तब प्रदेश में सियासी संग्राम खड़ा हो गया. इस बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा लगाए गए आरोपों पर भाजपा नेताओं ने भी ताबड़तोड़ जुबानी हमला करना शुरू कर दिया. सतीश पूनिया, गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़ और गजेंद्र सिंह शेखावत सहित प्रदेश के नेताओं का एक बड़ा धड़ा प्रदेश सरकार की खिलाफत में उतर आया. वहीं बीजेपी के सहयोगी दल आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने भी इस पूरे मामले में गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा किया. लेकिन चुप रही तो केवल वसुंधरा राजे और उनसे जुड़े समर्थक अब यही सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है.

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गहलोत की पीसी और बेनीवाल के ट्वीट में राजे का जिक्र

ये होना लाजमी भी था क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब आरोप लगाए तो दिग्गज नेता वसुंधरा राजे को भाजपा में हाशिये में होने के संकेत दिए. वहीं भाजपा के सहयोगी लेकिन वसुंधरा राजे के पुराने विरोधी हनुमान बेनीवाल ने इस मौके को भी राजे से अपनी पुरानी अदावत निकलने में इस्तेमाल किया. इसके साथ ही इस पूरे घटनाक्रम को गहलोत-राजे का गठजोड़ करार दिया. बेनीवाल का राजे विरोधी बयान पर जब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया से प्रेस वार्ता में सवाल पूछा गया तो उन्होंने यह कह कर इसे टाल दिया कि इसका जवाब तो बेनीवाल ही दे सकते है.

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हुंडला और टांक कभी रहे है राजे के करीबी

खरीद-फरोख्त के मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो में जो मामला दर्ज किया गया है. उसमें निर्दलीय विधायक सुरेश टांक, ओम प्रकाश हुडला और खुशवीर सिंह का नाम भी शामिल किया गया है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि ओम प्रकाश हुडला और सुरेश टांक पिछली भाजपा सरकार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नजदीकी नेताओं में शामिल रहे हैं, लेकिन राजे के तमाम प्रयासों के बावजूद उन्हें टिकट नहीं दिला पाई तो हुंडला और टांक ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता भी. खरीद फरोख्त के मामले में इन विधायकों का नाम आने के बाद सियासी चर्चाओं को बल भी मिला है. हालांकि दोनों ही निर्दलीय विधायकों का लंबे समय से बीजेपी से कोई संपर्क देखने को नहीं मिला.

क्या राजे को आलाकमान के इशारे का इंतजार

राजस्थान की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे का सियासी कद बहुत बड़ा है. लेकिन प्रदेश भाजपा से फिलहाल राजे थोड़ी अलग-थलग नजर आ रही है. इसके कई सियासी कारण हैं. यही कारण है कि इस पूरे मामले में वसुंधरा राजे ने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और ना ही उनके समर्थक इस मामले में कुछ भी बयान देकर सामने आए. संभवत हो सकता है की इस मामले में परेशानी में घिरी प्रदेश भाजपा को वसुंधरा राजे का सहारा तभी मिले जब पार्टी आलाकमान की ओर से इस मामले में राज्य को हस्तक्षेप कर मोर्चा संभालने का इशारा मिले.

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