जयपुर. आमेर का आकाशीय बिजली हादसा जयपुर पर्यटन पर बदनुमां दाग की तरह चस्पा हो गया है. पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर तमाम इंतजामात पर अब चर्चा होने लगी है. साथ ही बिजली गिरने की वजहों और बचाव के उपायों पर भी बात हो रही है. एक्सपर्ट्स ने बताया कि लाइटनिंग अरेस्टर और आमजन की जागरूकता से वज्रपात जैसी घटनाओं से बचा जा सकता है.
11 जुलाई को आमेर के सामने बने वॉच टावर पर बिजली गिरी थी. जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई थी. बिजली गिरने का क्या कारण था, क्या आकाशीय बिजली गिरने की मौसम विभाग वॉर्निंग दे सकता है. ऐसे ही सवालों का जवाब ढूंढने के लिए ईटीवी भारत मौसम विभाग निदेशक राधेश्याम शर्मा के पास पहुंचा.
11 जुलाई को जयपुर सहित पूर्वी राजस्थान के दूसरे जिलों में भी बिजली गिरने की घटनाएं रिपोर्ट हुई थीं. मौसम विभाग निदेशक ने बताया कि जब मानसून की शुरुआत में जब दो अलग-अलग तरह की हवाएं आपस में मिलती हैं तो वज्रपात के हालात बनते हैं. 10 जुलाई से पहले पश्चिमी हवाएं (ड्राई एयर) चल रही थीं. तापमान भी 42 डिग्री के करीब था. इसी दौरान जब मानसूनी पूर्वी हवाएं ( मॉइस्चर एयर) राजस्थान पर सेट हुईं तो उससे मेघ गर्जन वाले बादल बने. जिसकी वजह से गंभीर वज्रपात हुआ. जो मौसम विज्ञान के मुताबिक एक सामान्य स्थिति है. जब तक मानसून पूरी तरह सक्रिय नहीं हो जाता, वातावरण एक समान स्थिति में नहीं हो जाता, तब तक वज्रपात की आशंका बनी रहती है.
गरजने वाले बादल जब गंभीर श्रेणी में ट्रांसफॉर्म हो जाते हैं. जिनकी हाइट ग्राउंड से 12 से 13 किलोमीटर होती है. इनमें अपॉजिट चार्ज भी संग्रहित हो जाते हैं. जब बहुत ज्यादा चार्ज बादलों में विकसित हो जाता है तो बादलों के बीच में पॉजिटिव चार्ज संग्रहित होते हैं. उस वजह से जमीन पर नेगेटिव चार्ज संग्रहित हो जाते हैं. इस दौरान बादल और जमीन के बीच की हवा इंसुलेटर का काम नहीं करती, बल्कि कंडक्टर का काम करती है. जिसकी वजह से जमीन पर बहुत तेजी से वज्रपात होता है. हालांकि यह बात तय है कि बिजली गिरते समय उस क्षेत्र के सबसे ऊंचाई वाले स्थान पर ही बिजली गिरने की सबसे ज्यादा संभावना होती है.
मौसम विभाग के निदेशक राधेश्याम ने स्पष्ट किया कि मोबाइल का बिजली गिरने में कितना रोल है, ये स्टडी का विषय है. लेकिन आमेर में बिजली गिरने की मुख्य वजह गंभीर गर्जन वाले बादल विकसित होना और वॉच टावर ऊंचाई पर होने के कारण बिजली गिरने की घटना हुई.
तड़ित चालक (लाइटनिंग अरेस्टर) इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए सबसे कारगर उपाय हो सकता है. लाइटनिंग अरेस्टर को किसी भी इमारत के सबसे ऊंचे भाग पर लगाया जाता है. जब भी वज्रपात होता है तो लाइटनिंग अरेस्टर इस चार्ज को अपनी तरफ आकर्षित कर जमीन की निचली सतह में पास कर देता है. भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए इस उपकरण पर विचार किया जा सकता है.
बड़ी इमारतों, मोबाइल टावरों, बिजली के खंभों या दूसरे ऊंचाई वाले ऑब्जेक्ट पर तड़ित चालक यंत्र लगाया जाना अनिवार्य है. क्योंकि वर्तमान समय में गंभीर मौसमी घटनाओं में इजाफा हुआ है. चाहे मूसलाधार बारिश हो या फिर वज्रपात की घटना हो. ऐसे में लाइटनिंग अरेस्टर लगाकर दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है.
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जब भी बादलों से जमीन पर आकाशीय बिजली गिरती है, उस वक्त उस स्थान पर दो तरह से नुकसान होता है. एक तो क्षेत्र में बहुत ज्यादा हीटिंग डवलप होती है. ऐसे में उसकी चपेट में आने वाले लोगों को जलने से नुकसान हो सकता है. इसके अलावा आसपास के क्षेत्र में 30 हजार एंपियर का करंट फ्लो हो सकता है, जो मौत का बड़ा कारण बनता है.
जयपुर मौसम विभाग रडार और सेटेलाइट के जरिए रियल टाइम तात्कालिक अपडेट देता है. इसके अलावा कुछ मॉडल भी काम कर रहे हैं. जिससे एक-दो दिन पहले भी उस क्षेत्र की सूचना मिल जाती है, जहां आकाशीय बिजली गिरने की संभावना रहती है. इसके साथ ही ग्राउंड बेस सेंसर जो वज्रपात डिटेक्ट करते हैं, उनका इस्तेमाल कर तात्कालिक अलर्ट अपडेट किया जाता है. लेकिन इसके साथ ही आम जनता को भी जागरूक रहने की आवश्यकता है.