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स्पेशलः राजधानी जयपुर में कैसे हो मृत पशुओं के शवों का निस्तारण...निगम के पास नहीं है कोई इंतजाम

राजधानी जयपुर में हर दिन कई छोटे-बड़े पशु बीमारी, प्लास्टिक और दुर्घटना का शिकार होकर सड़कों पर ही दम तोड़ देते हैं, लेकिन विडंबना ये है कि स्मार्ट सिटी होने के बावजूद जयपुर शहर में एक भी कारकस प्लांट नहीं है, जहां इन मृत पशुओं के शवों का निस्तारण किया जा सके. हालांकि, साल 2008 में नगर निगम की ओर से मृत पशुओं को वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारण करने के लिए चैनपुरा में कारकस प्लांट स्थापित किया गया था, लेकिन साल 2011-12 में जनाक्रोश के चलते उसको बंद कर दिया गया. उसके बाद से मृत पशुओं के शवों का निस्तारण हिंगोनिया गौशाला में किया जा रहा है.

Rajasthan News, राजस्थान समाचार
कारकस प्लांट के इंतजार में जयपुर शहर
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Published : Feb 27, 2021, 12:49 PM IST

जयपुर. राजधानी जयपुर में हर दिन कई छोटे-बड़े पशु बीमारी, प्लास्टिक और दुर्घटना का शिकार होकर सड़कों पर ही दम तोड़ देते हैं, लेकिन विडंबना ये है कि स्मार्ट सिटी होने के बावजूद जयपुर शहर में एक भी कारकस प्लांट नहीं है, जहां इन मृत पशुओं के शवों का निस्तारण किया जा सके. हालांकि, बड़े पशु और गौवंश के शवों को तो हिंगोनिया गौशाला में एक स्थान पर दफना दिया जाता है, लेकिन छोटे पशु फिलहाल कचरागाह में खुद ही निस्तारित हो रहे हैं.

कारकस प्लांट के इंतजार में जयपुर शहर

दरअसल, जयपुर शहर के नागरिकों के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने और संबंधित प्रशासनिक कर्तव्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी जयपुर के दोनों नगर निगमों पर है. इसी निगम प्रशासन के पास आवारा पशुओं की समस्या से शहर को निजात दिलाने और सड़कों पर मृत मिले पशुओं के शव का निस्तारण करने की भी जिम्मेदारी है, लेकिन शायद नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों की पालना करने में निगम प्रशासन इतना व्यस्त हो गया है कि पशुओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी ही भुला बैठा है. मृत पशुओं के शवों के निपटान की जब बात आती है, तो निगम के आला अधिकारी बगले झांकने लगते हैं.

यह भी पढ़ेंः गोपाष्टमी Special : चूरू की इस गौशाला में मंत्री से लेकर संतरी तक लगाते हैं हाजरी

बता दें, साल 2008 में नगर निगम की ओर से मृत पशुओं को वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारण करने के लिए चैनपुरा में कारकस प्लांट स्थापित किया गया था, लेकिन साल 2011-12 में जनाक्रोश के चलते उसको बंद कर दिया गया. उसके बाद से मृत पशुओं के शवों का निस्तारण हिंगोनिया गौशाला में किया जा रहा है. साल 2017 में नगर निगम ने श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट को हिंगोनिया गौशाला के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी थी. MoU में स्पष्ट किया गया था कि 1 साल में कारकस प्लांट स्थापित करना होगा. ये प्लांट अब तक नहीं लगाया गया है.

वहीं, हेरिटेज नगर निगम में लगे वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी कमलेश कुमार मीणा ने बताया कि मृत पशुओं की शिकायत प्राप्त होने पर उन्हें उठावाया जाता है. इस काम में उपयुक्त वाहन में हाइजीन का ध्यान भी रखा जाता है. मृत पशुओं को फिलहाल हिंगोनिया गौशाला क्षेत्र में ही दफनाया जा रहा है. यहां महज बड़े पशुओं के शवों को ही दफनाया जाता है. छोटे पशुओं के शव फिलहाल कचरागाह में ही समाहित हो रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः हिंगोनिया गौशाला किसकी...अधिकार और जिम्मेदारी पर उठे सवाल

उधर, ग्रेटर नगर निगम पशु प्रबंधन उपायुक्त आभा बेनीवाल ने माना कि फिलहाल छोटे पशुओं के शवों को निस्तारित करने की निगम के पास कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं है. इस काम में सहयोग करने के लिए कुछ एनजीओ ने निगम से संपर्क साधा है, जिन से वार्ता का दौर जारी है. बेनीवाल ने बताया कि कई वर्षों से बड़े पशुओं को हिंगोनिया गौशाला में दफनाया जा रहा है, जिन की हड्डियों का अब टेंडर किया जा रहा है.

बहरहाल, नगर निगम प्रशासन मृत पशुओं की हड्डियों से रेवेन्यू जनरेट करने की कवायद कर रहा है, लेकिन अभी तक छोटे-बड़े मृत पशुओं के शवों का निस्तारण करने के लिए निगम के पास कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं है. शहर का एकमात्र कारकस प्लांट बंद हो चुका है और नया कारकस प्लांट फिलहाल कागजों तक ही सिमटा हुआ है.

जयपुर. राजधानी जयपुर में हर दिन कई छोटे-बड़े पशु बीमारी, प्लास्टिक और दुर्घटना का शिकार होकर सड़कों पर ही दम तोड़ देते हैं, लेकिन विडंबना ये है कि स्मार्ट सिटी होने के बावजूद जयपुर शहर में एक भी कारकस प्लांट नहीं है, जहां इन मृत पशुओं के शवों का निस्तारण किया जा सके. हालांकि, बड़े पशु और गौवंश के शवों को तो हिंगोनिया गौशाला में एक स्थान पर दफना दिया जाता है, लेकिन छोटे पशु फिलहाल कचरागाह में खुद ही निस्तारित हो रहे हैं.

कारकस प्लांट के इंतजार में जयपुर शहर

दरअसल, जयपुर शहर के नागरिकों के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने और संबंधित प्रशासनिक कर्तव्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी जयपुर के दोनों नगर निगमों पर है. इसी निगम प्रशासन के पास आवारा पशुओं की समस्या से शहर को निजात दिलाने और सड़कों पर मृत मिले पशुओं के शव का निस्तारण करने की भी जिम्मेदारी है, लेकिन शायद नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों की पालना करने में निगम प्रशासन इतना व्यस्त हो गया है कि पशुओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी ही भुला बैठा है. मृत पशुओं के शवों के निपटान की जब बात आती है, तो निगम के आला अधिकारी बगले झांकने लगते हैं.

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बता दें, साल 2008 में नगर निगम की ओर से मृत पशुओं को वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारण करने के लिए चैनपुरा में कारकस प्लांट स्थापित किया गया था, लेकिन साल 2011-12 में जनाक्रोश के चलते उसको बंद कर दिया गया. उसके बाद से मृत पशुओं के शवों का निस्तारण हिंगोनिया गौशाला में किया जा रहा है. साल 2017 में नगर निगम ने श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट को हिंगोनिया गौशाला के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी थी. MoU में स्पष्ट किया गया था कि 1 साल में कारकस प्लांट स्थापित करना होगा. ये प्लांट अब तक नहीं लगाया गया है.

वहीं, हेरिटेज नगर निगम में लगे वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी कमलेश कुमार मीणा ने बताया कि मृत पशुओं की शिकायत प्राप्त होने पर उन्हें उठावाया जाता है. इस काम में उपयुक्त वाहन में हाइजीन का ध्यान भी रखा जाता है. मृत पशुओं को फिलहाल हिंगोनिया गौशाला क्षेत्र में ही दफनाया जा रहा है. यहां महज बड़े पशुओं के शवों को ही दफनाया जाता है. छोटे पशुओं के शव फिलहाल कचरागाह में ही समाहित हो रहे हैं.

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उधर, ग्रेटर नगर निगम पशु प्रबंधन उपायुक्त आभा बेनीवाल ने माना कि फिलहाल छोटे पशुओं के शवों को निस्तारित करने की निगम के पास कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं है. इस काम में सहयोग करने के लिए कुछ एनजीओ ने निगम से संपर्क साधा है, जिन से वार्ता का दौर जारी है. बेनीवाल ने बताया कि कई वर्षों से बड़े पशुओं को हिंगोनिया गौशाला में दफनाया जा रहा है, जिन की हड्डियों का अब टेंडर किया जा रहा है.

बहरहाल, नगर निगम प्रशासन मृत पशुओं की हड्डियों से रेवेन्यू जनरेट करने की कवायद कर रहा है, लेकिन अभी तक छोटे-बड़े मृत पशुओं के शवों का निस्तारण करने के लिए निगम के पास कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं है. शहर का एकमात्र कारकस प्लांट बंद हो चुका है और नया कारकस प्लांट फिलहाल कागजों तक ही सिमटा हुआ है.

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