जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने ब्रह्मपुरी इलाके में चल रहे नेत्रहीन स्कूल के संसाधनों के मामले में राज्य सरकार को कहा है कि जिन बच्चों पर किस्मत मेहरबान नहीं सरकार उन बच्चों के प्रति ज्यादा उत्तरदायी है. सरकार को ऐसे बच्चों को जीवन की कठिनाईयों से लड़ने के लिए तैयार करना चाहिए. इसके साथ ही अदालत ने स्कूल को टेकओवर करने और भूमि आवंटन के लिए कैबिनेट से मंजूरी लेने को कहा है. न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश महिला अधिवक्ता पंकज शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
अदालत ने सरकार से आशा जताई है कि बच्चों के कष्ट को बजट आवंटन के बोझ के तले नहीं दबाया जाए. अदालत ने कहा कि राजस्थान पहला राज्य है जहां हाईकोर्ट की सिफारिश पर सरकार ने एक नेत्रहीन दिव्यांग को न्यायिक अधिकारी नियुक्त किया. ये न्यायिक अधिकारी वर्तमान में एसीजेएम पद पर तैनात हैं और उनके सर्विस रिकॉर्ड के अनुसार वे दूसरे स्वस्थ अधिकारी से बेहतर काम कर रहे हैं.
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अदालत ने कहा कि नेत्रहीन स्कूल ब्रेल लिपी में सालाना ढाई मिलीयन पेज छाप रहा है. जिसे यूके, श्रीलंका सहित देश के 17 राज्यों में 50 हजार लोग पढ़ते हैं. वहीं, इस स्कूल से निकले बच्चे नाम रोशन कर रहे हैं. जबकि स्कूल में शिक्षा, आवास और भोजन सहित अन्य सुविधाएं निःशुल्क देने वाली संस्था किसी भी सूरत में जमीन नहीं खरीद सकती है. अदालत की मंशा के बाद महाधिवक्ता ने सकारात्मक कदम उठाने का आश्वासन दिया.
याचिका में कहा गया कि नेत्रहीन कल्याण संघ 1968 से 12वीं कक्षा तक के नेत्रहीन बच्चों को निःशुल्क आवास और शिक्षा सहित अन्य सुविधाएं दे रहा है. संस्था के वित्तीय संसाधन सीमित हैं. वहींं, हाईकोर्ट से प्रतिनियुक्ति पर लगे एक शिक्षक का वेतन भी रोक लिया गया है. ऐसे में यदि सरकार स्कूल को अधिग्रहित करना चाहे तो संघ को आपत्ति नहीं है.