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राज्य उपभोक्ता आयोग ने झूठा परिवाद और अपील पेश करने पर लगाया बीस हजार का हर्जाना - जिला मंच उपभोक्ता सरंक्षण

राज्य उपभोक्ता आयोग ने एफडीआर का भुगतान लेने के बाद भी बैंक पर भुगतान नहीं देने का आरोप लगाया है. साथ ही पूर्व में परिवाद दायर करने और परिवाद खारिज होने पर उसकी अपील करने पर नाराजगी जताई हैं. इसके साथ ही आयोग ने अपील खारिज करते हुए अपीलार्थी पर बीस हजार रुपए का हर्जाना लगा दिया हैं.

जयपुर की खबर, jaipur news
झूठा परिवाद और अपील पेश करने पर लगाया बीस हजार का हर्जाना
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Published : Mar 5, 2020, 8:37 PM IST

जयपुर. राज्य उपभोक्ता आयोग ने एफडीआर का भुगतान लेने के बाद भी बैंक पर भुगतान नहीं देने का आरोप लगाया है. साथ ही पूर्व में परिवाद दायर करने और परिवाद खारिज होने पर उसकी अपील करने पर नाराजगी जताई हैं. इसके साथ ही आयोग ने अपील खारिज करते हुए अपीलार्थी पर बीस हजार रुपए का हर्जाना लगा दिया हैं. आयोग ने यह आदेश शकुंतला शर्मा की अपील पर दिए.

आयोग ने अपने आदेश में कहा कि अपीलार्थी के पास मात्र मूल एफडीआर रह जाने की वजह से उसे भुगतान का अधिकार नहीं रह जाता है. मामले के अनुसार अपीलार्थी ने निजी बैंक में पांच एफडीआर कराई थी. सभी एफडीआर 3 अप्रैल 2018 को परिपक्व हो गई. इस पर बैंक ने सभी का भुगतान अपीलार्थी के बचत खाते में कर दिया.

पढ़ें- दुष्कर्म से गर्भवती पीड़िताओं को क्यों देना पड़ रहा संतान को जन्म? : हाईकोर्ट

वहीं, अपीलार्थी ने उसी दिन फिर से एफडीआर करवा दी. इसके बाद अपीलार्थी ने एक एफडी का नवीनीकरण करने के लिए बैंक से संपर्क किया, लेकिन बैंक ने उसका नवीनीकरण नहीं किया। इस पर अपीलार्थी ने बैंक के खिलाफ जिला मंच उपभोक्ता सरंक्षण में परिवाद पेश किया. सुनवाई के दौरान सामने आया कि बैंक ने एफडीआर का भुगतान कर दिया था, लेकिन मूल एफडीआर अपीलार्थी के पास ही रह गई थी.

जयपुर. राज्य उपभोक्ता आयोग ने एफडीआर का भुगतान लेने के बाद भी बैंक पर भुगतान नहीं देने का आरोप लगाया है. साथ ही पूर्व में परिवाद दायर करने और परिवाद खारिज होने पर उसकी अपील करने पर नाराजगी जताई हैं. इसके साथ ही आयोग ने अपील खारिज करते हुए अपीलार्थी पर बीस हजार रुपए का हर्जाना लगा दिया हैं. आयोग ने यह आदेश शकुंतला शर्मा की अपील पर दिए.

आयोग ने अपने आदेश में कहा कि अपीलार्थी के पास मात्र मूल एफडीआर रह जाने की वजह से उसे भुगतान का अधिकार नहीं रह जाता है. मामले के अनुसार अपीलार्थी ने निजी बैंक में पांच एफडीआर कराई थी. सभी एफडीआर 3 अप्रैल 2018 को परिपक्व हो गई. इस पर बैंक ने सभी का भुगतान अपीलार्थी के बचत खाते में कर दिया.

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वहीं, अपीलार्थी ने उसी दिन फिर से एफडीआर करवा दी. इसके बाद अपीलार्थी ने एक एफडी का नवीनीकरण करने के लिए बैंक से संपर्क किया, लेकिन बैंक ने उसका नवीनीकरण नहीं किया। इस पर अपीलार्थी ने बैंक के खिलाफ जिला मंच उपभोक्ता सरंक्षण में परिवाद पेश किया. सुनवाई के दौरान सामने आया कि बैंक ने एफडीआर का भुगतान कर दिया था, लेकिन मूल एफडीआर अपीलार्थी के पास ही रह गई थी.

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