जयपुर. प्रदेश में सरकारी क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनियों का काम भगवान भरोसे ही चल रहा है (Staff Shortage in Rajasthan Discom). मौजूदा गहलोत सरकार के कार्यकाल में 2333 पदों पर भर्ती के बावजूद अब भी करीब 16 हजार पद खाली चल रहे हैं. कर्मचारियों की किल्लत है बावजूद इसके डिस्कॉम लगातार नए सबडिवीजन तो बना रहा है. जो वस्तुस्थिति है उससे भान हो रहा है कि डिस्कॉम निजीकरण की राह पर चल पड़ा है. अब ये विचार ही कर्मचारियों को परेशान कर रहा है.
इस तरह है डिस्कॉम में कर्मचारियों का टोटा: प्रदेश में जयपुर,अजमेर और जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के रूप में तीन कंपनियां संचालित है इनमें तकनीकी गैर तकनीकी श्रेणी में हजारों कर्मचारी कार्यरत है. दिसंबर 2021 तक इन तीनों ही कंपनियों में कुल 16 हजार 599 पद रिक्त चल रहे थे, यह वो पद थे जो प्रशासनिक स्तर पर स्वीकृत है लेकिन उनको भरने के लिए डिस्कॉम ने या सरकार ने कोई प्रयास नहीं किए. इनमें जयपुर डिस्कॉम में तकनीकी श्रेणी में शामिल अधिकारी,कनिष्ठ अभियंता और अधीनस्थ कर्मचारियों के 4681 पद खाली चल रहे हैं वहीं गैर तकनीकी श्रेणी के अधिकारी और कर्मचारियों के 1599 पद खाली है.
अजमेर डिस्कॉम में तकनीकी श्रेणी के अधिकारी और कर्मचारियों के 16266 स्वीकृत पदों में से 4283 पद खाली है वहीं गैर तकनीकी कर्मचारियों के 3743 पदों में से 1205 पद खाली है. इसी तरह जोधपुर डिस्कॉम में तकनीकी श्रेणी के अधिकारी कनिष्ठ अभियंता और अधीनस्थ कर्मचारियों के कुल 14988 स्वीकृत पद में से 3824 पद खाली चल रहे हैं वहीं गैर तकनीकी कर्मचारियों के 3327 स्वीकृत पद में से 1007 पद खाली चल रहे हैं.
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ग्रामीण इलाकों में सेवाएं प्रभावित: डिस्कॉम में कर्मचारियों की कमी का सबसे ज्यादा असर ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों व कस्बों पर देखने को मिलता है. यहां स्वीकृत कर्मचारियों की संख्या के अनुपात में सब डिवीजन कार्यालय में कर्मचारियों का टोटा है. आलम ये है कि अधिकतर कार्यालयों में एईएन का चार्ज जेईएन संभाले हुए है. वही कुछ सबडिवीजन कार्यालय तो ऐसे है जहां तकनीकी हेल्पर्स को ही कनिष्ठ अभियंता का चार्ज दिया हुआ है. इन इलाकों में बिजली उपभोक्ताओं से जुड़ी सेवाएं किस तरह प्रभावित हो रही होगी इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है.
राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते बिगड़ी व्यवस्था: सरकारी क्षेत्र की बिजली कंपनियों में राजनीतिक हस्तक्षेप किसी से छुपा हुआ नहीं है कर्मचारियों के ट्रांसफर से लेकर पोस्टिंग तक में राजनीतिक दबाव रहता है. यही कारण है कि ग्रामीण इलाकों में बिजली कार्यालय में कर्मचारियों का टोटा है लेकिन शहरी क्षेत्र में भरपूर कर्मचारी लगे हैं. विधायकों के दबाव में डिस्कॉम ने पिछले कुछ महीनों में नए सब डिवीजन कार्यालय भी खोले लेकिन वहां स्वीकृत कर्मचारियों को तैनात नहीं किया गया. आधे अधूरे कर्मचारियों की संख्या से ही यहां काम चल रहा है.
राजधानी जयपुर सहित बड़े शहरों में अधिकतर सब डिवीजन कार्यालय ऐसे भी है जहां बिजली उपभोक्ताओं की संख्या तय मापदंड से काफी ज्यादा है लेकिन इन सब डिविजन को दो भागों में राजनीतिक दबाव के चलते नहीं विभक्त किया जा रहा.
निजीकरण की आशंका: कर्मचारियों की कमी से प्रभावित हो रहे काम का असर आम उपभोक्ताओं के साथ ही डिस्कॉम में तैनात अन्य बिजली कर्मचारियों पर भी पड़ रहा है यही कारण है कि कर्मचारी लगातार इन पदों को भरे जाने के लिए प्रदेश सरकार और डिस्कॉम प्रबंधन पर दबाव बना रहे हैं. राजस्थान विद्युत कर्मचारी संघ से जुड़े पदाधिकारियों का यह भी आरोप है कि प्रदेश सरकार धीरे-धीरे डिस्कॉम को निजीकरण के क्षेत्र में धकेल रही है. यही कारण है कि जानबूझकर स्वीकृत हजारों पदों कोना भर के ठेके के जरिए अधिकतर कार्य करवाए जा रहे हैं. जयपुर डिस्कॉम में ही करीब 1500 जीएसएस ठेके पर आउटसोर्सिंग के जरिए दिए गए हैं लेकिन यहां तय मापदंड के अनुसार न तो कर्मचारी रखे गए हैं और न ही उपभोक्ताओं को उसी अनुरूप सेवाएं मिल पा रही हैं.
'जल्द भरे जाएंगे खाली पद': डिस्कॉम में खाली चल रहे कर्मचारियों के हजारों पदों की जानकारी डिस्कॉम प्रबंधन के साथ ही ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी को भी है. यही कारण है कि प्रदेश में गहलोत सरकार के आने के बाद डिस्कॉम में 2333 पदों पर नई भर्ती की गई. वहीं 1512 तकनीकी हेल्पर पद पर भर्ती की प्रक्रिया अगले कुछ ही दिनों में संपन्न कर ली जाएगी. ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी के अनुसार जल्द ही अन्य खाली पदों को भी भरने का प्रयास किया जाएगा.