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केदारनाथ त्रासदी के 7 साल, अभी भी हरे हैं आपदा के जख्म

केदारनाथ तबाही को सात साल बीच चुके हैं. तबाही का वह भयावह मंजर आज भी जब जहन में आता है तो लोग सिहर उठते हैं, लोगों को आज भी याद है जून 2013 में आई केदारनाथ की आपदा का वो दिन, जब कई हजार लोगों की जान चली गई थी. ऐसे में बीते सालों में केदारनाथ धाम का स्वरूप कितना बदला है, देखिए ये खास रिपोर्ट...

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Published : Jun 16, 2020, 12:49 PM IST

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केदारनाथ त्रासदी के सात साल

जयपुर/देहरादून. 16 जून 2013 वो तारीख है, जिसने उत्तराखंड को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वो दिन जिसे शायद ही कोई याद करना चाहेगा. उस दिन आसमान से बरसी आफत ने उत्तराखंड खासकर केदार घाटी में जगह-जगह बर्बादी के वो निशान छोड़े, जिन्हें मिटाने में वर्षों लग गए. लेकिन अब केदार घाटी बदल रही है. यात्रा भी फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौटने लगी है. कुदरत द्वारा दिए गए जख्मों के साथ सामंजस्य बैठाकर कर लोग फिर से जिंदगी के रास्ते पर चल पड़े हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार

  • 4400 लोग इस घटना में मारे गए थे.
  • 4200 से ज्यादा गांवों का पुरी तरह से संपर्क टूट गया था.
  • 11091 मवेशी मारे गए थे और 991 स्थानीय लोग मारे गए थे.
  • 1309 हेक्टेयर कृषि भूमि बह गयी थी, 2141 भवनों का नामोनिशान मिट गया.
  • 4700 हजार यात्री सिर्फ केदार मंदिर में फंसे थे.
  • सेना द्वारा 9000 लोगों को रेस्क्यू किया गया था.
  • जबकि 30 हजार लोगों को पुलिस ने सुरक्षित निकाला था.
  • अब तक कुल 644 लोगों के कंकाल मिल चुके है.

7 साल में बदला केदारनाथ

बाबा केदार के धाम में 16 जून को कुदरत ने जो तांडव किया, उसे देश और दुनिया के लोग शायद ही भूले हों, लेकिन लोग कुदरत की उस मार को भूल कर आगे की ओर चल दिए हैं. आज केदारनाथ पूरी तरह से बदल गया है. केदारनाथ जाने वाली सड़कें पूरी तरह से बदल गयी हैं. बता दें कि केदारनाथ में हाईटेक हेलीपैड हैं. साथ ही होटल और धर्मशालाएं अत्याधुनिक तरीके से बन रही हैं. केदारनाथ मंदिर के चारोतरफा मोटी दीवार बना दी गयी है. यही नहीं अगर भविष्य में कभी आपदा जैसे हालात बनते हैं तो उसके लिए रेस्क्यू टीमों की टुकड़ी भी मौजूद है.

इन्हें हुआ सबसे ज्यादा नुकसान

आपदा के बाद सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को हुआ था तो वो था उत्तराखंड का पर्यटन उद्योग. पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट बताती है कि इस आपदा से 12,000 करोड़ का नुकसान हुआ था. इतना ही नहीं इस आपदा ने कुमाऊं गढ़वाल में आज भी लोग इस आपदा का दंश झेल रहे हैं. केदारनाथ में अब तक लगभग वर्ल्ड बैंक और एडीबी यानी एसियन डेवल्पमेन्ट बैंक से 2300 करोड़ रुपये का काम हुआ है.

मंदिर समिति के लोग कहते हैं विश्वास नहीं था कि इतनी आस्था जुड़ी रहेगी

2013 में हुई तबाही के बाद 1 बार तो ऐसा लगने लगा था कि शायद बाबा केदार की नगरी में दोबारा चहल पहल शुरू होने में कई दशक लग जायेंगे, लेकिन तबाही का मंजर दिखाने वाले बाबा ने ही लोगों को फिर से उठकर अपने पैरों पर खड़े होने की प्रेरणा दी. सिर्फ 2 साल में ही बाबा का धाम आबाद हो गया. यहां लोगों के मन में अपने घर बार और अपनों को खो देने का गम तो है, लेकिन लोगों का जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगा है.

यह भी पढ़ें : राज्यसभा चुनाव: भाजपा विधायक दल की बैठक आज, पांच सितारा होटल में होगी 'बाड़ाबंदी'

आज भी है खतरा

मौसम में बदलाव के कारण अब मॉनसून में बहुत अधिक बारिश के मामले भी सामने आ रहे हैं. इससे मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ और पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन के मामले बढ़ रहे हैं. ग्लेशियरों के सुकड़ने के कारण अब उच्च हिमालयी क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण भी हो रहा है और इस वजह से अचानक आने वाली बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है.

इस साल नहीं शुरू हो पाई चारधाम यात्रा

कोविड-19 संक्रमण के चलते इस बार केदारनाथ यात्रा शुरू नहीं हो पाई है. जबकि, चारधामों के कपाट खुल चुके हैं. हालांकि, राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों को केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए मंदिरों में दर्शन की अनुमति दे दी है.

जयपुर/देहरादून. 16 जून 2013 वो तारीख है, जिसने उत्तराखंड को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वो दिन जिसे शायद ही कोई याद करना चाहेगा. उस दिन आसमान से बरसी आफत ने उत्तराखंड खासकर केदार घाटी में जगह-जगह बर्बादी के वो निशान छोड़े, जिन्हें मिटाने में वर्षों लग गए. लेकिन अब केदार घाटी बदल रही है. यात्रा भी फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौटने लगी है. कुदरत द्वारा दिए गए जख्मों के साथ सामंजस्य बैठाकर कर लोग फिर से जिंदगी के रास्ते पर चल पड़े हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार

  • 4400 लोग इस घटना में मारे गए थे.
  • 4200 से ज्यादा गांवों का पुरी तरह से संपर्क टूट गया था.
  • 11091 मवेशी मारे गए थे और 991 स्थानीय लोग मारे गए थे.
  • 1309 हेक्टेयर कृषि भूमि बह गयी थी, 2141 भवनों का नामोनिशान मिट गया.
  • 4700 हजार यात्री सिर्फ केदार मंदिर में फंसे थे.
  • सेना द्वारा 9000 लोगों को रेस्क्यू किया गया था.
  • जबकि 30 हजार लोगों को पुलिस ने सुरक्षित निकाला था.
  • अब तक कुल 644 लोगों के कंकाल मिल चुके है.

7 साल में बदला केदारनाथ

बाबा केदार के धाम में 16 जून को कुदरत ने जो तांडव किया, उसे देश और दुनिया के लोग शायद ही भूले हों, लेकिन लोग कुदरत की उस मार को भूल कर आगे की ओर चल दिए हैं. आज केदारनाथ पूरी तरह से बदल गया है. केदारनाथ जाने वाली सड़कें पूरी तरह से बदल गयी हैं. बता दें कि केदारनाथ में हाईटेक हेलीपैड हैं. साथ ही होटल और धर्मशालाएं अत्याधुनिक तरीके से बन रही हैं. केदारनाथ मंदिर के चारोतरफा मोटी दीवार बना दी गयी है. यही नहीं अगर भविष्य में कभी आपदा जैसे हालात बनते हैं तो उसके लिए रेस्क्यू टीमों की टुकड़ी भी मौजूद है.

इन्हें हुआ सबसे ज्यादा नुकसान

आपदा के बाद सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को हुआ था तो वो था उत्तराखंड का पर्यटन उद्योग. पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट बताती है कि इस आपदा से 12,000 करोड़ का नुकसान हुआ था. इतना ही नहीं इस आपदा ने कुमाऊं गढ़वाल में आज भी लोग इस आपदा का दंश झेल रहे हैं. केदारनाथ में अब तक लगभग वर्ल्ड बैंक और एडीबी यानी एसियन डेवल्पमेन्ट बैंक से 2300 करोड़ रुपये का काम हुआ है.

मंदिर समिति के लोग कहते हैं विश्वास नहीं था कि इतनी आस्था जुड़ी रहेगी

2013 में हुई तबाही के बाद 1 बार तो ऐसा लगने लगा था कि शायद बाबा केदार की नगरी में दोबारा चहल पहल शुरू होने में कई दशक लग जायेंगे, लेकिन तबाही का मंजर दिखाने वाले बाबा ने ही लोगों को फिर से उठकर अपने पैरों पर खड़े होने की प्रेरणा दी. सिर्फ 2 साल में ही बाबा का धाम आबाद हो गया. यहां लोगों के मन में अपने घर बार और अपनों को खो देने का गम तो है, लेकिन लोगों का जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगा है.

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आज भी है खतरा

मौसम में बदलाव के कारण अब मॉनसून में बहुत अधिक बारिश के मामले भी सामने आ रहे हैं. इससे मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ और पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन के मामले बढ़ रहे हैं. ग्लेशियरों के सुकड़ने के कारण अब उच्च हिमालयी क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण भी हो रहा है और इस वजह से अचानक आने वाली बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है.

इस साल नहीं शुरू हो पाई चारधाम यात्रा

कोविड-19 संक्रमण के चलते इस बार केदारनाथ यात्रा शुरू नहीं हो पाई है. जबकि, चारधामों के कपाट खुल चुके हैं. हालांकि, राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों को केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए मंदिरों में दर्शन की अनुमति दे दी है.

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