जयपुर. जालोर में 9 साल के दलित स्कूली बच्चे की मौत (Dalit school kid death in Jalore) की जांच सीबीआई से कराने की मांग जोर पकड़ने लगी है. एससी-एसटी वर्ग ने बुधवार को राजधानी में सड़कों पर उतर कर गहलोत सरकार से मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई जांच की मांग (SC ST community Aakrosh Rally in Jaipur) की. साथ ही मृतक के परिजनों को 50 लाख का मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की मांग की गई. एससी-एसटी वर्ग ने आरोप लगाया कि सरकार इस मामले में भेदभाव पूर्ण कार्रवाई कर रही है.
क्या है नाराजगी: डॉ अम्बेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी महासचिव और पूर्व आईपीएस अनिल गोठवाल ने बताया कि जालोर में जिस तरह से एक 9 साल के बच्चे को स्कूल के अध्यापक ने मटके से पानी के चलते इस कदर मारा की उसकी मौत हो गई. आज उस मृतक के परिजन न्याय का इंतजार कर रहे हैं. सरकार इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है. हम इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से जांच कराने की कर रहे (CBI inquiry demanded in Jalore death case) हैं.
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साथ ही जिस तरह से इस पीड़ित परिवार के साथ पहले जातीय भेदभाव हुआ और फिर सरकार के स्तर पर भी भेदभाव हो रहा (Allegation of discrimination with dalits) है. इसी को लेकर आज ये आक्रोश रैली निकाली गई है. उन्होंने कहा कि यह एक घटना नहीं है. इसके अलावा राजस्थान में लगातार दलितों के साथ इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. बार-बार सरकार से आग्रह करने के बाद भी दलितों पर होने वाले अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं. इसी को लेकर समाज में भारी आक्रोश है. हम सरकार से मांग करते हैं कि जिस तरह से दलितों पर अत्याचार हो रहा है, उस सरकार सख्ती से कदम उठाए.
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मुआवजा और सरकारी नौकरी दी जाए: डॉ अम्बेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी अध्यक्ष भजन लाल ने कहा कि यह आक्रोश रैली एक मासूम बच्चे की मौत पर न्याय के लिए निकाली जा रही है. सरकार एक केस में तो 50 लाख का मुआवजा और दो लोगों को नौकरी दे देती है, जबकि दूसरे मामले में सिर्फ 5 लाख का मुआवजा दिया है. जबकि सरकारी नौकरी को लेकर सरकार खामोश है. उन्होंने कहा की प्रदेश में ये कोई एक घटना नहीं है. कभी किसी दलित को मूंछ रखने के लिए, तो कभी चप्पल जूती पहने के लिए मार दिया जाता है. आंकड़े बताते हैं कि दलित महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा किस तरह से बढ़ी है. इन्ही सब मुद्दों को लेकर दलित समाज आक्रोशित है.
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ये हैं प्रमुख मांगे:
- पुलिस से प्रकरण के निष्पक्ष अनुसंधान की आशा नहीं है. लिहाजा प्रकरण का अग्रिम अनुसंधान CBI से कराया जाए ताकि छात्र इंद्र कुमार की हत्या के कारण की वास्तविकता ज्ञात हो सके.
- उदयपुर में कन्हैया हत्या कांड में सरकार की ओर से पीड़ित परिवार को 50 लाख रुपए की वित्तीय सहायता और दो लोगों को सरकारी सेवा में नौकरी देने की घोषणा की गई है. उसी अनुरूप बिना भेदभाव के पीड़ित परिवार को वित्तीय सहायता और सरकारी सेवा में नौकरी तत्काल दी जाए.
- एसएचओ, पुलिस अधीक्षक, जिला पुलिस अधीक्षक और जिला कलेक्टर को निलंबित कर हटाया जाए और समस्त घटनाक्रम और ज्यादती की निष्पक्ष उच्च स्तरीय प्रशासनिक जांच तीन वरिष्ठ अधिकारियों से कराई जाए. जिनमें एक सदस्य अनुसूचित जाति वर्ग का हो. जब इसी प्रकार की एक घटना अलवर में घटी थी, तब तत्कालीन जिला कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक को हटाया गया था एवं अधीनस्थ अधिकारियों को निलंबित किया गया था.
- जिला शिक्षा अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करते हुए उक्त विद्यालय की मान्यता अस्थाई रूप से रद्द की गई, उसे बहाल नहीं किया जाए. शिक्षण संस्थानों और छात्रावास (चाहे वह सरकारी हो या निजी) में अनुसूचित जाति के छात्रों के साथ किसी रूप में भी भेदभाव नहीं हो. यह सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत दिशा निर्देश, सम्बन्धित अधिकारी के उत्तरदायित्व और सजा के प्रावधान के साथ, राज्य सरकार स्तर पर जारी किए जाएं.
- जातीय भेदभाव की समस्या का अध्ययन राज्य सरकार के स्तर पर किसी विश्वविद्यालय से प्रोजेक्ट या Phd के रूप में करवाया जाए. साथ ही इस तरह के भेदभावों को किस तरह से समाप्त किया जा सकता है कि सिफारिशों सहित रिपोर्ट प्राप्त की जाए और उस पर समयबद्ध कार्य योजना बनाकर इस नासूर को जड़ से उखाड़ा जाए.
- धौलपुर के बाड़ी में सहायक अभियंता हर्षाधिपति वाल्मीकि बिजली विभाग पर हुए कातिलाना हमले के आरोपी को न्यायालय से जमानत प्राप्त हो गई है, ये गंभीर मामला है. लिहाजा आरोपी की जमानत निरस्त करने के लिए उच्च न्यायालय में विशेष याचिका दायर की जाए.
- राजस्थान में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की कृषि भूमि पर गैर कानूनी तरीके से अन्य वर्गों की ओर से कब्जा किया जा रहा है. राजस्थान काश्तकारी अधिनियम में स्पष्ट उपबंध होने के बावजूद पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की निष्क्रियता और मिलीभगत से अवैध कब्जे बरकरार हैं. ऐसे में राज्य सरकार के स्तर पर इस तरह का मेकेनिज्म विकसित किया जाए, जिसमें पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारियों को अवैध कब्जे हटाने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाए और अनुसूचित जाति, जनजाति के काश्तकारों को उनकी भूमि पर फिर से काबिज कराया जाए.
- राजस्थान अनुसूचित जाति आयोग एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाए.