जयपुर: माफियाओं और तस्करों की बेलगाम करतूत से बार-बार खाकी शर्मसार हुई है. स्पेशल ऑपरेशन चलाने (Special Operation By Rajasthan Police On Smugglers) के बावजूद बजरी, रेत खनन, शराब और मादक पदार्थों की तस्करी पर नकेल नहीं कसी जा सकी है. अनेक मामले ऐसे भी उजागर हुए हैं जिसमें खाकी व माफियाओं के अटूट संबंध उजागर हुए हैं. ऐसे कई खुलासे हुए जिसमें पुलिस विभाग के ही कुछ भ्रष्ट कर्मचारी और अधिकारियों के चलते माफियाओं को मिल रहे संरक्षण का पता चला.
जयपुर पुलिस मुख्यालय में अपराध समीक्षा बैठक भी हर महीने आयोजित की जाती है. जिस में विभिन्न तस्करों पर नकेल कसने के आदेश दिए जाते हैं लेकिन वह आदेश भी महज कागजी फरमान बनकर रह जाते हैं. हालांकि पुलिस लगातार तस्करों को पकड़ भी रही है लेकिन उसके बावजूद भी इसका कोई खास असर तस्करों में देखने को नहीं मिल (Mafias Without Fear In Rajasthan) रहा है.
तस्करी का जाल!
प्रदेश में लगातार बढ़ रहे तस्करी के प्रकरणों पर पूर्व पुलिस अधिकारी योगेंद्र जोशी का कहना है कि तस्करी करने के लिए एक विशेष ग्रुप काम करता है. जिसमें अपराधी प्रवृति के लोग शामिल नहीं होते हैं और इस तरह के लोग पुलिस, न्याय पालिका और कार्यपालिका में अपना काफी दखल रखते हैं. ऐसे लोगों का हस्तक्षेप इस कदर का होता है कि वह आखिरी समय तक तस्करी में मदद करने वाले कर्मचारी और अधिकारी की पूरी मदद करते हैं. जिसके चलते तस्करों को संबंधित कर्मचारी-अधिकारी की तरह से पूरा संरक्षण प्रात होता है. जिसके बलबूते पर तस्कर अपने पूरे नेटवर्क को ऑपरेट करते हैं.
विभाग में मददगारों की बढ़ती तादाद चिंता की वजह
पूर्व पुलिस अधिकारी योगेंद्र जोशी का कहना है कि पुलिस विभाग में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो तस्करों साथ गठजोड़ रखते हैं. ताज्जुब की बात यह है कि पुलिस विभाग में भी ऐसे लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है जो चिंता का एक बड़ा विषय है. हाल ही में एक महिला थानाधिकारी सीमा जाखड़ का तस्करों (SHO Seema Jakhar Bribe Case In Sirohi) से 10 लाख रुपए लेने का प्रकरण काफी चर्चा में है. तस्कर पहले पुलिस वालों को दाना डालते हैं और छोटे स्केल पर तस्करी करना शुरु करते हैं. धीरे-धीरे तस्कर अपना दायरा बढ़ाते जाते हैं और पुलिस कर्मचारी व अधिकारी को मोटा पैसा खिलाकर अपना काम निकालते रहते हैं. भीलवाड़ा तस्करी (Bhilwara Smuggling Case) एक बड़ा उदाहरण है जहां तस्करों का आतंक काफी बढ़ गया है और तस्करों ने फायरिंग करके तीन पुलिस कांस्टेबलों की जान तक ले डाली है.
पुलिस तंत्र में तस्करों का इस कदर हस्तक्षेप है की हाल ही में अजमेर एसपी और भीलवाड़ा एडिशनल एसपी के बीच में तस्करों को लेकर जो बातचीत हुई वह तक लीक (Chat Between Bhilwara SP And ASP Leaked) होकर तस्करों तक पहुंच गई. इसी प्रकार से कुछ समय पहले सिरोही से एक एसपी को इसलिए हटाया गया कि उसकी शराब तस्करों से साठगांठ उजागर हुई.
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इन माफियाओं के हाथ लम्बे हैं, कहानियां कई हैं
पूर्व पुलिस अधिकारी योगेंद्र जोशी का कहना है कि पुलिस तंत्र का कोई भी कर्मचारी या अधिकारी जो तस्करों से संपर्क में रहता है, वह अपनी पोस्टिंग के दौरान जिस भी नए स्थान पर जाता है वहां जाकर नए तस्कर इजाद करता है. इसके साथ ही ऐसा व्यक्ति नए भ्रष्ट पुलिस कर्मचारी व अधिकारियों को तैयार करता है. उन्हें बताता है कि किस तरह से तस्करों की मदद करके मोटा रुपया कमाया (Earning Through Smugglers In Rajasthan) जा सकता है. इसका जीता जाता उदाहरण सीमा जाखड़ है जो कि नई सब इंस्पेक्टर है और उसे भी तस्करों से साठगांठ रखने वाले किसी कर्मचारी या अधिकारी ने ही इस पूरे खेल में धकेलने का काम किया है. जब इस तरह के अधिकारियों का तबादला होता है तो वह नई जगह जाकर इन तमाम चीजों को अपने साथ ले जाकर एक नए पेड़ की तरह रोप देते हैं.
पूर्व में एक ऐसा प्रकरण सामने आया था जहां धौलपुर में तस्करों को संरक्षण देने वाले एक एएसआई ने एक डीएसपी पर पिस्टल तान दी थी. पहले तो पुलिस विभाग तस्करों पर नकेल कसने के लिए धरपकड़ करता है और बाद में इन्हीं तस्करों के सामने नतमस्तक होकर इन से सांठगांठ कर लेता है.
राजनैतिक और पुलिस संरक्षण से हौसले बुलंद
पूर्व पुलिस अधिकारी योगेंद्र जोशी का कहना है कि प्रदेश में तस्कर इतनी बड़ी संख्या में नहीं है और न ही इतने ज्यादा ताकतवर हैं कि वह इस कदर कानून की धज्जियां उड़ाते हुए नजर आए. सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक संरक्षण व पुलिस संरक्षण (Political And Police Protection To Smugglers In Rajasthan) के चलते तस्करों के हौसले बुलंद हो रहे हैं. यदि तस्करों को राजनैतिक और पुलिस संरक्षण मिलना बंद हो जाए तो प्रदेश में अपने आप तस्करी के प्रकरणों पर लगाम लगना शुरू हो जाए.
प्रजातंत्र में राजनैतिक दलों का प्रशासन चलाने में हस्तक्षेप होता है और कई मामलों में यह राजनैतिक दल अपने लोगों का गलत चीजों में समर्थन करते हैं. यदि राजनीतिक दल गलत चीजों में अपने लोगों का समर्थन करना बंद कर दें तो तस्कर पैदा ही ना हो. एक और पुलिस पर राजनैतिक दलों का दबाव रहता है तो वहीं दूसरी ओर पुलिस रुपयों के लालच के चलते तस्करों को संरक्षण देने का काम करती है.