जयपुर. राजस्थान की सियासत में सत्ता और संगठन में मचे घमासान को भले ही कांग्रेस पार्टी के दिग्गज सब कुछ सामान्य बता रहे हों, लेकिन अंदरखाने मची रार अब सबके सामने आ गई है. मामला पार्टी के हाईकमान के दरबार में पहुंच चुका है और इसको लेकर सचिन पायलट (Sachin Pilot) खुद समर्थकों के साथ और उनके पीछे-पीछे राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा (Rajasthan Congress President Govind Singh Dotasara) भी 'दिल्ली दरबार' में पहुंच चुके हैं. ऐसे में जो बात निकलकर सामने आ रही है, वह यह कि एक बार फिर से राजस्थान में कैबिनेट विस्तार (Rajasthan Cabinet Expansion) और फेरबदल हो सकता है.
दरअसल, जुलाई 2020 में राजस्थान कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने जब अपनी मांगों को लेकर बगावती रुख अपनाया तो उसके बाद राजनीतिक भूचाल ही गया था. कई दिनों तक चले कि सियासी संग्राम के बाद अंत में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) के हस्तक्षेप के बाद मामला ठंडे बस्ते में गया था. एक कमेटी बनाई गई थी कि जिसको सचिन पायलट और उनके सहयोगी विधायकों की शिकायतों को सुनना था, लेकिन दस महीने बाती जाने के बाद भी कमेटी ने पायलट कैंप के विधायकों की कोई सुनवाई नहीं की.
ऐसे में विरोध की आग अंदर ही अंदर सुलग रही थी और दस महीने बाद ही सही राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) में एक बार वही हालात बनते नजर आ रहे हैं. अब सचिन पायलट दिल्ली पहुंच चुके हैं. कहा जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात कर अपनी बात रख सकते हैं. इन सबके बीच राजस्थान में एक बार फिर से जून महीने के अंत या फिर जुलाई के पहले सप्ताह में कैबिनेट विस्तार और फेरबदल की बातें निकलकर सामने आ रही हैं.
पहले भी मिलती रही है तारीख पर तारीख
वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर इस सियासी संग्राम के बारे में बताते हैं कि जिस तरीके से राजस्थान में सचिन पायलट कैंप की शिकायतें सुनने के लिए बनी कमेटी (Committee) के 10 महीने के बाद भी सुनवाई नहीं करने से सचिन पायलट एक बार फिर नाराज हो गए हैं. उसके बाद राजस्थान में कैबिनेट विस्तार और पार्टी संगठन के पदों पर नियुक्तियों की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने तो जून के महीने में जिला स्तरीय और उप खंड स्तरीय राजनीतिक नियुक्तियों को करने का दावा किया है. प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने भी कहा है कि सचिन पायलट नाराज नहीं है और रोज उनसे बात होती है.
इसके साथ ही उन्होंने एक बार फिर से प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार जल्द होने की बात भी कही है. लेकिन असली पेंच यहीं आकर फंस जाती है कि इस बयान पर एतबार कैसे किया जाय, क्योंकि तारीख पर तारीख तो पहले भी मिलती रही है. यह कोई पहली बार नहीं है जब अजय माकन ने कैबिनेट विस्तार और पार्टी संगठन के पदों पर नियुक्तियों को लेकर कोई तारीख दी है. इससे पहले प्रभारी अजय माकन (Ajay Maken) ने ही साल दिसंबर 2020 में पार्टी संगठन के पदों पर नियुक्ति के लिए 31 जनवरी का समय तय किया था. इसके बाद उन्होंने 15 फरवरी और बाद में विधानसभा सत्र चलने की बात कहते हुए कहा कि अब कैबिनेट विस्तार और संगठन की नियुक्तियां नहीं हो सकती.
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इस बार सीएम गहलोत पर ज्यादा दबाव
इस बार मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot) पर दबाव ज्यादा है. ऐसे में जल्द ही कैबिनेट विस्तार किया जा सकता है. मंत्रिमंडल विस्तार का दबाव केवल पायलट खेमे पर ही नहीं, बल्कि खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कैंप के विधायकों का भी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर सीएम पर इस बार दबाव ज्यादा है. हालांकि दूसरा पहलू ये भी है कि सचिन पायलट के दबाव का असर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर कोई ज्यादा नहीं है. लेकिन उन पर असली दबाव उन विधायकों का है जो पिछली बार सरकार को बचाने के लिए एक महीने तक होटल में रहे थे. उन विधायकों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि जो भी मेरे साथ है, उन्हें सरकार में हिस्सेदारी जरूर मिलेगी. ऐसे में असली दबाव पार्टी के पहले के और बसपा से कांग्रेस में आए विधायकों के साथ ही निर्दलीय विधायकों का भी है.
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...तो पायलट कैंप के 2 से 3 विधायकों को मिल सकता है मौका
गहलोत मंत्रिमंडल (Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot Cabinet) में सीएम समेत अभी 21 सदस्य हैं उनमें से 10 कैबिनेट और 10 राज्य मंत्री हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री के पास 9 पद खाली हैं. नौ विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह देकर तो 10 विधायकों को संसदीय सचिव बनाकर तकरार को प्यार में बदला जा सकता है. इसमे दो से तीन मंत्री पायलट कैंप से बनाए जा सकते हैं तो वहीं संसदीय सचिव में भी इतने ही सदस्यों को मौका मिल सकता है. वहीं सीएम के कैंप के निर्दलीय और बसपा (BSP) से कांग्रेस में आए विधायकों को भी मौका मिलेगा. ऐसे में अगर सीएम कैबिनेट में विस्तार और पुनर्गठन करते भी हैं, तो भी किसी भी मंत्री को ड्रॉप किए जाने के आसार न के बराबर हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री इनकी भी नाराजगी मोल नहीं ले सकते. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बार एक तीर से दो निशाने साधकर ही सियासी संग्राम का समापन करके 'ऑल इज वेल' (ALL Is Well) कर सकते हैं.