जयपुर. प्रदेश में 2 साल बाद हुए छात्र संघ चुनाव के परिणाम आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा (Student Union Elections) नेताओं को भी सबक देने वाला रहा. कैंपस के चुनाव में भाजपा के नेताओं ने भी एबीवीपी प्रत्याशियों को जिताने के लिए पसीना बहाया था. लेकिन जिन जिलों में एबीवीपी हारी, वहां से जुड़े बड़े भाजपा नेता इस चुनावी परीक्षा में फेल ही नजर आए. वहीं बागड़ कि 10 कॉलेजों में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा की जीत कांग्रेस व भाजपा दोनों की परेशानी बढ़ाने वाली है.
दरअसल यह चुनाव भले ही कैंपस के चुनाव थे. लेकिन सीधे तौर पर इसमें राजनीतिक दलों की लिप्तता किसी से छुपी हुई नहीं है. एनएसयूआई कांग्रेस का छात्र संगठन है तो वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की विचारधारा भाजपा से जुड़ी है. एसएफआई मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टियों की विचारधारा वाला छात्र संगठन है. एबीवीपी के समर्थन में भाजपा जुटी. लेकिन पार्टी के ये नेता अपने जिलों में जीत नहीं दिला पाए.
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जयपुर में पूनिया समेत ये दिग्गज हुए निराशः प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव के दौरान सबकी निगाहें राजस्थान विश्वविद्यालय पर (Rajasthan University Elections) टिकी थी. लेकिन यहां न तो एनएसयूआई जीत पाई और न ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद. जयपुर प्रदेश की राजधानी है. यहां से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया समेत कई दिग्गज राजनेता आते हैं, जो पूर्व में इस विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रह चुके हैं. फिर चाहे उनमें मौजूदा विधायक कालीचरण सराफ हो या फिर अशोक लाहोटी, पूर्व विधायक राजपाल सिंह शेखावत, मौजूदा पार्षद जितेंद्र श्रीमाली. जयपुर में बीजेपी के कई नेता और पदाधिकारी स्थानीय स्तर पर एबीवीपी प्रत्याशियों को जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे, लेकिन उनकी यह मेहनत धरी रह गई. कैंपस की इस चुनावी परीक्षा में जयपुर से सभी भाजपा के दिग्गज पूरी तरह फेल हो गए.
गजेंद्र सिंह शेखावत : जोधपुर सांसद और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत अपने संसदीय क्षेत्र यानी जोधपुर (BJP leaders related with Students Election) में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद प्रत्याशी को नहीं जीता पाए. यहां एसएफआई के अरविंद सिंह भाटी छात्रसंघ अध्यक्ष बने हैं. दूसरे नंबर पर एनएसयूआई के हरेंद्र चौधरी रहे. मतलब केंद्रीय मंत्री और भाजपा के इस दिग्गज नेता के गृह जिले में एबीवीपी तीसरे नंबर पर रही. हालांकि शेखावत के पास केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी होने के चलते वह खुद कैंपस के इन चुनावों में भले ही जुड़े नहीं रहे हों, लेकिन उनके कार्यकर्ता जरूर एबीवीपी का समर्थन और सहयोग कर रहे थे. हालांकि युवाओं के इस चुनाव में भाजपा के स्थानीय नेताओं की नहीं चली. हालांकि जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी गृह जिला है. इस चुनाव में गहलोत अपने गृह जिले से एनएसयूआई प्रत्याशियों को नहीं जीता पाए.
ओम बिरला: लोकसभा अध्यक्ष और कोटा सांसद ओम बिरला यूं तो संविधानिक पद पर हैं. लेकिन उनके गृह जिले यानी कोटा विश्वविद्यालय में एबीवीपी प्रत्याशी अंतिमा नागर को हार का मुंह देखना पड़ा. यहां निर्दलीय अजय पाता छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीते हैं. कोटा में भी स्थानीय भाजपा नेता एबीवीपी प्रत्याशियों की जीत के लिए कैंपस से लेकर बाहरी इलाकों तक में पसीना बहा रहे थे. यहां बीजेपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के दिग्गज मंत्री शांति धारीवाल भी अपनी प्रतिष्ठा कायम नहीं रख पाए. क्योंकि एनएसयूआई भी यहां नहीं जीत पाई.
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भाजपा के इन दिग्गजों ने दिलाई जीत
गुलाबचंद कटारिया : नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया उदयपुर से आते हैं. उदयपुर के सुखाड़िया विश्वविद्यालय में एबीवीपी प्रत्याशी कुलदीप सिंह की जीत (ABVP in Udaipur) इस बात को दर्शाती है कि गुलाबचंद कटारिया अपने गृह जिले में कैंपस की चुनावी परीक्षा में पास हो गए. कुलदीप सिंह ने यहां एनएसयूआई के देव सोनी को हराया. उदयपुर में एबीवीपी की जीत में भाजपा नेत्री और महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष अलका मूंदड़ा भी उत्साहित हैं. कैंपस के चुनाव में अलका मूंदड़ा ने भी खूब पसीना बहाया है.
अर्जुन मेघवाल : केंद्रीय मंत्री और बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल के संसदीय क्षेत्र बीकानेर में महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय में एबीवीपी की जीत हुई है. एबीवीपी प्रत्याशी लोकेंद्र सिंह ने जीत हासिल की. इस जीत से मेघवाल बीकानेर के स्थानीय भाजपा नेताओं को राहत मिली. क्योंकि यहां भी अंदर खाने भाजपा के नेता और पदाधिकारी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशियों के प्रचार और चुनाव में जुटे थे.
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वासुदेव देवनानी व अनिता भदेल: पूर्व शिक्षा मंत्री और भाजपा के मौजूदा विधायक वासुदेव देवनानी, पार्टी विधायक व प्रदेश प्रवक्ता अनिता भदेल अजमेर से आती है. अजमेर के एमडीएस विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद प्रत्याशी महिपाल गोदारा जीते हैं. यहां छात्रसंघ अध्यक्ष चुनाव में एनएसयूआई के बस्तीराम को हराकर जीते. खुद वासुदेव देवनानी पूर्व में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से ही रहे हैं. ऐसे में अजमेर में एबीवीपी प्रत्याशी की जीत से देवनानी और भदेल कैंपस के चुनावी परीक्षा में यह दोनों ही नेता पास भी हो गए.
वागड़ में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा की दस्तक ने बढ़ाई परेशानीः पिछले विधानसभा चुनाव में जिस तरह भारतीय ट्राइबल पार्टी ने 2 सीटों पर जीत के साथ धमाका किया था.उसी तरह वागड़ के 10 कॉलेजों में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा की जीत सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा की परेशानी बढ़ाने वाली है. इन इलाकों में भील विद्यार्थी मोर्चा सक्रिय होता है तो कहीं न कहीं ट्राइबल बेल्ट में उभरने वाली नई पार्टियों को बल मिला है. जिससे आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनेगा.
आरएलपी ने खाली छोड़ा था मैदानः मौजूदा छात्र संघ चुनाव के परिणाम भाजपा और कांग्रेस नेताओं को सबक देने वाले हैं. लेकिन प्रदेश में तीसरे राजनीतिक दल का विकल्प बनने का दावा करने वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के लिए भी उत्साहजनक नहीं माने जा सकते. वो इसलिए क्योंकि आरएलपी में इन छात्र संघ चुनाव में मैदान खाली छोड़ कर एनएसयूआई और एबीवीपी को फ्री हैंड दे दिया था. छात्र संघ चुनाव में आरएलपी की ओर से प्रत्याशी नहीं उतारे जाने से उन्हीं की पार्टी का युवा मोर्चा और इससे जुड़े कार्यकर्ता भी निराश हैं. ऐसे में मौजूदा चुनाव परिणाम भले ही कुछ भी रहे हों, लेकिन इससे हनुमान बेनीवाल के राजनीतिक दल को फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हुआ है.