श्रीगंगानगर : भाजपा सांसद निहालचंद मेघवाल ने कहा है कि राजस्थानी भाषा को जल्द ही संवैधानिक दर्जा मिलेगा. उन्होने कहां की राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करवाकर संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. सांसद निहालचंद ने कहा कि पिछ्ले दिनों नियम 377 के अंतर्गत लोकसभा में उन्होंने मामला उठाया है कि राजस्थानी भाषा को केंद्र सरकार आठवीं अनुसूची में शामिल करके मान्यता दे. ताकि राजस्थानी भाषा को एक संवैधानिक दर्जा मिल सके.
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ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए सासंद निहालचंद मेघवाल ने कहा कि 2003 से लेकर आज तक राजस्थान के लोगों ने राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए काफी लंबी लड़ाई लड़ी है. जब राजस्थान में मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत थे, उस समय राजस्थान की विधानसभा में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था. जिसको केंद्र सरकार को भेजा गया था.
2006 में केंद्र के गृहमंत्री ने संसद में खड़े होकर कहा था कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो इसके लिए संसद में एक कानून बनाया जाएगा. लेकिन सालों बीत जाने के बाद भी अभी तक राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा नहीं मिला है. सांसद ने कहां कि हम चाहते हैं कि राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करके संवैधानिक दर्जा दिया जाए. ताकि राजस्थान का मान, सम्मान और गौरव बढ़ सके.
सांसद निहालचंद मेघवाल ने कहा कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए वे लगातार प्रयास करते रहे हैं और जल्द ही आठवीं अनुसूची में शामिल कर संवैधानिक दर्जा मिलने की उम्मीद है. इसके लिए उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से भी कई बार चर्चा की है. उन्होने कहां की जल्दी ही करोडों राजस्थानीयो की बरसों पुरानी मांग पूरी होगी.
1936 से उठती आ रही मांग : कई बोलियों मारवाड़ी, मेवाती, शेखावाटी, बागड़ी, ढुंढ़ाड़ी में बंटी राजस्थानी भाषा बीते करीब 85 वर्षों से संवैधानिक दर्जे के लिए संघर्षरत है. राजस्थानी की मान्यता को लेकर पहली बार मांग 1936 में उठी थी लेकिन राजस्थान विधानसभा में इस भाषा पर 2003 में विधायकों की एक राय बनी. तब एक प्रस्ताव बनाकर केन्द्र सरकार को भेजा गया था. जिसके बाद केंद्र ने ओडिशा के वरिष्ठ साहित्यकार एसएस महापात्र की अगुआई में एक कमेटी बना दी थी.
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करीब दो साल बाद आई रिपोर्ट पेश की. इसमें राजस्थानी और भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा का पात्र बताया गया था लेकिन इस पर आगे विचार नहीं हो सका. इसके बाद 2006 में उस वक्त के गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने 14वीं लोकसभा के कार्यकाल में राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा देने का भरोसा दिया था. संसद में पास करने के लिए बाकायदा बिल का मसौदा भी तैयार किया गया, जो आज तक सदन के पटल पर पेश नहीं हो सका.