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कांस्टेबल भर्ती-2013: संदेह के लाभ के आधार पर बरी हुए अभ्यर्थी को नियुक्ति से वंचित करना गलत - कांस्टेबल पद पर नियुक्ति

राजस्थान हाईकोर्ट ने आपराधिक मामले में संदेह के लाभ के आधार पर बरी हुए अभ्यर्थी को कांस्टेबल पद पर नियुक्ति से वंचित करने को गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने समस्त परिलाभों के साथ अभ्यर्थी को सेवा में लेने को कहा है.

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संदेह के लाभ के आधार पर बरी हुए अभ्यर्थी को नियुक्ति से वंचित करना गलत
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Published : Mar 5, 2020, 8:39 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने आपराधिक मामले में संदेह के लाभ के आधार पर बरी हुए अभ्यर्थी को कांस्टेबल पद पर नियुक्ति से वंचित करने को गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने समस्त परिलाभों के साथ अभ्यर्थी को सेवा में लेने को कहा है. इस मामले में यह आदेश न्यायाधीश एसपी शर्मा ने पवन कुमार की ओर से दायर याचिका पर दिए हैं. अदालत ने कहना है कि भर्ती में याचिकाकर्ता से जूनियर रहे अभ्यर्थी की नियुक्ति तिथि से याचिकाकर्ता की नियुक्ति मानी जाए.

पढ़ें- दुष्कर्म से गर्भवती पीड़िताओं को क्यों देना पड़ रहा संतान को जन्म? : हाईकोर्ट

वहीं, याचिका में अधिवक्ता सुशीला कलवानिया ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता कांस्टेबल भर्ती-2013 में चयनित हुआ था. एक आपराधिक मामले में संदेह का लाभ के आधार पर उसे बरी किया गया था. इसके चलते एसपी कोटा ने उसे नियुक्ति से वंचित कर दिया, जबकि डीजीपी ने 28 मार्च 2017 को एक परिपत्र जारी कर आपराधिक मामले में किसी भी आधार पर बरी होने वाले अभ्यर्थी को नियुक्ति के पात्र माना था. इस परिपत्र के आधार पर याचिकाकर्ता ने एसपी कोटा के समक्ष प्रार्थना पत्र पेश किया, लेकिन एसपी ने 20 नवंबर 2018 को प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया था.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने आपराधिक मामले में संदेह के लाभ के आधार पर बरी हुए अभ्यर्थी को कांस्टेबल पद पर नियुक्ति से वंचित करने को गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने समस्त परिलाभों के साथ अभ्यर्थी को सेवा में लेने को कहा है. इस मामले में यह आदेश न्यायाधीश एसपी शर्मा ने पवन कुमार की ओर से दायर याचिका पर दिए हैं. अदालत ने कहना है कि भर्ती में याचिकाकर्ता से जूनियर रहे अभ्यर्थी की नियुक्ति तिथि से याचिकाकर्ता की नियुक्ति मानी जाए.

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वहीं, याचिका में अधिवक्ता सुशीला कलवानिया ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता कांस्टेबल भर्ती-2013 में चयनित हुआ था. एक आपराधिक मामले में संदेह का लाभ के आधार पर उसे बरी किया गया था. इसके चलते एसपी कोटा ने उसे नियुक्ति से वंचित कर दिया, जबकि डीजीपी ने 28 मार्च 2017 को एक परिपत्र जारी कर आपराधिक मामले में किसी भी आधार पर बरी होने वाले अभ्यर्थी को नियुक्ति के पात्र माना था. इस परिपत्र के आधार पर याचिकाकर्ता ने एसपी कोटा के समक्ष प्रार्थना पत्र पेश किया, लेकिन एसपी ने 20 नवंबर 2018 को प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया था.

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