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जयपुर: जयपुरवासियों को लुभा रहे ईको फ्रेंडली दीपक... दिवाली पर गोमाता के गोबर से बने दीपकों से जगमगाएंगे घर आंगन - दीपावली पर गोबर से बने दीपकों की बढ़ी डिमांड

ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में दिवाली पर शुद्धि के लिए घर में गोमाता के गोबर से बने दीपक जलाने में लोग रूचि ले रहे हैं. राजधानी जयपुर में बड़ी संख्या में गोमाता के गोबर से दीपक बनाए जा रहे हैं.

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गोबर के दीपक.
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Published : Nov 3, 2021, 8:53 PM IST

जयपुर. जयपुर में दिवाली पर गाय के गोबर से बने इको फ्रेंडली दीपक (Eco friendly lamp) से घर आंगन रोशन होंगे. जयपुर जिले सहित अन्य जिलों में गाय के गोबर से बने इको फ्रेंडली दीपक की तरफ आम जनता आकर्षित हो रही है. इसे बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. गोबर के दीपक देश व विदेश (Foreign) भी भेजे जा रहे हैं.

जयपुर जिले में ऐसी कई जगह हैं. जहां पिछले कई सालों से गाय के गोबर से इको फ्रेंडली दीपक (Eco friendly lamp), लक्ष्मी जी एवं गणेश जी की मूर्तियां आदि का निर्माण किया जा रहा है. गाय के गोबर से बने दीपकों की डिमांड भी लगातार बढ़ती जा रही है. इससे न केवल पर्यावरण संरक्षित रहता है बल्कि महिलाओं सहित अन्य बेरोजगारों को रोजगार भी मिल रहा है. शास्त्रों के अनुसार गाय के गोबर के बने उत्पादों का अपना अलग ही महत्व है.

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गोबर के दीपक

पढ़ें- दिवाली बोनस नहीं मिलने से नाराज बिजली कर्मचारियों का प्रदर्शन, काली पट्टी बांधकर किया विद्युत भवन का घेराव

सरकार से अनुदान की मांग

दीपक एवं मूर्तियों के अलाव गोबर से दीवारें पोती जाती हैं. धूपबत्ती बनाई जाती है. इसके अलावा अन्य कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं. कई ऐसी संस्थाएं भी हैं जो ना केवल बेरोजगारों को रोजगार देने का काम कर रही हैं, बल्कि गाय से बने उत्पादों को विदेश तक भेज रही हैं. धेनु कृपा गोवर्ती पंचगव्य उत्पाद ग्रामोद्योग के मैनेजर मनोज कुमावत ने बताया कि सरकार की ओर से उनको कोई संरक्षण नहीं मिल रहा. गाय के गोबर से उत्पाद बनाने वालों को सरकार की ओर से अनुदान मिलना चाहिए.

पढ़ें- By-Election Results Effect : मुख्यमंत्री अब फ्री हैंड, मंत्रिमंडल फेरबदल मुश्किल..अब केवल विस्तार पर होगी बात

मनोज कुमावत ने कहा कि सरकार को मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म भी उपलब्ध कराना चाहिए. जिससे उनका कारोबार और बढ़े. गोबर के उत्पाद पर जीएसटी नहीं लगनी चाहिए. उन्होंने बताया कि गोबर का एक दीपक बनाने में 2 मिनट का समय लगता है. उसे सूखने में 2 दिन लगते हैं. इसकी कीमत 2 रुपये है. पहले गोबर को कचरा समझ कर फेंक दिया जाता था. लेकिन गाय के गोबर का अच्छे से उपयोग किया जा रहा है. बारह महीने तक दीपक बनाने का काम चलता है.

दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक डिमांड

मनोज कुमावत ने कहा कि यदि सरकार इस काम को संरक्षण देगी तो स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा. युवा भी इस काम को करने के लिए प्रेरित होंगे. गाय का गोबर बेच कर पैसे भी कमा सकते हैं. इससे गांव की महिलाएं भी आर्थिक एवं सामाजिक रूप से भी मजबूत होंगी.

जयपुर शहर के बाजारों में भी गाय के गोबर से बने दीपकों की बिक्री हो रही है. लोग उसमें रुचि भी दिखा रहे हैं. गोबर से बने दीये, मूर्तियां आदि उत्पाद दिल्ली, चेन्नई, पुणे, हैदराबाद और कानपुर समेत अन्य शहरों में सप्लाई किये जाते हैं. गोबर से उत्पाद बनाने के लिए गोबर में मैदा लकड़ी, मिट्टी और ग्वारगम मिलाया जाता है. फिर सांचे में डालकर उत्पाद बनाये जाते हैं. डिमांड के अनुसार ही इन उत्पादों पर कलर भी किए जाते हैं.

जयपुर. जयपुर में दिवाली पर गाय के गोबर से बने इको फ्रेंडली दीपक (Eco friendly lamp) से घर आंगन रोशन होंगे. जयपुर जिले सहित अन्य जिलों में गाय के गोबर से बने इको फ्रेंडली दीपक की तरफ आम जनता आकर्षित हो रही है. इसे बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. गोबर के दीपक देश व विदेश (Foreign) भी भेजे जा रहे हैं.

जयपुर जिले में ऐसी कई जगह हैं. जहां पिछले कई सालों से गाय के गोबर से इको फ्रेंडली दीपक (Eco friendly lamp), लक्ष्मी जी एवं गणेश जी की मूर्तियां आदि का निर्माण किया जा रहा है. गाय के गोबर से बने दीपकों की डिमांड भी लगातार बढ़ती जा रही है. इससे न केवल पर्यावरण संरक्षित रहता है बल्कि महिलाओं सहित अन्य बेरोजगारों को रोजगार भी मिल रहा है. शास्त्रों के अनुसार गाय के गोबर के बने उत्पादों का अपना अलग ही महत्व है.

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गोबर के दीपक

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सरकार से अनुदान की मांग

दीपक एवं मूर्तियों के अलाव गोबर से दीवारें पोती जाती हैं. धूपबत्ती बनाई जाती है. इसके अलावा अन्य कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं. कई ऐसी संस्थाएं भी हैं जो ना केवल बेरोजगारों को रोजगार देने का काम कर रही हैं, बल्कि गाय से बने उत्पादों को विदेश तक भेज रही हैं. धेनु कृपा गोवर्ती पंचगव्य उत्पाद ग्रामोद्योग के मैनेजर मनोज कुमावत ने बताया कि सरकार की ओर से उनको कोई संरक्षण नहीं मिल रहा. गाय के गोबर से उत्पाद बनाने वालों को सरकार की ओर से अनुदान मिलना चाहिए.

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मनोज कुमावत ने कहा कि सरकार को मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म भी उपलब्ध कराना चाहिए. जिससे उनका कारोबार और बढ़े. गोबर के उत्पाद पर जीएसटी नहीं लगनी चाहिए. उन्होंने बताया कि गोबर का एक दीपक बनाने में 2 मिनट का समय लगता है. उसे सूखने में 2 दिन लगते हैं. इसकी कीमत 2 रुपये है. पहले गोबर को कचरा समझ कर फेंक दिया जाता था. लेकिन गाय के गोबर का अच्छे से उपयोग किया जा रहा है. बारह महीने तक दीपक बनाने का काम चलता है.

दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक डिमांड

मनोज कुमावत ने कहा कि यदि सरकार इस काम को संरक्षण देगी तो स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा. युवा भी इस काम को करने के लिए प्रेरित होंगे. गाय का गोबर बेच कर पैसे भी कमा सकते हैं. इससे गांव की महिलाएं भी आर्थिक एवं सामाजिक रूप से भी मजबूत होंगी.

जयपुर शहर के बाजारों में भी गाय के गोबर से बने दीपकों की बिक्री हो रही है. लोग उसमें रुचि भी दिखा रहे हैं. गोबर से बने दीये, मूर्तियां आदि उत्पाद दिल्ली, चेन्नई, पुणे, हैदराबाद और कानपुर समेत अन्य शहरों में सप्लाई किये जाते हैं. गोबर से उत्पाद बनाने के लिए गोबर में मैदा लकड़ी, मिट्टी और ग्वारगम मिलाया जाता है. फिर सांचे में डालकर उत्पाद बनाये जाते हैं. डिमांड के अनुसार ही इन उत्पादों पर कलर भी किए जाते हैं.

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