जयपुर. स्किज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक रोग है, जो कि पूरी जनसंख्या के 1 प्रतिशत लोगों को प्रभावित करता है. इस रोग में मस्तिष्क में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के कारण रोगी के मन में एक भ्रम की अवस्था उत्पन्न हो जाती है, जिसमें रोगी के विचारों में विकार आ जाता है. स्किज़ोफ्रेनिया मरीज यह महसूस करने लग जाता है कि कोई उसके खिलाफ है, उसके विषय में बात कर रहे हैं. उसके विचारों पर बाहर से नियंत्रण किया जा रहा है. उसके विचार दूसरे लोगों को पता लग जाते हैं. या टेलीविजन, रेडियो के माध्यम से प्रसारित किए जा रहे हैं.
भ्रम की अवस्था में रोगी को काल्पनिक आवाजें सुनाई देती हैं. या उसको आवाज सुनाई देती है कि कोई उसके प्रति आक्रामक हो रहा है. संगीत या गाने सुनाई देते हैं. या मरीज को लगता है कि कोई उसके बारे में बातें कर रहे हैं, वह सुनाई देती है. उसको वास्तव में जो व्यक्ति नहीं है या जो चीज नहीं है वह दिखने लग जाती है. कभी-कभी ऐसा लगता है कि कोई उसको छू रहा है. इस तरह की काल्पनिक अनुभूति के कारण रोगी का व्यवहार बदल जाता है और वह इन सब अनुभवों को सही मानकर व्यवहार करता है. चूकि रोगी के लक्षण इस प्रकार के होते हैं, सामान्यजन इस बीमारी को भूत प्रेत ओपरा पराए की वजह से मानने लग जाते हैं.
गौतम हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर के डॉक्टर शिव गौतम डॉक्टर मनस्वी गौतम और डॉक्टर अनिता गौतम की ओर से 500 स्किज़ोफ्रेनिया के रोगियों पर किए गए शोध में यह देखने को मिला है कि विचार और अनुभूति की विकृति के कारण उनमें से 36 प्रतिशत रोगी बिल्कुल गुमसुम हो गए थे. 34 प्रतिशत रोगी उत्तेजना की अवस्था में आ गए थे और 30 प्रतिशत रोगियों में व्यवहार नियंत्रण करना मुश्किल हो गया था. उनमें ऊटपटांग बोलना दौड़ भाग करना आदि लक्षण पाए गए.
इन रोगियों के सभी रिश्तेदारों से पूछताछ करने पर यह पाया गया कि मात्र 16 प्रतिशत रोगी ही उपचार के लिए तुरंत अस्पताल लाए गए थे. शेष 84 प्रतिशत रोगी उपचार के लिए विलम्ब से 3 से 8 माह बाद लाए गए. विलम्ब से अस्पताल लाए जाने वाले रोगियों में 53 प्रतिहत लोग ग्रामीण परिवेश से और किसान थे. 16 प्रतिशत लोग शहरी इलाकों से थे. शेष 11 प्रतिशत नौकरीशुदा और 8 प्रतिशत अन्य थे. विलम्ब से चिकित्सा लेने वाले रोगियों में 68 प्रतिशत लोगों ने प्रारंभिक उपचार किसी तांत्रिक, देवता, मजार, मंदिर, पंडित या मौलवी से लिया था. 18 प्रतिशत रोगी आयुर्वेदिक चिकित्सकों के पास गए 8 प्रतिशत प्राकृतिक चिकित्सा करा रहे. 6 प्रतिशत यूनानी डॉक्टरों के पास चिकित्सा लेते रहे. अधिकांश रोगी उपरोक्त में से 2 या उससे अधिक के पास उपचार लेते रहे.
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85 प्रतिशत रोगियों को तो यह भी मालूम नहीं था कि इसका इलाज हो सकता है और कहां हो सकता है. जल्दी उपचार लेने वालों की तुलना विलम्ब से उपचार लेने वाले रोगियों में बीमारी अधिक गंभीर पाई गई और उनके उन्माद को ठीक करने वाली औषधियां भी अधिक मात्रा में दी गई. स्किज़ोफ्रेनिया के रोग में उपचार विलम्ब से कराने के कारण रोगियों में अधिक अक्षमता देखने को मिलती है. इस शोध के बाद डॉ. गौतम ने बताया कि यह स्पष्ट है स्किज़ोफ्रेनिया रोग उसके उपचार और मनोरोग चिकित्सा के विषय में लोगों को जानकारी अभी भी कम है, जबकि उपचार से स्किज़ोफ्रेनिया के रोगी ठीक हो जाते हैं और समाज में काम करने लायक हो जाते हैं. इसीलिए इस रोग के बारे में ज्यादा भ्रांतियों को दूर किया जाना चाहिए. कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए गौतम हॉस्पिटल की ओर से आने वाले सभी रोगियों को मास्क वितरित किये गए. साथ ही सामाजिक दूरी बनाए रखने और कोरोना नियमों का पालन करने की सलाह दी गई.