जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. वर्तमान में हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जोधपुर सहित जयपुर पीठ में कुल 5 लाख 91 हजार 647 मुकदमे लंबित चल रहे हैं. वहीं हाईकोर्ट में अब जस्टिस देवेंद्र कच्छावा के सेवानिवृत्त होने के बाद जजों की संख्या घटकर 25 ही रह गई है. यानी हाईकोर्ट के हर जज पर 23 हजार 665 मुकदमे निस्तारण करने का बोझ (Pending cases on each Rajasthan High court judges) है.
आज तक नहीं भरे स्वीकृत पद: हाईकोर्ट में वैसे तो जजों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 50 है, लेकिन आज तक प्रदेश की इस सर्वाेच्च अदालत के पूरे स्वीकृत पद कभी भरे ही नहीं गए (Vacant post of judges in Rajasthan High court) हैं. फिलहाल 50 में से आधे पद खाली ही चल रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि मुख्य न्यायाधीश का पद भी सीजे अकील कुरैशी के गत माह सेवानिवृत्त होने के बाद खाली पड़ा है. हालांकि व्यवस्था सुचारू रखने के लिए वरिष्ठतम जज एमएम श्रीवास्तव को बतौर एक्टिंग सीजे, सीजे का कार्यभार दे रखा है.
759 मुकदमों को 30 साल से न्याय का इंतजार: राजस्थान हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों की फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है. वहीं हाईकोर्ट में 759 मुकदमें ऐसे हैं, जो बीते 30 साल से भी अधिक अवधि से लंबित चले आ रहे हैं. इनमें 199 सिविल और शेष 560 केस आपराधिक प्रकृति के हैं. जयपुर मेट्रो प्रथम की अतिरिक्त मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट कोर्ट क्रम-4 में बनीपार्क थाने में वर्ष 1994 में दर्ज धोखाधड़ी के मामले में आरोप तय होने में 26 साल लग गए. मामले में 10 अप्रैल, 1996 को आरोप पत्र पेश हुआ था. वहीं मामले में गत माह अदालत ने एक आरोपी के खिलाफ आरोप तय किए हैं. इस आदेश के खिलाफ भी आरोपी ने रिवीजन याचिका पेश कर दी. ऐसे में इसकी सुनवाई में और देरी होने वाली है.
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हाईकोर्ट जता चुका है चिंता: लंबित मुकदमों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट भी कई बार चिंता जता चुका है. हाल ही में हाईकोर्ट के समक्ष 13 साल पुराने नरेगा कार्य में 8 हजार रुपए के गबन के मामले में आरोपियों पर आरोप तय नहीं होने का मामला आया था. हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि केस की सुनवाई जल्दी नहीं होना, संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन है. राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता राजकुमार गुप्ता का कहना है कि न्यायपालिका में जजों की संख्या काफी कम है. ऐसे में एक जज को रोजाना सैकड़ों मुकदमों की सुनवाई करनी पड़ती है. अदालतों में अवकाश भी काफी अधिक रहते हैं. जिसके चलते मुकदमों की सुनवाई में देरी हो रही है.