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राजस्थान : मूलभूत सुविधाएं तो दूर शव दफनाने के लिए भी नहीं मिल पा रही जमीन, अधिकार पाने के लिए कर रहे आंदोलन

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Published : Oct 5, 2021, 5:15 PM IST

प्रदेश की गहलोत सरकार एक ओर तो 'प्रशासन शहरों और गांवों के संग' चला रही है और लोगों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है. वहीं दूसरी ओर एक ऐसा वर्ग भी है जो आजादी के बाद से ही मूलभूत सुविधाओं के लिए तो मोहताज है ही, साथ ही शव दफनाने के लिए भी उसे जमीन नहीं मिल पाई है. हम बात कर रहे हैं घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू वर्ग की. यह वर्ग आज तक मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

nomadic tribes in rajasthan
शव को दफनाने के लिए भी नहीं मिल पा रही जमीन...

जयपुर. देश की आजादी के 75 साल बाद भी घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू वर्ग को अपना अधिकार आज तक नहीं मिला है. वर्तमान में यह वर्ग गहलोत सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहा है, ताकि कम से कम मूलभूत सुविधाएं तो इन्हें मिल जाए.

घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू एवं विमुक्त जाति परिषद के प्रदेश अध्यक्ष रतननाथ कालबेलिया ने कहा कि पूरे प्रदेश में 53 लाख घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू वर्ग के लोग रह रहे हैं और इन्हें मुख्यधारा में जुड़ने और मूलभूत सुविधाओं के लिए अभी तक कोई मौका नहीं मिला है.

शव को दफनाने के लिए भी नहीं मिल पा रही जमीन...

मूलभूत सुविधाएं तो दूर की बात है, अभी तक यह लोग अपनी स्थाई ठिकाने के लिए भी भटक रहे हैं. मरने के बाद अपने ही समुदाय के लोगों को दफनाने के लिए भी इन्हें जमीन नहीं मिल पाई, उसके लिए भी इस समुदाय के लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है. आए दिन इस समुदाय के लोगों का अधिकार छीना जा रहा है और इन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही.

रतननाथ ने बताया कि बागरिया समाज घुमंतू जाति से आता है और यह पहले एससी वर्ग में शामिल था, लेकिन इसे बाद में ओबीसी में शामिल किया गया. इसी तरह से भोपा समाज एससी में था, उसे भी ओबीसी में डाल दिया गया. इस तरह से घुमंतू जातियों के अधिकारों को छीना जा रहा है. उन्होंने कहा कि इन घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू जातियों में शिक्षा का अभाव है.

पढ़ें : प्रदर्शनकारी कांग्रेसियों पर कटारिया का कटाक्ष, कहा- राजनीति करने की बजाए घड़साना के किसानों के लिए आंसु बहा लें कांग्रेस नेता

सरकारी मशीनरी भी इस वर्ग तक नहीं पहुंच पा रही है. न तो इनका टीकाकरण हो पाता है और न ही इनके लिए किसी अस्पताल की व्यवस्था है. मुख्य गांव से इन बस्तियों की दूरी भी बहुत अधिक है, जिसके कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. रतननाथ कालबेलिया ने कहा कि घुमंतू, अर्द्ध घुमंतू जातियां चरागाह और वन भूमि आदि पर निवास करती है और उनके घर का रास्ता भी पगडंडी से होकर जाता है. सरकार पर निशाना साधते हुए रतननाथ ने कहा कि सरकार इस वर्ग को पट्टा देने, मुख्यमंत्री और पीएम आवास देने की घोषणा तो करता है, लेकिन वह घोषणा कागजों में ही दबकर रह जाती है. हमारे समाज की ऐसी एक भी बस्ती नहीं है, जहां सीसी रोड हो, पानी की व्यवस्था हो या अन्य कोई मूलभूत सुविधाएं हों.

पढ़ें : राजनीतिक पार्टियां किसानों को टूल बना रही हैंः गजेंद्र सिंह शेखावत

उन्होंने कहा कि 2 अक्टूबर से मैं खुद आमरण अनशन पर बैठा हुआ हूं. 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्मदिन था और महात्मा गांधी खुद कहते थे कि अंतिम पंक्ति में खड़े पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा में लाना ही गांधीवाद की निशानी है, लेकिन अभी तक हमारा समुदाय इससे पूरी तरह से पिछड़ा हुआ है. रतननाथ ने कहा कि हमारी मांगों को लेकर अभी तक सरकार की ओर से कोई ठोस समाधान नहीं हो पाया है. सरकार से मांग है कि हमारी समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान किया जाए, ताकि हम भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके.

जयपुर. देश की आजादी के 75 साल बाद भी घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू वर्ग को अपना अधिकार आज तक नहीं मिला है. वर्तमान में यह वर्ग गहलोत सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहा है, ताकि कम से कम मूलभूत सुविधाएं तो इन्हें मिल जाए.

घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू एवं विमुक्त जाति परिषद के प्रदेश अध्यक्ष रतननाथ कालबेलिया ने कहा कि पूरे प्रदेश में 53 लाख घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू वर्ग के लोग रह रहे हैं और इन्हें मुख्यधारा में जुड़ने और मूलभूत सुविधाओं के लिए अभी तक कोई मौका नहीं मिला है.

शव को दफनाने के लिए भी नहीं मिल पा रही जमीन...

मूलभूत सुविधाएं तो दूर की बात है, अभी तक यह लोग अपनी स्थाई ठिकाने के लिए भी भटक रहे हैं. मरने के बाद अपने ही समुदाय के लोगों को दफनाने के लिए भी इन्हें जमीन नहीं मिल पाई, उसके लिए भी इस समुदाय के लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है. आए दिन इस समुदाय के लोगों का अधिकार छीना जा रहा है और इन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही.

रतननाथ ने बताया कि बागरिया समाज घुमंतू जाति से आता है और यह पहले एससी वर्ग में शामिल था, लेकिन इसे बाद में ओबीसी में शामिल किया गया. इसी तरह से भोपा समाज एससी में था, उसे भी ओबीसी में डाल दिया गया. इस तरह से घुमंतू जातियों के अधिकारों को छीना जा रहा है. उन्होंने कहा कि इन घुमंतू-अर्द्ध घुमंतू जातियों में शिक्षा का अभाव है.

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सरकारी मशीनरी भी इस वर्ग तक नहीं पहुंच पा रही है. न तो इनका टीकाकरण हो पाता है और न ही इनके लिए किसी अस्पताल की व्यवस्था है. मुख्य गांव से इन बस्तियों की दूरी भी बहुत अधिक है, जिसके कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. रतननाथ कालबेलिया ने कहा कि घुमंतू, अर्द्ध घुमंतू जातियां चरागाह और वन भूमि आदि पर निवास करती है और उनके घर का रास्ता भी पगडंडी से होकर जाता है. सरकार पर निशाना साधते हुए रतननाथ ने कहा कि सरकार इस वर्ग को पट्टा देने, मुख्यमंत्री और पीएम आवास देने की घोषणा तो करता है, लेकिन वह घोषणा कागजों में ही दबकर रह जाती है. हमारे समाज की ऐसी एक भी बस्ती नहीं है, जहां सीसी रोड हो, पानी की व्यवस्था हो या अन्य कोई मूलभूत सुविधाएं हों.

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उन्होंने कहा कि 2 अक्टूबर से मैं खुद आमरण अनशन पर बैठा हुआ हूं. 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्मदिन था और महात्मा गांधी खुद कहते थे कि अंतिम पंक्ति में खड़े पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा में लाना ही गांधीवाद की निशानी है, लेकिन अभी तक हमारा समुदाय इससे पूरी तरह से पिछड़ा हुआ है. रतननाथ ने कहा कि हमारी मांगों को लेकर अभी तक सरकार की ओर से कोई ठोस समाधान नहीं हो पाया है. सरकार से मांग है कि हमारी समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान किया जाए, ताकि हम भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके.

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