जयपुर. वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण की वजह से एक साल पहले लगे लॉकडाउन ने जहां लोगों की परिवार के प्रति नजदीकियां बढ़ाई, तो इसका दूसरा बड़ा बदलाव यह भी देखा गया कि एकाकी जीवन जीने वाले लोगों का एनिमल्स के प्रति भी रुझान बढ़ा है. लोग अब अकेलापन को खत्म करने के लिए पालतू कुत्ते खरीद रहे है, कुत्ते कोई ऐसे वैसे नहीं, बल्कि एक से बढ़ कर एक विदेशी नेशल के, जिनकी कीमत जानकर भी आप चौकने रह जाओगे. ऐसे में फिर इनके खान-पान से लेकर साजसज्जा में भी कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही, जिसकी वजह से डॉग बाजार का कारोबार काफी फलफूल रहा है.
बदलती लाइफ स्टाइल में कुत्ते पालना आज के समय में एक शौक बन गया है. खासकर विदेशी नस्ल के कुत्तों को पालने का शौक काफी ज्यादा बढ़ गया है. अमूमन हर तीसरे घर में पालतू कुत्ते जरूर मिल जाएंगे. जिन्हें लेकर सुबह और शाम के समय घूमना लोगों की दिनचर्या में शामिल हो चुका है. यही नहीं लॉकडाउन के बाद तो अमूमन हर घर में पालतू कुत्ते नजर आने लगे है. जिससे पता चलता है कि, डॉग प्रेमी होना आज के समय में स्टेटस सिंबल भी बनता जा रहा है, तभी तो डॉग खरीदने से पहले कहा भी जाता है 'बच्चा इंसान का हो या फिर डॉग का, जिम्मेदारी बराबर है'.
जहां कोविड ने दुनिया को बहुत सारे पहलुओं से रूबरू करवाया है और कई लोगों के लिए ये समय बहुत खराब रहा है लेकिन अगर पालतू पशुओं की बात हो तो उनके लिए ये वक्त काफी अच्छा बीत रहा है. क्योंकि इस दौर में हर व्यक्ति को ये समझ आ गया कि उनकी लाइफ में डॉग होना कितना जरूरी है. इसी वजह से पालतू डॉग्स को गोद लेने की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और जयपुर भी इससे अछूता नहीं रहा है. प्रोटेक्शन ऑफ एनिमल्स एंड वेलफेयर सोसायटी के सेक्रेटरी वीरेन शर्मा ने बताया कि, अगर डॉग किसी के परिवार में आता है तो उस डॉग के खान-पान, साजसज्जा, वेक्सिनेशन, ट्रेनिंग, दवाइयां सहित अन्य चीजों की जरूरत पड़ती है. इसी से इस कारोबार से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिलता है.
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ऐसे में लॉकडाउन के बाद बहुत हद तक डॉग बाजार को काफी अच्छे स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है. यही नहीं, दर्जनों डॉग्स शो करवाने के बाद भी लोगों में जो जागरूकता नहीं आ सकी, वो कोविड ने हर किसी के दिल में ला दी है. वीरेन शर्मा बताते है कि, जयपुर के डॉग बाजार ने पिछले 20 सालों में पहली बार इतना उछाल लिया है. जब से उन्होंने डॉग बाजार शुरू किया है तब जयपुर में 100 परिवार के पास डॉग्स नहीं होते थे और अब 1 लाख से ज्यादा परिवार के पास डॉग्स है. तब ये इंडस्ट्री आइडेंटी का शिकार थी और आज यह है कि, जयपुर में ही सिर्फ 10 हजार लोगों को इसने रोजगार दे रखा है. यही नहीं पालतू कुत्तों को संवारने के लिए डॉग लवर्स बड़ी राशि भी खर्च करते है. जयपुर में भी पालतू जानवरों की देखभाल के लिए डॉग लवर नेल कटिंग, बेसिक बाथ, टूथ ब्रशिंग, हेयर-कट के लिए इन्हें सैलून ले जाते है. ताकि वो भी एक परिवार के सदस्य की तरह साफ सुथरा और अच्छा दिखें.
ज्यादातर घरों में डॉग्स ही पेट के तौर पर मिलते हैं, इनकी केयर करना भी मुश्किल हो जाता है. क्योंकि हर डॉग्स की अलग-अलग रिक्वायरमेंट होती है और इन्हें संभालने के लिए भी ओनर कॉन्फिडेंस होना चाहिए, जिसके लिए उन्हें पहले ट्रेनर की जरूरत पड़ती है. वैसे तो पमेलियन लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड, बुलडॉग, पग सहित कई नस्ल के एक से बढ़कर एक कुत्तों को ट्रेंड कर चुके डॉग एक्सपर्ट सुरेंद्र माल बताते है कि, वो 5 तरह की डॉग ट्रेनिंग करवाते है, जिसमें एक डॉग को ओबीडीयंट्स ट्रेंनिग में करीब 2 से 3 महीने का समय लगता है.
ओबीडीयंट्स में डॉग्स को उठाने-बैठने, नमस्ते करना, पेपर-कागज लाना और साथ-साथ चलना सिखाया जाता है. इसके अलावा अपने मालिक की हिफाजत कैसे की जाए उसके लिए उनको गार्ड डॉग ट्रेनिंग करवाई जाती है, जिसमें डॉग अपने मालिक को प्रोटेक्ट करता है. इसके अलावा एक शो ट्रेनिंग भी होती है, जिसमें डॉग शो में पार्टिसिपेट करने से लेकर शो बाइट करना सिखाया जाता है इसके लिए एक डॉग को ट्रेनिंग देने के लिए वो 6000 रुपये की फीस लेते है.
यूं तो लोग ज्यादातर ऐसे डॉग्स को पालना पसंद करते हैं जो इंसानों के साथ आराम से घुलमिल जाएं, जिसे ट्रेंड करने में भी आसानी हो और अपने मालिक के प्रति वफादार भी हों, उसके लिए मालिक उस पर हजारों-लाखों रुपये भी खर्ज कर सकते है.