जयपुर. यह तस्वीर गुलाबी नगरी जयपुर की है, यहां शहर के लोग ऊंचे-ऊंचे ख्वाब देखकर जीते हैं. लेकिन यहां मजदूर लॉकडाउन के दौरान रोटियों से ज्यादा कुछ नहीं सोच पा रहे हैं. कोरोना को हराने के लिए लॉकडाउन अनिवार्य है, लेकिन इसने गरीबों को दोहरी लड़ाई लड़ने पर विवश कर दिया है. पहला उसे संक्रमण से लड़ना है और दूसरा भूख से. ये वो बच्चे हैं जो शायद भूख से मचल उठे हैं और यहां लाइन लगने को मजबूर हैं. ऐसे एक नहीं, देशभर में लाखों बच्चे हैं, जो मां-बाप से सिर्फ कुछ खिलाने की बात कहते सुने जा सकते हैं.
कामकाज बंद हो जाने से मजदूरों के लिए रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. हालांकि सरकार और स्वयंसेवी संगठन लगातार इनके लिए रहने-खाने के प्रबंधों में लगी है. लेकिन दिक्कतें तब तक जारी रहेंगी, जब तक लॉकडाउन रहेगा.
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विद्याधर नगर इलाके का जायजा
लॉकडाउन के बाद जयपुर के प्रवासी मजदूरों को मिल रही भोजन की सुविधा का जायजा लेने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने शहर के विद्याधर नगर इलाके का रुख किया. इस दौरान पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत के स्मारक के पास बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने बच्चों के साथ बैठे हुए नजर आए.
नहीं नसीब हो रही एक वक्त की रोटी
प्रवासी मजदूरों से ईटीवी भारत की टीम ने बातचीत की तो पता चला कि ये सभी लोग नजदीकी फैक्ट्री एरिया में काम करते हैं और किसी समाजसेवी की तरफ से मिलने वाले खाने को लेने के लिए यहां पहुंचे हैं. इन लोगों का कहना था कि काम बंद होने के बाद कभी-कभी ऐसे हालात भी आते हैं कि उन्हें एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है.
दो वक्त की रोटी का जुगाड़ एक मुश्किल चुनौती
बता दें कि एक कतार में अपनी बारी का इंतजार कर रहे सभी लोग विभिन्न राज्यों और जिलों से जयपुर में कामकाज की तलाश में आए थे और फिर किसी कारखाने में नौकरी करने लगे. जब कोरोना वायरस को रोकने के लिए एहतियात के तौर पर पूरे देश में आवाजाही पर ब्रेक लगाया गया, तब इन लोगों की फैक्ट्री में कामकाज भी बंद हो गया. ऐसे हालात में बिना किसी पूर्व सूचना के काम बंद होने से इन लोगों को मार्च महीने का भी पूरा भुगतान नहीं मिल पाया. लिहाजा इनके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ एक मुश्किल चुनौती से कम नहीं रहा.
दाने-दाने को मोहताज
ऐसे हालात में रोटी का जुगाड़ करने के लिए यह लोग अब सामाजिक संगठनों के आश्रय में हैं, जो तय वक्त पर आकर इनको और इनके परिजनों के लिए भोजन का इंतजाम करते हैं. लोगों के मुताबिक शुरुआत में उन्होंने कच्चे राशन के लिए सरकारी हेल्पलाइन पर फरियाद भी लगाई थी, लेकिन शिकायत दर्ज होने के बाद अब तक उस पर अमल नहीं हो पाया है. ऐसी स्थिति में यह लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए.
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श्रमिकों की दास्तां कर रही सरकार के दावों को कमजोर
बता दें कि इस इलाके में कोई अपने बूढ़े पिता के साथ खाना लेने पहुंचा है तो कोई मासूम बेटे को साथ लेकर आया ताकि परिवार के सब लोग मिल कर पेट भर ले. जयपुर के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद इन श्रमिकों की दास्तां सरकार के दावों को फिर से कमजोर साबित करती है, जिसमें इस बात का भरोसा भी दिलाया गया था कि फैक्ट्री बंद होने के बावजूद पूर्व के भुगतान के साथ-साथ मजदूर अग्रिम भुगतान भी ले पाएंगे.
घर जाने की फरियाद
साथ ही यह भी भरोसा दिलाया गया था कि सरकार मुश्किल हालात में खाने के पैकेट देने के साथ-साथ कच्चे राशन का भी ऐसे लोगों की बस्तियों में इंतजाम करेगी. कहा गया था कि जो लोग परेशानी से दो-चार हो रहे हैं, उनके लिए फिर सरकारी हेल्पलाइन कारगर साबित होगी. लेकिन यह सब दावे इन लोगों की बातों में साफ होता है कि पूरे नहीं हो रहे हैं और इन लोगों के लिए दिन काटना भी मुश्किल हो चला है. ऐसे में इनमें से कुछ लोग यह फरियाद भी कर रहे हैं कि अगर उन्हें घर जाने को मिल जाए तो अच्छा हो वरना सरकार उन्हें काम दिला दें और उनका गुजारा भी खुद कर लेंगे.