जयपुर. वायु प्रदूषण और कोरोना संक्रमण का हवाला देते हुए दिवाली के त्योहार पर आतिशबाजी बैन कर दी गई थी. लेकिन राजस्थान सरकार ने इस आदेश में संशोधन करते हुए पटाखे चलाने की अनुमति दे दी है. शर्त ये है कि आतिशबाजी निश्चित समय पर ग्रीन पटाखों से ही की जाए.
नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने तय सीमा में आवाज और धुएं वाले पटाखों को तैयार करने के लिए फार्मूला विकसित किया है. जिसे देश में रजिस्टर्ड 785 पटाखा बनाने वाली फैक्ट्रियों को उपलब्ध कराया गया है. इनमें से 90 फ़ीसदी फैक्ट्री शिवाकाशी में मौजूद हैं. 9 फैक्ट्री राजस्थान में हैं. जानकारों के अनुसार ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है.
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इनमें रोशनी करने वाले पटाखों में 32% पोटेशियम नाइट्रेट 40% एलुमिनियम पाउडर 11% एलुमिनियम टिप्स और 17% प्रोप्रिएट्री एडिटिव का उपयोग किया जाता है. वहीं आवाज करने वाले पटाखों में 72% प्रोप्रिएट्री एडिटिव, 16% पोटेशियम नाइट्रेट ऑक्सिडाइजर 9% एलुमिनियम पाउडर और 3% सल्फर का उपयोग होता है. सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 प्रतिशत तक कम हानिकारक गैसें पैदा होती हैं. इस तरह सामान्य पटाखों के मुकाबले ये पटाखे प्रदूषण भी आधा ही फैलाते हैं.
सामान्य पटाखों और ग्रीन पटाखों में अंतर
ग्रीन पटाखों के ऊपर ग्रीन फायरवर्क्स csir-neeri इंडिया का मोनोग्राम लगाया गया है. ग्रीन पटाखों के पैकेट पर साफ शब्दों में now green revolution भी लिखा होता है. सामान्य पटाखों और ग्रीन पटाखों के दामों में करीब 5 से 10% का अंतर होता है. यानी सामान्य पटाखे के मुकाबले ग्रीन पटाखा कुछ महंगा होगा. मान लीजिये की एक सामान्य अनार 50 रुपये का है तो उसी आकार का ग्रीन अनार 55 या 60 रुपये का होगा. व्यापारियों का कहना है कि छोटे ग्रीन पटाखों की कीमत तो सामान्य पटाखों जितनी ही है. बड़े ग्रीन पटाखे 5-10 फीसदी महंगे हैं.