World Cycle Day 2021 : आज हम विश्व साइकिल दिवस मना रहे है. विश्व साइकिल दिवस मनाए जाने के लिए अमेरिका के मोंटगोमेरी कॉलेज के प्रोफेसर लेस्जेक सिबिल्सकी और उनकी सोशियोलॉजी की कक्षा ने याचिका दी थी. जिसके बाद प्रोफेसर सिबिल्सकी और उनकी कक्षा ने सोशल मीडिया के जरिए इसका काफी प्रचार किया था. फलस्वरूप 3 जून को विश्व साइकिल दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया.
2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी. संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहला आधिकारिक विश्व साइकिल दिवस परिवहन एक सरल, किफायती, भरोसेमंद, स्वच्छ और पर्यावरणीय रूप से फिट टिकाऊ साधन को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया गया था. इसका उद्देश्य दैनिक जीवन में साइकिल के उपयोग को लोकप्रिय बनाना है.
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पहले जानते हैं साइकिल का इतिहास (History of Cycle)
साइकिल का इतिहास कई साल पुराना है. सन् 1418 में चार पहिया की लकड़ी की साइकिल का ईजाद हुआ था, लेकिन 400 साल तक इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. 1813 में ड्रेस नी ने चार पहिये वाली साइकिल को बदलकर उसे दो पहिये वाली साइकिल में तब्दील कर दिया. अविष्कार काफी लोकप्रिय हुआ साइकिल का निर्माण तो कर दिया था लेकिन साइकिल को पैरों से थकेलना पड़ता था, जो काफी थका देने वाला होता था.
क्या है साइकिल पोलो (Cycle Polo)
बहुत कम लोग जानते हैं कि एक वक्त पोलो साइकिल पर भी खेला जाता था, पर अब बदलते वक्त और आधुनिकता ने साइकिल के महत्व को कम कर दिया है. 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी लेकिन राजस्थान में लुप्त होती साइकिल को बचाने की कवायद पहले ही शुरू हो चुकी थी. प्रदेश की नूपुर संस्था और अन्य फेडरेशन के जरिए राज्य में वर्षों से साइकिल पोलो का आयोजन किया जा रहा है.
कैसे खेली जाती है साइकिल पोलो
इस खेल के लिए गेंद के आलावा सिर्फ सामान्य साइकिल और पोलो स्टिक की जरूरत है जिसकी कीमत कम होती है. इस खेल में साइकिल चलाते हुए गेंद को उसके लक्ष्य तक पहुंचाना होता है.
आयरलैंड से हुई थी शुरूआत
साइकिल पोलो पहले राजाओं महाराजाओं के वक्त खेला जाता था. जयपुर के महाराजा तो साइकिल पोलो में ट्रॉफी तक जीत कर आते थे. साइकिल पोलो खेल 1891 में आयरलैंड में शुरू हुआ और इसकी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता आयरलैंड और इंग्लैंड के बीच 1908 में हुई थी.
भारत में साइकिल पोलो का इतिहास
भारत में साइकिल पोलो का शुभारंभ पोलो से हुआ. जयपुर, जोधपुर, बारिया, कपूरथला, कूचबिहार, पटियाला जैसे राजघरानों और डिफेंस के हॉर्स पोलो खिलाड़ियों ने गर्मी के मौसम में अपने आप को शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रखने के लिए साइकिल पोलो खेलना शुरू किया. क्योंकि अप्रैल से जुलाई के महीनों में हॉर्स पोलो का अभ्यास संभव नहीं है. कहा जाता है कि यहां आज भी गर्मी के मौसम में भारतीय सेना के हॉर्स पोलो खिलाड़ी साइकिल पोलो का अभ्यास करते हैं.
नुपूर संस्था के अध्यक्ष मनोज भरद्वाज बताते हैं कि साइकिल पोलो फेडरेशन ऑफ इंडिया की स्थापना 1966 में हुई. लेकिन वक्त के साथ साइकिल पोलो के प्रति लोगों का रुझान भी कम होता चला गया और साइकिल का चलन मौजूदा आधुनिक संसाधनों के आने से खत्म होने लगा. इसलिए 5 से 6 साल पहले लुप्त होती साइकिल हैरिटेज को बचाने के लिए पोलो साइकिल और साइकिल मैराथन शुरू किया था. जो निरंतर जारी है. इससे ना केवल साइकिल के खेलों को जीवंत किया गया, बल्कि इसे इतिहास से भी जोड़ कर रखा है.
साइकिल से बढ़ेगी इम्यूनिटी (Health Benifits)
- कोरोना महामारी में इम्यूनिटी बढ़ाने की बात कही जा रही है. ऐसे में अगर साइकिल के उपयोग को अनिवार्य कर दिया जाए और खेलों में साइकिल को बढ़ावा दिया जाए तो लोगों के स्वास्थ्य में काफी सुधार देखने को मिलेगा.
- साइकिल परिवहन का स्वच्छ और सस्ता माध्यम है. इससे किसी भी किस्म का पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता है और यह फिटनेस की दृष्टि से भी उपयोगी है. इससे देशों को कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में सहायता मिलती है.
- साइकिलिंग करना एक्स्ट्रा कैलोरी (Extra Fat) को बर्न करने में मदद करता है.
- डॉक्टर्स का मानना है कि रोजाना 30 मिनट तक साइकिल चलाना सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है.
- बाहरी देशों के कई राज्यों में साइकिल का उपयोग अनिवार्य है. ऐसे ही भारत में भी इसके अधिक से अधिक इस्तेमाल पर जोर देना चाहिए.
- नीदरलैंड में 40% लोग उपयोग करते हैं साइकिल
- एक रोचक तथ्य के अनुसार एम्स्टर्डम नीदरलैंड की राजधानी में 40% लोग काम पर जाने के लिए साइकिल का उपयोग करते हैं. यह संख्या विश्व में सर्वाधिक है.