जयपुर. हर साल 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करना है. यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह लिंग-आधारित चुनौतियों को समाप्त करता है. जिसका सामना दुनिया भर में लड़कियां करती हैं, जिसमें बाल विवाह, उनके प्रति भेदभाव और हिंसा शामिल है. लेकिन क्या राजस्थान में बालिकाएं सशक्त हैं, क्या उनके सर्वांगीण विकास पर ध्यान दिया जा रहा है. जानिए इस रिपोर्ट में....
'अब हमारा समय है हमारे अधिकार हमारा भविष्य': आज यानी 11 अक्टूबर को हम ‘इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे’ मना रहे हैं. पूरी दुनिया में बच्चियों के कई मुकाम और उनके तय किये तय किए गए आयामों की चर्चा की जा रही है. इस वर्ष बालिका दिवस की थीम 'अब हमारा समय है हमारे अधिकार हमारा भविष्य' रखी गई है. राजस्थान में बालिकाओं की स्थिति पर बात करते हुए निशा सिद्धू ने बालिकाओं के अधिकारों पर चिंता जाहिर की है.
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा सवाल है बालिकाओं के सर्वांगीण विकास का. शिक्षा का जो ड्रॉपआउट का स्तर है, उस पर फोकस नहीं हो रहा है. बालिकाओं ने अगर स्कूल छोड़ दिया तो किन कारणों से छोड़ा है, उस को लेकर कोई भी चर्चा नहीं है. निशा सिद्धू ने कहा कि सबसे ज्यादा जरूरी है परिवार के अंदर समानता हो. क्योंकि आज भी देखा जाए तो परिवार में बालिकाओं के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा में दोहरा व्यवहार किया जाता है. बालिकाओं की तुलना में बेटों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है.
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हर चौथा विवाह बाल विवाह: राजस्थान में हर चौथी बच्ची का 18 साल से कम उम्र में विवाह हो जाता (Girl Child marriage in Rajasthan) है. चौंकाने वाले ये तथ्य नेशनल फैमेली हेल्थ सर्वे में सामने आए हैं. यह सर्वे बच्चों और महिलाओं में शिक्षा सहित कई बातों पर किया गया है. यह रिपोर्ट 2019-21 के मध्य की है. रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 2019-21 के मध्य 25.4% महिलाओं का बाल विवाह हुआ. यानी विवाह के समय उनकी उम्र 18 साल से कम थी. शहर की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति ज्यादा खराब है. शहरी क्षेत्रों में यह 15.1% और ग्रामीण क्षेत्रों में 28.3% तक रहा.
प्रदेश में बाल विवाह के साथ एक और गंभीर बात यह है कि बाल विवाह के बाद में 3.7 प्रतिशत लड़कियां 15 से 19 साल की उम्र में ही मां बन जाती हैं. इनमें ग्रामीण क्षेत्र में स्थिति शहरों से अधिक भयावह है. शहरी क्षेत्र में 1.8 प्रतिशत लड़कियां 15 से 19 साल के बीच में ही मां बनती हैं. दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में 4.2 प्रतिशत लड़कियां 15 से 19 साल में मां बनने का भी बोझ उठाने को विवश हो जाती हैं.
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सामाजिक कार्यकर्ता लता सिंह कहती हैं कि मुझे लगता है कि बालिकाओं के विकास के लिए या उनके अधिकारों के लिए किसी भी एक अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का इंतजार नहीं करना चाहिए. हर दिन बालिकाओं के विकास के लिए काम करना चाहिए. जहां तक राजस्थान में बालिकाओं के विकास की बात करते हैं हम देखते हैं कि सामाजिक बुराई के रूप से आज भी राजस्थान में हर चौथा विवाह नाबालिग बालिकाओं का हो रहा है. वे नाबालिग लड़कियां मां भी बन रही हैं. बालिका ड्रॉपआउट आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है.
रिपोर्ट बताती है कि दसवीं के बाद में बालिकाओं को शिक्षा से दूर कर दिया जाता है. राइट टू च्वाइस की बात करें तो आज भी बच्चियों को उनके पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं है. यहां तक कि बालिकाओं की सुरक्षा को लेकर भी सरकार के पास में कोई मापदंड नहीं है. हम लगातार मांग करते हैं कि राइट टू च्वाइस के तहत शादी करने वाले बालिकाओं को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए सेल्टर होम होना चाहिए, लेकिन आज भी नहीं है. जिसका नतीजा ये है कि ऑनर किलिंग की घटनाएं लगातार सामने आरही हैं.
बालिका दुष्कर्म में नम्बर वन: देश और प्रदेश में नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ी हैं. आंकड़े बताते हैं कि दुष्कर्म की घटनाओं में देश में हर दूसरी और राजस्थान में हर तीसरी पीड़ित नाबालिग (Rape cases in Rajasthan) है. देश में दुष्कर्म के कुल मामले 85551 दर्ज हुए, जिसमें 56907 मामले नाबालिग बच्चियों के हैं. इसी तरह से राजस्थान की बात करें तो 6938 मामले दुष्कर्म के कुल दर्ज हुए, जिसमें 2102 मामले नाबालिग बच्चियों के हैं. आंकलन के मुताबिक लगभग 90 प्रतिशत मामलों में आरोपी पीड़ितों का परिचित होता है, जिसमें परिवार के सदस्य, दोस्त, सह जीवनसाथी, कर्मचारी या अन्य शामिल हैं. प्रदेश में स्कूल कैम्पस में भी बच्चियों के साथ दुष्कर्म के आंकड़ों ने पेरेंट्स की चिंता बढ़ा दी है.
सामाजिक कार्यकर्ता मनीषा सिंह ने कहा कि प्रदेश की बालिकाओं का अभी भी वही हाल है, जो पहले था. हम यह भी कह सकते हैं कि कुछ मामलों में पहले की तुलना ने बच्चियों का बचपन और बदतर होते जा रहा है. एक तरफ तो हम लाड़लियों के विकास की बातें करते हैं, उन्हें हर सुविधा देने की बात करते हैं, लेकिन आज उनकी स्थिति चिंताजनक है. घर, स्कूल, गलियों और धार्मिक स्थलों में भी आज दरिंदे उन पर नजर गड़ाए हैं. न जाने कितनी ही बच्चियां खुद के लड़की होने को कोसती होंगी, घुटन की जिंदगी जीती होंगी. ऐसे में आज हम बात करते हैं बालिका शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा की, तो यह बड़ी बेईमान की बात है. क्योंकि राजस्थान में बालिकाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में किस तरह से नाबालिग बच्चियों के साथ सबसे ज्यादा दुष्कर्म की घटना हो रही हैं. शिक्षा के मंदिर में बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं.
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मनीषा ने कहा कि खास बात है कि एक औरत को भी एक बेटी को जन्म देने का अधिकार नहीं है. जब बेटियों को जन्म लेने का अधिकार नहीं है तो सर्वागीण विकास और संरक्षण की कहां बात की जाए. उन्होंने कहा कि आज बालिका के विकास पर बात हो रही है, लेकिन ये सोचना होगा कि हमें 1 दिन के बालिकाओं के लिए बात नहीं कर सकते, बल्कि हर दिन प्रयास करना होगा. सरकार इस पर गंभीरता से काम करेगी.
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योजनाएं अच्छी, लेकिन धरातल पर फेल: सामाजिक कार्यकर्ता और डॉक्टर अनुपना सोनी कहती हैं कि राजस्थान सरकार ने कई सारी योजनाएं बालिकाओं के विकास के लिए चला रखी (Government schemes for girls in Rajasthan) हैं. जिसमें राजश्री योजना, उड़ान योजना, शिक्षा सेतु योजना शामिल है, लेकिन ये योजनाएं जब तक सही तरीके से धरातल पर नहीं उतारी जाएंगी, तब तक इसका लाभ बालिकाओं को नहीं मिलेगा.
बालिकाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उड़ान योजना शुरू की गई, लेकिन आज भी बालिकाओं तक यह सेनेटरी पैड नहीं पहुंच पा रहे हैं. जो दिए जा रहे हैं उनकी गुणवत्ता की खामियां सामने आ रही हैं. जिससे बालिकाओं के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है. मुझे लगता है कि योजनाओं को ढंग से इंप्लीमेंट करने की जरूरत है. योजनाएं भले ही अच्छी हों, लेकिन जब तक वह धरातल पर नहीं पहुंचेगी, जब तक उसका लाभ नहीं मिलेगा.