जयपुर. साल 2019 यूं तो राजस्थान में कई बड़े सियासी घटनाक्रम के लिए याद रखा जाएगा. लेकिन प्रमुख विपक्षी दल भाजपा में नया साल कई बड़े बदलाव के लिए याद रखा जाएगा. राजस्थान भाजपा के नजरिए से 2019 में हुए बड़े घटनाक्रम और बदलाव कुछ इस तरह हैं.
आरएलपी और भाजपा के गठबंधन ने सबको चौंकाया...
साल 2019 में प्रदेश की राजनीति में सबसे चौंकाने वाला यदि कोई घटनाक्रम हुआ तो वह था, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच गठबंधन. अप्रैल 2019 में हनुमान बेनीवाल की आरएलपी और भाजपा से गठबंधन प्रदेश नेतृत्व की मर्जी से नहीं, बल्कि केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर हुआ था. इसमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे किराए को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया. राजस्थान में विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए बनाए गए प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर की इस गठबंधन में अहम भूमिका रही. गठबंधन के तहत राजस्थान में नागौर लोकसभा की सीट भाजपा ने आरएलपी को दी. जहां हनुमान बेनीवाल चुनाव लड़े और सांसद भी बने.
विधानसभा चुनाव हार का जख्म भरा लोकसभा चुनाव की जीत...
विधानसभा चुनाव के 6 माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में राजस्थान भाजपा को ऐतिहासिक सफलता मिली. प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से 24 पर भाजपा की जीत हुई, जबकि एक सीट नागौर पर भाजपा गठबंधन के तहत उतरे आरएलपी प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल ने विजय परचम लहराया.
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मोदी मंत्री परिषद में मिली राजस्थान के तीन सांसदों को जगह...
मई 2019 के अंत में राजस्थान के 3 सांसदों को मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली इसमें जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को मोदी कैबिनेट में जल शक्ति मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. वहीं बीकानेर से भाजपा सांसद अर्जुन राम मेघवाल और बाड़मेर सांसद कैलाश चौधरी को भी मंत्रिपरिषद में स्थान दिया गया. राजस्थान के कोटा से भाजपा सांसद ओम बिरला को भी लोकसभा अध्यक्ष पद पर निर्वाचित कर राजस्थान का सम्मान बढ़ाया गया.
नेता प्रतिपक्ष बने गुलाब चंद कटारिया, राठौड़ बने उपनेता...
दिसंबर 2018 में विधानसभा चुनाव हार कर विपक्ष में आई भाजपा के लिए के लिए यह तय करना था कि अब 15वीं विधानसभा में भाजपा विधायकों का नेता कौन होगा. इसको लेकर लंबी कवायद भी चली जो जनवरी में पूरी हुई. जनवरी 2019 के दौरान वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया को नेता प्रतिपक्ष और विधायक और पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ को प्रतिपक्ष के उपनेता की जिम्मेदारी सौंपी गई.
तत्कालिक बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी का हुआ निधन...
साल 2019 प्रदेश भाजपा ने अपने तत्कालिक पार्टी प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी को भी खो दिया. 24 जून 2019 को बीमारी के चलते मदन लाल सैनी का दिल्ली एम्स में निधन हो गया. सैनी 1 साल पहले जून 2018 में ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने थे और वे राजस्थान से राज्यसभा के सांसद भी थे. सैनी के निधन पर शोक व्यक्त करने खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट भाजपा से अलग हुए नेता घनश्याम तिवाड़ी के साथ ही गहलोत कैबिनेट के कई मंत्री भी प्रदेश भाजपा मुख्यालय पहुंचे.
उपचुनाव में हार का लगा झटका...
साल 2019 में राजस्थान में विपक्ष की भूमिका में पहुंची भाजपा को पहला बड़ा झटका 2 सीटों पर हुए उपचुनाव में लगा नागौर की खींवसर सीट आरएलपी को गठबंधन के तहत भाजपा ने दे दी थी. वहीं मंडावा सीट पर भाजपा प्रत्याशी चुनाव हार गई. यह सीट पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के कब्जे में ही थी. लेकिन लोकसभा चुनाव में विधायक नरेंद्र कुमार के सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हो गई थी, जिसे उपचुनाव में बीजेपी ने गंवा दिया. अब मंडावा में कांग्रेस की रीटा चौधरी विधायक हैं. वहीं खींवसर विधानसभा उपचुनाव में आरएलपी बीजेपी गठबंधन से उतारे गए आरएलपी प्रत्याशी नारायण बेनीवाल ने जीत दर्ज की.
49 निकायों के चुनाव में भाजपा रही पीछे...
साल 2019 के नवंबर में हुए 49 निकायों के चुनाव में भी भाजपा कांग्रेस से पिछड़ गई. चुनाव में महज 13 निकायों में ही बीजेपी वोट बनाने में सफल रहे पाई, जबकि कांग्रेस ने 35 निकायों में अपना वोट बनाया. एक निकाय में निर्दलीय अध्यक्ष बना, जो बाद में कांग्रेस के पाले में चला गया.
सतीश पूनिया बने भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष...
तत्कालिक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी के निधन के बाद खाली हुए पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के पद को आमेर विधायक सतीश पूनिया ने संभाला. सितंबर में पूनिया को मनोनीत प्रदेश अध्यक्ष बनाया और दिसंबर के अंत में वे निर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष बन गए. पूनिया जाट समाज से आते हैं और संघनिष्ठ भाजपा नेता माने जाते हैं.
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वसुंधरा राजे की अघोषित नाराजगी रही चर्चा में...
साल 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कि संगठन से नाराजगी चर्चाओं में रही. हालांकि यह नाराजगी खुलकर तो बयां नहीं की गई, लेकिन समय-समय पर वसुंधरा राजे ने बिना कुछ कहे अपनी नाराजगी का एहसास पार्टी को दिला ही दिया. फिर चाहे मंडावा और खींवसर विधानसभा उपचुनाव में प्रचार का मामला हो या निकाय चुनाव में सक्रियता का. दोनों ही प्रमुख चुनाव में वसुंधरा राजे राजस्थान की राजनीति और संगठन के अभियानों से नदारद ही नजर आईं. मनोनीत प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की ताजपोशी समारोह में वसुंधरा राजे नहीं आईं. वहीं पूनिया के निर्वाचन के दौरान भी वसुंधरा राजे की गैर मौजूदगी चर्चा का विषय बनी रही.