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26 मई को किसान संगठनों के काला दिवस मनाने की घोषणा पर बिफरे कटारिया, किसान संगठनों और विपक्षी दलों पर जमकर बरसे

26 मई को किसान संगठनों ने केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में काला दिवस मनाने की घोषणा की है, जिस पर विपक्षी दलों ने भी समर्थन दिया है. इसको लेकर राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने किसान संगठनों और विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा है.

Gulabchand Kataria Statement, Leader of Opposition Gulabchand Kataria
26 मई को किसान संगठनों के काला दिवस मनाने की घोषणा पर बिफरे कटारिया
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Published : May 24, 2021, 2:31 PM IST

जयपुर. केंद्रीय कृषि कानून के खिलाफ आंदोलनरत किसान संगठनों द्वारा आगामी 26 मई को काला दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया है. वहीं कुछ विपक्षी दलों ने इसका समर्थन भी किया है, जिस पर नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने जमकर जुबानी हमला बोला है. कटारिया ने कहा ना तो मंडिया बंद हुईं और ना एमएसपी पर वस्तुओं की खरीद. फिर क्यों काला दिवस मनाया जा रहा है.

26 मई को किसान संगठनों के काला दिवस मनाने की घोषणा पर बिफरे कटारिया

कटारिया ने एक बयान जारी कर कहा कि जब केंद्र सरकार ने ये तीनों ही कृषि कानून पास किए थे, तब कुछ किसान संगठनों ने और राजनीतिक दलों के नेताओं ने आरोप लगाया कि इससे मंडिया समाप्त हो जाएंगी. एमएसपी पर खरीद समाप्त हो जाएगी, लेकिन 6 माह बाद भी ना तो मंडिया समाप्त हुईं और ना एमएसपी पर खरीद पर इसका कोई असर हुआ, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 22 फसलों का समर्थन मूल्य दिया जाना घोषित किया और आवश्यकतानुसार उसकी खरीद भी की, जबकि कांग्रेस राज में कुछ ही फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीद होती थी.

पढ़ें- महिला एवं बाल विकास मंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए दी 3 एम्बुलेंस

गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि काला दिवस क्यों मनाया जा रहा है, जबकि किसान सम्मान निधि की राशि 10 करोड़ 50 लाख किसानों के खातों में 8 किस्तों में सीधी ही जमा कराई जा चुकी है. नेता प्रतिपक्ष अनुसार केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में खाद सब्सिडी को बढ़ाया और डीएपी पर मिलने वाला अनुदान 500 प्रति बोरी से बढ़ाकर 1200 रुपये प्रति बोरी कर दिया. फिर भी कुछ किसान संगठन और विरोधी दलों के नेता काला दिवस मनाने की बात कहते हैं.

कटारिया ने कहा कि यह किसान संगठन और विपक्षी दल के लोग कृषि कानून की नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिलाफत करते हैं, क्योंकि कांग्रेस शासित राज्यों के किसानों को अब तक वहां की सरकार है. केंद्र की कृषि नीतियों का लाभ नहीं दे पा रहे. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि इस प्रकार की किसान संगठनों और राजनीतिक दलों के लोगों के कृत्यों को बेनकाब करना चाहिए, ताकि भविष्य में यह राजनीतिक दल किसानों के बहाना लेकर अपना राजनीतिक हित ना साध सकें.

जयपुर. केंद्रीय कृषि कानून के खिलाफ आंदोलनरत किसान संगठनों द्वारा आगामी 26 मई को काला दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया है. वहीं कुछ विपक्षी दलों ने इसका समर्थन भी किया है, जिस पर नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने जमकर जुबानी हमला बोला है. कटारिया ने कहा ना तो मंडिया बंद हुईं और ना एमएसपी पर वस्तुओं की खरीद. फिर क्यों काला दिवस मनाया जा रहा है.

26 मई को किसान संगठनों के काला दिवस मनाने की घोषणा पर बिफरे कटारिया

कटारिया ने एक बयान जारी कर कहा कि जब केंद्र सरकार ने ये तीनों ही कृषि कानून पास किए थे, तब कुछ किसान संगठनों ने और राजनीतिक दलों के नेताओं ने आरोप लगाया कि इससे मंडिया समाप्त हो जाएंगी. एमएसपी पर खरीद समाप्त हो जाएगी, लेकिन 6 माह बाद भी ना तो मंडिया समाप्त हुईं और ना एमएसपी पर खरीद पर इसका कोई असर हुआ, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 22 फसलों का समर्थन मूल्य दिया जाना घोषित किया और आवश्यकतानुसार उसकी खरीद भी की, जबकि कांग्रेस राज में कुछ ही फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीद होती थी.

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गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि काला दिवस क्यों मनाया जा रहा है, जबकि किसान सम्मान निधि की राशि 10 करोड़ 50 लाख किसानों के खातों में 8 किस्तों में सीधी ही जमा कराई जा चुकी है. नेता प्रतिपक्ष अनुसार केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में खाद सब्सिडी को बढ़ाया और डीएपी पर मिलने वाला अनुदान 500 प्रति बोरी से बढ़ाकर 1200 रुपये प्रति बोरी कर दिया. फिर भी कुछ किसान संगठन और विरोधी दलों के नेता काला दिवस मनाने की बात कहते हैं.

कटारिया ने कहा कि यह किसान संगठन और विपक्षी दल के लोग कृषि कानून की नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिलाफत करते हैं, क्योंकि कांग्रेस शासित राज्यों के किसानों को अब तक वहां की सरकार है. केंद्र की कृषि नीतियों का लाभ नहीं दे पा रहे. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि इस प्रकार की किसान संगठनों और राजनीतिक दलों के लोगों के कृत्यों को बेनकाब करना चाहिए, ताकि भविष्य में यह राजनीतिक दल किसानों के बहाना लेकर अपना राजनीतिक हित ना साध सकें.

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