जयपुर. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की सदस्य अंजना पंवार सफाई कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान के लिए स्वायत्त शासन विभाग पहुंची, लेकिन यहां डीएलबी डायरेक्टर के मौजूद नहीं होने के चलते नाराज होकर लौटी. उन्होंने स्टेट प्रोटोकॉल की पालना नहीं होने का आरोप लगाते हुए आयोग और केंद्र सरकार को पत्र लिखकर शिकायत करने की बात कही.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने सफाई कर्मचारियों का मेडिकल इंश्योरेंस कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाए जाने और सफाई कर्मचारियों की भर्ती में एकरूपता लाने के लिए सभी वर्गों की भर्ती किए जाने की वकालत की. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि वाल्मीकि समाज के अलावा अन्य वर्ग के लोग दूसरी शाखाओं में लगने के बजाए सफाई कार्य ही करें.
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कमीशन और स्टेट प्रोटोकॉल का उल्लंघन
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की सदस्य अंजना पंवार ने बताया कि शुक्रवार को होने वाली बैठक को उन्होंने स्वयं रद्द किया है क्योंकि जिनके साथ मीटिंग करने आए थे वही मौजूद नहीं थे तो वार्ता किससे करते. पूरे राजस्थान के कर्मचारी यूनियन लीडर यहां पहुंचे. यदि डीएलबी डायरेक्टर को बाहर जाना था तो पूर्व में जानकारी दी जा सकती थी. इससे पहले भी डीएलबी को कई पत्र लिखे गए हैं, लेकिन आज तक उसका जवाब नहीं दिया गया.
पंवार ने बताया कि मजबूरन यहां मीटिंग ऑर्गेनाइज की गई. ये कार्यक्रम 28 जुलाई को निर्धारित हो गया था बावजूद इसके सूचना नहीं दी गई. ये कमीशन और स्टेट प्रोटोकॉल दोनों का उल्लंघन है. इस संबंध में केंद्र सरकार को भी शिकायत पत्र लिखा जाएगा. यहां अजमेर में अटकी 180 सफाई कर्मचारियों की भर्ती के मामले को लेकर भी चर्चा की जानी थी.
सफाई कर्मचारियों का हो ग्रुप इंश्योरेंस
पंवार ने कहा कि वैसे तो सफाई कर्मचारियों का हर महीने चेकअप होना चाहिए, लेकिन कम से कम क्वार्टरली हेल्थ चेकअप की तो व्यवस्था होनी ही चाहिए. अमूमन होता है कि साल भर में भी इनका चेकअप नहीं होता. जिस तरह का जोखिम भरा इनका काम होता है उसमें कई बीमारियां उनके शरीर में चली जाती हैं. यही वजह है कि कम से कम क्वार्टरली चेकअप होना ही चाहिए. उन्होंने कहा कि सफाई कर्मचारी आर्थिक रूप से कमजोर तबका माना जाता है, ऐसे में उनका ग्रुप इंश्योरेंस हो ताकि विपरीत परिस्थितियों में उन्हें मदद मिल सके. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी नीति बनाने के लिए अपील की जाएगी.
सफाई कर्मचारी पद पर हर वर्ग की हो भर्ती
सामाजिक समरसता को ध्यान में रखते हुए और आरक्षण की नीति के हिसाब से राजस्थान में 2018 की सफाई कर्मचारियों की भर्ती में ये व्यवस्था लागू हुई. सफाई कर्मचारी आयोग भी ये चाहता है कि सभी बराबर आएं. लेकिन विडंबना ये है कि जो सफाई कर्मचारी के पद पर वाल्मीकि समाज के अलावा जो दूसरे वर्ग के कर्मचारी भर्ती हुए हैं, वो कार्यालय में दूसरे कार्यों में लग जाते हैं. आवश्यकता है कि वो भी अपना मूल कार्य करें. यदि वो गटर/नाली साफ नहीं कर सकते, तो फिर गरीब कौम के पद को खत्म नहीं करना चाहिए.
सीवर में सफाई कर्मचारियों को उतारने वालों पर सजा का प्रावधान
उन्होंने कहा कि ये शर्म की बात है कि 21वीं सदी में भी सफाई कर्मचारियों को सीवर में उतरना पड़ता है और सीवर डेथ भी हो रही है. सभी संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद भी कर्मचारी को सीवर में उतारा जा रहा है तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार संबंधित अधिकारी और ठेकेदार के खिलाफ सजा का प्रावधान है.
ज्यादती होने पर ही सफाई कर्मचारी करते हैं आंदोलन
सफाई कर्मचारी अपने अंदर समंदर लिए बैठे हैं. कोरोना काल में कोरोना वॉरियर्स की तरह उन्होंने काम किया. अपनी जान जोखिम में डालकर देश की सेवा करने में लगे हुए थे. सफाई कर्मचारी एक सहनशील कौम है जो अति होने पर ही आंदोलन की राह पकड़ते हैं. अपने साथ ज्यादती होने पर ही वो ऐसा करते हैं.