जयपुर. गांधीवादी विचारक सवाई सिंह ने कहा है कि सुब्बाराव एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जो बहुत सरल, सहज और सकारात्मक वातावरण का एहसास कराते थे. वे सत्ता के करीब रहकर भी सत्ता के लालच में नहीं आए और उससे दूर रहे. समाज के लिए किए गए उनके कार्य हमेशा याद किए जाएंगे.
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित गांधीवादी विचारक डॉ. एस.एन सुब्बाराव के निधन पर सवाई सिंह ने गहरी संवेदना व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन के 50 साल सुब्बाराव के साथ बिताए हैं. मैं लगातार उनके संपर्क में रहा हूं. उनके जो शिविर आयोजित किए जाते थे उन शिविरों में मैं जाता रहा हूं.
आज उनके निधन पर न केवल मुझे बल्कि पूरे देश और विदेश तक के लोगों को गहरा आघात पहुंचा है. सुब्बाराव ने गांधी के विचारों को न केवल हिंदुस्तान में बल्कि विदेशों में भी पहुंचाने का काम किया. हमेशा सकारात्मक वातावरण और प्राकृतिक पद्धति के पक्षधर रहे सुब्बाराव को हमेशा याद किया जाएगा.
सवाई सिंह कहते हैं कि सेवा दल के रूप में सुब्बाराव ने कई सालों तक काम किया. ऐसे बहुत कम लोग हैं जो देश के लिए समर्पित होकर काम करते हैं, उनमें से एक सुब्बराव थे. सुब्बाराव सत्ता के इतने करीब रहे लेकिन उन्होंने कभी भी सत्ता के लालच को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. वह चाहते तो सत्ता के किसी भी शीर्ष पद पर अपने आप को जोड़ सकते थे. लेकिन उन्होंने कभी भी सत्ता के लालच को अपने करीब नहीं होने दिया.
सवाई सिंह कहते हैं कि यह सौभाग्य की बात है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनसे मुलाकात करके उन्हें उपचार के लिए राजस्थान में आमंत्रित किया. राजस्थान में उनका इलाज कराया गया. आज सुबह जब उनके निधन के समाचार मिले उसके बाद मानो ऐसा लग रहा है जैसे हमने एक बार फिर गांधी जी को खो दिया है.
डकैतों को कराया आत्मसमर्पण
सवाई सिंह ने कहा कि सुब्बाराव को मध्य प्रदेश के मुरैना से खास लगाव रहा है. उन्होंने मुरैना में 600 से ज्यादा डकैतों का आत्मसमर्पण कराया था. गांधीवादी विचारों को स्थापित करने के लिए उन्होंने 1954 में चंबल में कदम रखा था. सवाई सिंह कहते है कि शांति के प्रेरक डॉ. सुब्बाराव ने चंबल घाटी में डाकू उन्मूलन के लिए सालों काम किया था. वें निरंतर डकैतों के संपर्क में रहे और उनका हृदय परिवर्तन कराने में सफल रहे.
इस तरह मनाया कुख्यात बदमाशों को
ये बात 1970 की है, जब चंबल घाटी डाकुओं के डर से कांपती थी. उस समय डॉ. एसएन सुब्बाराव ने यहां डेरा डाला था. वे डाकुओं के बीच रहे, उन्हें काफी समझाया, जब वें नहीं माने तो उनके परिवार वालों को लेकर उनके पास पहुंच गए. फिर कहा कि हम तुम्हें नया जीवन देंगे. उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चन्द्र सेठी से मिलकर उनके लिए खुली जेल स्थापित की. डाकुओं के ऊपर लगे सभी केस माफ करवाए. उनके परिजनों को पुलिस में नौकरी दिलवाई और खेती-बाड़ी के कार्य दिलवाए. जौरा के गांधी सेवाश्रम में आयोजित सरेंडर कार्यक्रम में उनसे प्रेरित होकर मोहर सिंह और माधो सिंह जैसे बड़े डकैतों ने हथियार डाल दिये थे.
सुब्बाराव के विचारों को जन-जन तक पहुंचाएं, वहीं उनको सच्ची श्रद्धांजलि : गांधी विचारक दीपाली आग्रवाल
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित गांधीवादी विचारक डॉ. एस.एन सुब्बाराव के निधन के बाद गांधीवादी विचारक दीपाली अग्रवाल ने कहा कि देश ने बड़े गांधी विचारक, सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले सहज शांत स्वभाव के धनी को खो दिया. सुब्बराव के निधन से गांधी विचारों को बड़ा आघात लगा है. गांधी विचारक और सुब्बाराव के साथ काम करने वाली दीपाली ने कहा कि सुब्बाराव के विचारों को जन-जन तक पहुंचाएं, वही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
गांधी विचारक दीपाली अग्रवाल कहती है कि डॉ. एसएन सुब्बाराव का जाना पूरे हिंदुस्तान के लिए गहरी क्षति है. गांधीवादी सुब्बाराव श्रमदान को लेकर काफी जागरूकता अभियान भी चलाए. उन्होंने 13 साल की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया. वे गांधीजी के विचार से काफी प्रेरित थे. प्राकृतिक चिकित्सा, प्राकृतिक चीजों पर काफी ध्यान दिया और इसको लेकर लोगों को जागरूक करने का काम किया. सुब्बाराव सर्वधर्म प्रार्थना करना उनके स्वभाव का हिस्सा था.
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दीपाली ने बताया कि मेरा उनसे जयपुर आए तब मिलना हुआ. उनका जन्मदिन भी मनाया उस समय मैं एक सप्ताह उनके साथ रही. जब मैंने उन्हें नेचुरोपैथी के बारे में बताया था, उन्होंने कहा कि नेचुरोपैथी सहज सरल और सुलभ के साथ-साथ बहुत ही सस्ती चिकित्सा व्यवस्था है. इसे हर कोई अपना सकता है, इसके परिणाम भी काफी अच्छे हैं. इसको हर किसी को अपनाना चाहिए. दीपाली कहती हैं कि सुब्बाराव से हर मुलाकात के बाद एक सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. वह हमेशा सकारात्मक वातावरण का एहसास कराते थे.
गुब्बारे वाले बाबा
दीपाली कहती है कि मुझे एक किस्सा याद है कि वह हमेशा अपनी जेब में गुब्बारे रखा करते थे. जहां पर भी उनको कोई बच्चा मिलता तो उसे गुब्बारा फुलाकर गांठ लगा कर देते थे. उन्हें बच्चों से बहुत लगाव था. इसलिए उन्हें गुब्बारे वाले बाबा भी कहा जाता था. बच्चे भी उनको काफी पसंद करते थे. सुब्बाराव का जाना सभी के लिए बहुत बड़ी क्षति है.
सुब्बाराव के विचारों को जन-जन तक पहुंचाएं
दीपाली कहती हैं कि सुब्बाराव के विचारों को जन-जन तक पहुंचाया जाना चाहिए और मैं चाहती हूं कि सभी को उनके विचारों को अपनाना चाहिए. वही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी.